राजपथ - जनपथ
विधायक भीमा मंडावी के निधन के बाद खाली दंतेवाड़ा सीट पर अगले कुछ महीनों में उपचुनाव होना है। राजनीतिक हल्कों में यह चर्चा है कि नक्सलियों की गोली से मारे गए विधायक भीमा मंडावी के परिजनों में से भाजपा किसी को प्रत्याशी बनाती है, तो शायद कांग्रेस उम्मीदवार न खड़ा करे। भाजपा के कुछ लोग महाराष्ट्र और एक-दो अन्य राज्यों की परंपरा का हवाला देकर सत्तारूढ़ दल कांग्रेस से कुछ इसी तरह की उम्मीद पाले हुए हैं।
महाराष्ट्र में पूर्व गृहमंत्री आरआर पाटिल के निधन के बाद एनसीपी ने उनकी पत्नी को उम्मीदवार बनाया, तो सत्तारूढ़ दल भाजपा ने उपचुनाव में प्रत्याशी नहीं खड़े किए। इसी तरह महाराष्ट्र के एक और प्रतिष्ठित नेता पतंगराव कदम के निधन के बाद हुए उपचुनाव में भी भाजपा ने पतंगराव कदम के बेटे विश्वजीत कदम के खिलाफ प्रत्याशी नहीं उतारा। पर छत्तीसगढ़ में इस तरह की परंपरा नहीं रही है। बालोद में भाजपा विधायक मदन लाल साहू के निधन के बाद उपचुनाव में पार्टी ने उनकी पत्नी कुमारी बाई को प्रत्याशी बनाया, तो कांग्रेस ने पूरी दमदारी से चुनाव लड़ा था। झीरम नक्सल हमले में मारे गए नंदकुमार पटेल के पुत्र उमेश पटेल के खिलाफ प्रत्याशी खड़ा करने में भाजपा ने जरा भी संकोच नहीं किया।
इस बार के विधानसभा चुनाव में तो उमेश पटेल को हराने के लिए हर संभव कोशिश की गई। कुछ लोगों का अंदाजा है कि पार्टी ने सबसे ज्यादा पैसे खर्च खरसिया में उमेश पटेल को हराने के लिए किए। वैसे तो डॉ. रमन सिंह को संवेदनशील सीएम माना जाता रहा है, लेकिन वे चुनावी राजनीति में कठोर रहे। उन्होंने तो दिवंगत पूर्व गृहमंत्री नंदकुमार पटेल के गृहग्राम नंदेली में सभा लेकर एक तरह से कांग्रेस के गढ़ को ध्वस्त करने कोशिश की। ये अलग बात है कि इन तमाम हथकंडों के बावजूद भाजपा को बुरी हार का सामना करना पड़ा। यह सब देखकर नहीं लगता कि कांग्रेस, दंतेवाड़ा उपचुनाव में मैदान छोड़ेगी।
परंपराएं तो पहले ही ढह गईं...
इसी किस्म की दूसरी बात छत्तीसगढ़ में यह है कि जोगी के वक्त से विधानसभा उपाध्यक्ष का पद विपक्ष को देने की पुरानी परंपरा खत्म कर दी गई थी। वरना अविभाजित मध्यप्रदेश में हमेशा ही उपाध्यक्ष का पद विपक्ष को दिया जाता था। जोगी ने भाजपा के एक दर्जन से अधिक विधायक तोड़े भी थे, और ऐसी कई परंपराएं शुरू की थीं जो कि पुरानी लोकतांत्रिक परंपराओं के खिलाफ थीं। फिर तो छत्तीसगढ़ में परंपराएं गड्ढे में डाल दी गईं, और विधानसभा अध्यक्ष भी कई ऐसे काम करते दिखे जो कि उनकी गरिमा के लायक नहीं थे। जब डॉ. रमन सिंह अपनी सरकार की सालगिरह पर सीएम हाऊस में मीडिया से बात कर रहे थे, तब उनके बगल में उनके दूसरे मंत्रियों के साथ-साथ विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल भी सीएम से नीची कुर्सी पर बैठे थे। उन्हें एक पिछले विधानसभा अध्यक्ष पे्रम प्रकाश पाण्डेय ने याद भी दिलाया कि क्या उनका सीएम की पे्रस कांफे्रंस में आना ठीक है?
कनक तिवारी के खिलाफ अभियान
छत्तीसगढ़ के महाधिवक्ता कनक तिवारी राज्य के सबसे सीनियर वकील हैं, और भूपेश बघेल ने उनकी वरिष्ठता, काबिलीयत, उनका गांधीवादी मिजाज, कांगे्रसी पृष्ठभूमि, और दुर्ग जिले के होने की तमाम बातों को ध्यान में रखते हुए उन्हें महाधिवक्ता बनाया। लेकिन उसी वक्त कांगे्रस के कुछ दूसरे लोग एक जातिवाद के तहत एक दूसरे को महाधिवक्ता बनाने में जुटे हुए थे, लेकिन मुख्यमंत्री ने उस वाद को वजन नहीं दिया। कनक तिवारी कमाई के मामले में भारी नुकसान में हैं क्योंकि आज जितने महंगे मुकदमे छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में चल रहे हैं, वे कनक तिवारी को करोड़पति तो बना ही देते अगर वे सरकार के खिलाफ लडऩे के लिए उपलब्ध रहते। करोड़पति वे पहले से हैं, पहले से कई मकान और कई गाडिय़ां हैं, वे महंगी वकालत करते हैं इसलिए एजी बनने से उन्हें कमाई का नुकसान हुआ है। और ऐसे में जब कांगे्रस का एक तबका उन्हें हटाने में जुटा हुआ है, तो जाहिर है कि सोशल मीडिया और मीडिया में उनके इस्तीफे की अफवाहें पहला कदम हैं।
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