राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : चौधरी का कल, आज और कल
11-May-2019
 छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : चौधरी का कल, आज और कल

छत्तीसगढ़ के एक नामी आईएएस रहे ओ.पी. चौधरी पिछली सरकार में सबसे ताकतवर नौकरशाह, अमन सिंह के सबसे पसंदीदा अफसरों में से एक रहे, और फिर छत्तीसगढ़ का माटीपुत्र होने के नाते राजनीतिक महत्वाकांक्षा उन्हें स्वाभाविक लगी, और वे देश की एक सबसे सुरक्षित नौकरी छोड़कर चुनाव में उतर गया। जिन लोगों को भाजपा के सरकार बनाने की गारंटी लग रही थी, उनके बीच इस बात को लेकर बहस होती थी कि विधायक बनने के बाद ओ.पी. चौधरी खेल और युवा कल्याण मामलों के मंत्री बनेंगे या युवा आयोग के अध्यक्ष? खैर, भाजपा की सरकार बनी नहीं, और कांग्रेस के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के तेवर पिछली सरकार की गड़बडिय़ों को लेकर इतने आक्रामक हैं कि खुद कांग्रेस विधायकों को ऐसा अंदाज नहीं था। 

अब ओ.पी. चौधरी दंतेवाड़ा की कलेक्टरी के समय के जमीन के एक फैसले को लेकर एक जांच के घेरे में हैं। चौधरी रायपुर के भी कलेक्टर रहे हुए हैं, और इसी कुर्सी पर उनसे बरसों पहले बैठने वाले सी.के. खेतान को चौधरी के जमीन के फैसले की जांच दी गई है। सी.के. खेतान अब एसीएस हैं, और सुनील कुजूर के रिटायर होने के बाद जिन दो अफसरों में से एक की सीएस बनने की संभावना है, वे उनमें से एक हैं। इसलिए इस जांच में वे कोई कसर रखेंगे ऐसा लगता नहीं है। दूसरी तरफ इस जांच को होने से रोकने के लिए जिस तरह से कुछ लोगों ने हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक दौड़ लगाई थी, उससे भी लगता है कि इस जांच में छुपाने लायक कुछ बात है। 

एक वक्त रेणु पिल्ले...
दूसरी तरफ अमन सिंह की पत्नी यास्मीन सिंह के खिलाफ एक जांच शुरू हुई है। वे पीएचई में सलाहकार के पद पर काम करती रहीं, लेकिन साथ-साथ वे पूरे देश में कत्थक के मंच प्रदर्शन में भी लगी रहीं। अब जांच उनकी नियुक्ति से लेकर उनके काम और उनकी छुट्टियों तक फैली हुई है। यह जांच प्रदेश की एक सबसे कड़क समझी जाने वाली आईएएस अधिकारी रेणु पिल्ले को दी गई है जो कि पिछली रमन सिंह सरकार में अपने एक शासकीय फैसले को लेकर पल भर में सरकार से बाहर कर दी गई थीं, और राजस्व मंडल नाम के कालापानी पर भेज दी गई थीं। जिस बैठक में रेणु पिल्ले को हटाने का फैसला हुआ, उसमें रेणु पिल्ले के साथ-साथ तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह, मुख्य सचिव विवेक ढांड, राजस्व मंत्री प्रेमप्रकाश पांडेय, मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव अमन सिंह मौजूद थे। पिछली सरकार में यह जाहिर था कि जिस बैठक में अमन सिंह रहते थे, उसके फैसले या तो वे ही लेते थे, या उनकी सहमति वाले फैसले ही होते थे। ऐसे में रेणु पिल्ले की साफ-साफ असहमति ने उन्हें पल भर में कुर्सी से हटा दिया गया था, और वे बिना किसी शिकायत सिर ऊंचा किए हुए राजस्व मंडल चली गई थीं। वक्त कैसे बदलता है, आज यास्मीन सिंह के मामले की जांच रेणु पिल्ले कर रही हैं। 

हाथापाई से लेकर जांच तक...
कुछ ऐसी ही एक दूसरी जांच राज्य के एक डीजीपी, निलंबित मुकेश गुप्ता की हो रही है। उनके खिलाफ चल रही कई जांच में से एक पुलिस महानिदेशक डी.एम. अवस्थी करने जा रहे हैं। लोगों को अच्छी तरह याद है कि जब चुनाव आयोग ने कई बरस पहले डीजीपी विश्वरंजन को जबरिया छुट्टी पर भेजा था, और अनिल नवानी को पुलिस विभाग का मुखिया बनाया गया था, तो उनकी टेबिल पर एक बैठक के बीच मुकेश गुप्ता डी.एम. अवस्थी पर चढ़ बैठे थे, दोनों के बीच बुरी जुबान के बाद हाथापाई की नौबत आई थी, और वहां मौजूद दो दूसरे बड़े आईपीएस ने दोनों को पकड़कर खींचकर अलग किया था। उस वक्त उस बैठक में मौजूद एक या दो महिला आईपीएस अधिकारी यह देखकर हक्का-बक्का रह गई थीं। उस पूरी घटना को नवानी की कमजोर लीडरशिप का भी नतीजा माना गया था कि डीजीपी के कमरे में उनके दो मातहत किस तरह ऐसे भिड़ सकते हैं। बैठक में बहस इस बात को लेकर हुई थी कि इंटेलीजेंस के मद से जिलों के एसपी को पर्याप्त रकम दी जा रही है या नहीं? खैर, अब मुकेश गुप्ता की बाकी बची नौकरी से बहुत अधिक लंबे कार्यकाल वाले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के तेवर देखते हुए किसी जांच में मुकेश गुप्ता से किसी रियायत के आसार नहीं दिखते हैं। 

एक जांच अफसर रेणु पिल्ले, और एक जांच अफसर डी.एम. अवस्थी, इन दोनों को बदले हुए हालात में इन बदले हुए किरदारों में देखकर लोगों को यह सबक भी लेना चाहिए कि जब वक्त अपना चल रहा हो, तो दिख रहे आज के साथ-साथ न दिख रहे आने वाले कल का भी ध्यान रखना चाहिए।

छत्तीसगढ़ में किसे कितनी सीटें?
छत्तीसगढ़ के चुनाव में किस पार्टी को कितनी सीटें मिलेंगी, इस पर अटकल किनारे चली गई है। यहां की सीटों से न तो दिल्ली की सरकार बननी हैं, न बिगडऩी है। और न ही छत्तीसगढ़ में सरकार की सेहत पर इससे सीधे-सीधे कोई फर्क पडऩे जा रहा है। ग्यारह सीटों में से दस भाजपा के पास थी, और एक पर कांग्रेस के ताम्रध्वज साहू सांसद थे। अब कांग्रेस कहने के लिए तो ग्यारह सीटों का दावा कर रही है, लेकिन उसके वरिष्ठ मंत्री टी.एस. सिंहदेव देश में चुनाव के चलते-चलते भी पता नहीं क्यों सात सीटों तक अपनी बात लाकर रूक जाते हैं। उन्हें बार-बार लगता है कि कांग्रेस सात से अधिक सीटें शायद न भी पाए, और वे सात से कम को कांग्रेस की नाकामयाबी भी बता रहे हैं, जो कि कुछ लोगों का ऐसा मानना है कि वे इसे मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल की नाकामयाबी बताने की ओर इशारा कर रहे हैं। 

जो भी हो, सीटों के बारे में लोगों का एक मोटा अंदाज यह है कि दोनों ही पार्टियों की कम से कम चार-चार सीटों की गारंटी है, और तीन सीटें डांवाडोल हैं जो कि किसी भी करवट बैठ सकती हैं। ये चार-चार सीटें कौन सी हैं, इसके बारे में भी काफी लोगों को अंदाज है और ऐसी आठ सीटों के बाद तीन सीटों के नाम ही तो बचते हैं। आम चर्चा के मुताबिक सरगुजा, बिलासपुर, रायपुर, और दुर्ग में लोग भाजपा की संभावना देख रहे हैं, और बस्तर, कांकेर, राजनांदगांव, और कोरबा में कांग्रेस की। अब जो तीन सीटें बच गई हैं वे जांजगीर, रायगढ़, और महासमुंद हैं। कांग्रेस के कम से कम चार दिग्गजों की निजी प्रतिष्ठा तीन सीटों पर लगी हुई है, और भाजपा के मुकाबले कांग्रेस में अधिक बेसब्री से इंतजार है।
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