राजपथ - जनपथ
जम्मू-कश्मीर राज्य के लेह में एक प्रेस कांफ्रेंस के बाद भाजपा पर यह आरोप लगा कि उसने पत्रकारों को नगदी भरे हुए लिफाफे बांटे। खुद पत्रकारों ने इसकी शिकायत निर्वाचन आयोग से की, और इसकी जांच हो रही है। (लोगों को उम्मीद है कि उस पर भी चुनाव आयोग अपनी वही मशहूर हो चुकी क्लीनचिट देगा)। ऐसे में छत्तीसगढ़ के कुछ बरस पहले की एक ऐसी प्रेस कांफ्रेंस याद पड़ती है जो हुई ही नहीं थी। एक केंद्रीय मंत्री कल्पनाथ राय कोरबा के किसी बिजलीघर दो देखने के लिए आए थे और लौटते में रायपुर की पिकैडली होटल में उनकी पे्रस कांफे्रंस रखी गई थी। उनको आने में देर होती चली गई, लेकिन तब तक छत्तीसगढ़ राज्य बना नहीं था, और केंद्रीय मंत्री का आना इस इलाके के लिए एक बड़ी घटना थी इसलिए मीडिया इंतजार करते बैठे रहा। वे काफी देर से आए और उड़ान का समय हो गया था। आते ही उन्होंने पूछा कि मीडिया को कुछ खाना-पीना मिला या नहीं? इसके बाद अपने बेतकल्लुफ अंदाज में उन्होंने अपने अफसरों से कहा कि इन्हें ठीक से खिलाओ-पिलाओ। फिर उन्होंने साथ के अफसरों की ओर देखा तो बैग से गिफ्ट पैक किए गए सूट के कपड़े निकाले गए, और कल्पनाथ राय ने पत्रकारों को पैकेट थमाए, और कहा कि देर हो रही है वे निकल रहे हैं।
लेह के पत्रकारों ने शिकायत चाहे जो की हो, चाहे किसी वजह से की हो, लेकिन पत्रकारों के बीच तोहफे या नगदी बंटना कोई बहुत नई बात नहीं है। दशकों पहले रायपुर में तबकी कपड़ों की एक मशहूर कंपनी एस कुमार्स की तरफ से एक फैशन परेड रायपुर में की गई थी, और जो विज्ञापन एजेंसी इसकी प्रेस कांफ्रेंस कर रही थी, उसने चुनिंदा रिपोर्टरों को बता दिया था कि वहां सबको सूट के कपड़े दिए जाएंगे। प्रेस कांफ्रेंस की औसत भीड़ से दो गुना भीड़ वहां लग गई थी। पहले भी यही हाल था, और अब भी यही हाल है कि पत्रकारों को तनख्वाह बहुत कम मिलती है, कहीं-कहीं पर मिलती भी नहीं है। ऐसे में यह इस पेशे के साथ जुड़ा हुआ एक छोटा सा फायदा था जो कि उस वक्त रिश्वत नहीं थी। रिश्वत तो वह पिछले चार-पांच चुनावों से हो गई है जब मीडिया मालिक सत्तारूढ़ पार्टी या करोड़पति उम्मीदवार से मोटा पैकेज पाते हैं, न मिलने पर बांह मरोड़कर ले लेते हैं। ऐसे में अधिक असरदार मीडिया में काम करने वाले अधिक असरदार पत्रकारों का भी राजनीतिक दल ख्याल रखने लगे हैं, जो मंजूर करे उसे पैकेज दे दिया जाता है, लेकिन जो मंजूर न करे उससे डरकर रहा जाता है। जिस तरह सरकार, अदालत, समाजसेवा किसी भी दायरे में अच्छे और बुरे दोनों किस्म के लोग हैं, वैसा ही हाल मीडिया का भी है, बाकी धंधों से न बेहतर, न बदतर।
इन्हें देखकर कुछ तो सीखें...
अभी एक तस्वीर खबरों में आई है जिनमें एक नौजवान मतदाता लड़की वोट डालने गई है, और चुनाव अफसर उसके पांव की ऊंगली पर स्याही का निशान लगा रहा है क्योंकि उसके हाथ नहीं है। हाथ नहीं हैं पर हौसला है, अगली सरकार या अपना सांसद चुनने की हसरत है। इसलिए वह बिना हाथों के भी पहुंचकर, कतार में लगकर वोट डालने पहुंची थी, और यह तस्वीर हिन्दुस्तान के उन करोड़ों लोगों के मुंह पर तमाचा है जो साबुत हाथ लिए हुए घर बैठे रहे, वोट डालने नहीं गए।
कुछ ऐसा ही हाल हर सुबह देखने मिलता है जब बहुत से जवान लोग उस वक्त सोकर उठते हैं जब सूरज एक बांस चढ़ चुका होता है, फिर मां-बाप की छाती पर मूंग दलना शुरू करते हैं, और चाय की फरमाईश करते हैं। इनके मुकाबले बहुत से बुजुर्ग लोग सुबह से घूमने निकल जाते हैं। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के अनुपम उद्यान में आज सुबह कांग्रेस के मीडिया-प्रभारी शैलेष नितिन त्रिवेदी को ऐसा एक नजारा देखने मिला जिसमें एक बुजुर्ग महिला छड़ी टेकते हुए वहां पहुंची, और फिर कसरत की एक मशीन के किनारे अपनी छड़ी लिटाकर रखी, और फिर मशीन पर चढ़कर अपने से दो-तीन पीढ़ी छोटी बच्ची के साथ जमकर कसरत करने लगी। इस तस्वीर को देखकर ऐसे लोगों को सोचना चाहिए जो जवानी में पलंग या कुर्सी तोड़ते पड़े रहते हैं, और बुढ़ापे में फिजियोथैरेपी को मजबूर होते हैं।
([email protected])