राजपथ - जनपथ
सीएम के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी पर कांग्रेस ने भाजपा विधायक शिवरतन शर्मा को बैन कर दिया है। पार्टी नेता शिवरतन शर्मा के साथ किसी भी टीवी डिबेट में हिस्सा नहीं लेंगे। पिछले कुछ समय से शिवरतन शर्मा, भूपेश सरकार के खिलाफ मुखर हैं। वैसे तो वे भाजपा की गुटीय राजनीति में रमनविरोधी खेमे माने जाते थे, लेकिन सरकार ने जैसे ही रमन-परिवार पर निगाह तिरछी की, तो बचाव में सबसे पहले शिवरतन शर्मा ही आगे आए। वे अब रमन के भरोसेमंद माने जाने लगे हैं।
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि पार्टी ने वर्ष-2013 के विस चुनाव में उन्हें टिकट नहीं देने का फैसला किया था, तब बृजमोहन अग्रवाल के अडऩे की वजह से उन्हें टिकट मिल पाई और चुनाव भी जीत गए। इस बार के विधानसभा चुनाव में भाग्य ने उनका साथ दिया और त्रिकोणीय संघर्ष में फिर बाजी मार गए। इन सफलताओं के बावजूद पार्टी के भीतर उनकी छवि कोई अच्छी नहीं रही है। उनका परिवार चावल कारोबार से जुड़ा है। कुछ साल पहले बलौदाबाजार में चावल-धान घोटाला हुआ था, तो शिवरतन शर्मा निशाने पर रहे।
भाजपा सरकार में उनके परिवार ने काफी आर्थिक तरक्की की। नागरिक आपूर्ति निगम में परिवहन के ठेके में पूर्व विधायक गुरूमुख सिंह होरा परिवार का बहुत लंबे समय से एकाधिकार रहा है, लेकिन शिवरतन के परिवार ने होरा का वर्चस्व तोड़ दिया। भाटापारा में शिवरतन परिवार का डीपीएस स्कूल भी है। वे भाटापारा-बलौदाबाजार जिले में एक बड़ी आर्थिक ताकत बन चुके हैं।
सुनते हैं कि रमन सरकार में मंत्रिमंडल में उन्हें जगह दिलाने के लिए सरोज पाण्डेय ने काफी मेहनत की थी। तब एक प्रमुख नेता ने निजी चर्चाओं में यह कहकर खारिज किया था कि शिवरतन को मंत्रिमंडल में शामिल करने से अच्छा संदेश नहीं जाएगा और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल सकता है। अब जब शिवरतन शर्मा आक्रामक दिख रहे हैं, तो इसकी प्रतिक्रिया भी हो सकती है। फिलहाल तो उनके खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी पर पुलिस में शिकायत दर्ज कराई जा रही है।
बहिष्कार के मुकाबले बहिष्कार
भारतीय जनता पार्टी ने कुछ समय पहले जब कांगे्रस के एक प्रवक्ता विकास तिवारी का टीवी चैनलों पर बहिष्कार घोषित किया, तो कांगे्रस प्रवक्ताओं की लिस्ट में मिलीजुली प्रतिक्रिया रही। एक ही तरह के काम करने वाले लोगों के बीच जाहिर है कि थोड़ी सी खींचतान रहती ही है, और हर टीवी डिबेट के बाद जब दोनों-तीनों पार्टियों के लोग चाय पर गपियाते हैं, तो अपनी-अपनी पार्टी के दूसरों की कमजोरियां भी बांटी जाती हैं। ऐसे में विकास तिवारी का बहिष्कार उन पर भारी पड़ रहा था।
अब जब शिवरतन शर्मा के एक बयान को लेकर कांगे्रस ने पहले जब केवल बयान जारी किया तो विकास तिवारी बेचैन थे। उनकी बेचैनी को देखते हुए पार्टी ने फिर शिवरतन शर्मा का बहिष्कार किया, तो कलेजे में कुछ ठंडक पड़ी।
प्रवक्ताओं की जात क्या है?
एक दिलचस्प बात यह है कि छत्तीसगढ़ में कांगे्रस और भाजपा जैसी दोनों बड़ी पार्टियों के प्रवक्ताओं को टीवी पर देखें, तो दिखता है कि ब्राम्हण या सवर्ण हावी हैं। कांगे्रस की लिस्ट देखें तो राजेन्द्र तिवारी, शैलेष नितिन त्रिवेदी, आरपी सिंह, किरणमयी नायक, विकास तिवारी, रमेश वल्र्यानी जैसे लोग ही टीवी के परदे पर दिखते हैं। दूसरी तरफ भाजपा में सच्चिदानंद उपासने, श्रीचंद सुंदरानी, केदार गुप्ता, संजय श्रीवास्तव, के चेहरे ही टीवी पर दिखते हैं।
कहने के लिए इन पार्टियों की प्रवक्ता-सूची में मुस्लिम, ईसाई, दलित, आदिवासी हो सकते हैं, लेकिन अमूमन वे टीवी पर दिखते नहीं हैं। अब अल्पसंख्यकों और सबसे दबे-कुचले तबकों की जगह पार्टी की ओर से बोलने में ही इतनी कमजोर रखी गई है, तो बहस में इन तबकों के तजुर्बों की भला क्या जगह होती होगी? लेकिन राजनीतिक दलों के लोगों अखबारों के संपादकीय विभाग या न्यूज रूम को भी गिना सकते हैं कि वहां पर भी तो महज ब्राम्हणों का बोलबाला है। मीडिया मालिक अधिकतर मारवाड़ी, और पत्रकार अधिकतर ब्राम्हण!
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