राजपथ - जनपथ
महात्मा गांधी पर भाजपा के अलग-अलग लोग जिस अंदाज में हमला कर रहे हैं, उसे देखकर सब हक्का-बक्का हैं। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने ऐसे लोगों को नोटिस देने की बात कही है, लेकिन भाजपा के नेता हैं कि कूद-कूदकर गांधी पर हमला किए जा रहे हैं। ऐसे में छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के भाजपा जिलाध्यक्ष राजीव अग्रवाल शायद भाजपा से ऐसे अकेले नेता हैं जिन्होंने खुलकर साध्वी प्रज्ञा के खिलाफ सोशल मीडिया पर लिखा है- साध्वी प्रज्ञा का नाथूराम गोडसे को महिमामंडित करना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं हैं। नाथूराम गोडसे केवल हत्यारा था, और इसके अलावा कुछ नहीं। साध्वी को देश से माफी मांगनी चाहिए। बीती दोपहर ही उन्होंने यह पोस्ट कर दिया था, हालांकि अमित शाह का बयान खासा बाद में आया है, आज सुबह। अमित शाह के बयान के बाद भी मध्यप्रदेश भाजपा के प्रवक्ता अनिल सौमित्र ने गांधी को पाकिस्तान का राष्ट्रपिता कहा है। और उनकी इस बात पर देश के बहुत से चौकीदारों ने लिखा है कि जब किसी को राष्ट्रपिता बनाकर दूसरों पर थोपा जाएगा, तो उसकी ऐसी ही प्रतिक्रिया होगी। हालांकि राजनीति में दिलचस्पी लेने वाले लोग यह समझ नहीं पा रहे हैं कि चुनाव के बीच में, अभी जब मतदान का एक दौर बाकी है, भाजपा के नेता गांधी को इस तरह कूद-कूदकर लात मारकर आखिर कौन से वोटरों को प्रभावित कर रहे हैं? क्या अब बाकी सीटों पर महज गोडसेवादी वोटर ही बचे हैं?
मुख्यमंत्री की मेज लबालब
चुनाव प्रचार से मुक्त होकर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल एक बार फिर सरकारी कामकाज पर बैठे हैं, तो उनके टेबिल और कमरे सभी फाइलों से लबालब बताए जा रहे हैं। बहुत से मामलों पर फैसले लेने हैं, और बहुत से नाम भी निगम-मंडल के लिए छांटने हैं। विधानसभा चुनाव को कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में भूपेश ने जिस खूबी से जीता है, उसके चलते वे मंत्रिमंडल तो पूरी तरह अपनी मर्जी का बना गए, लेकिन अब निगम-मंडल में मनोनयन में पार्टी के दिग्गज विधायकों से लेकर संगठन के वजनदार लोगों तक सबके बीच संतुलन बनाना उतना आसान नहीं रहेगा। लोगों की बड़ी-बड़ी उम्मीदें हैं क्योंकि पन्द्रह बरस बाद पार्टी सत्ता में है, ऐसे में हर कोई सत्ता की बस में सवार हो जाना चाहते हैं। एक बार फिर धर्म, जाति, जिला, और गुट, इन सभी का ख्याल रखते हुए लोगों के नाम छांटने होंगे, और यही मौका मुख्यमंत्री के सामने सरकारी फिजूलखर्ची को घटाने का भी रहेगा कि ऐसे नाम के कागजी निगम-मंडल, आयोग खत्म किए जाएं जो कि मुफ्तखोरी के लिए बनाए गए थे। यह एक कड़ा और कड़वा फैसला हो सकता है, लेकिन कामयाब लीडरशिप ऐसा जरूर कर सकती है क्योंकि इतने बहुमत से आने के बाद भूपेश बघेल के सामने मध्यप्रदेश की तरह सरकार पलटने का खतरा नहीं है।
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