राजपथ - जनपथ
छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के दामाद, एक सरकारी डॉक्टर को प्रदेश का एक वक्त का अकेला मेडिकल कॉलेज अस्पताल सौंप दिया गया था कि उसे सुपर स्पेशलिटी अस्पताल बनाया जाए। दाऊ कल्याण सिंह दानदाता थे, और उनके नाम पर इसे डी.के. अस्पताल नाम से जाना जाता था। बाद में मेडिकल कॉलेज का नया अस्पताल बना तो छत्तीसगढ़ राज्य बनने पर इसी इमारत में मंत्रालय खुला और एक दशक से ज्यादा चलता रहा। जब मंत्रालय नया रायपुर गया, तो एक बार फिर इसे अस्पताल बनाने का काम हुआ। ऐसे में मेडिकल कॉलेज में नेफ्रोलॉजी के विशेषज्ञ डॉ. पुनीत गुप्ता को यह जिम्मा दिया गया, और जाहिर है कि सीएम का दामाद होने की वजह से उन्हें खुली छूट भी दी गई कि वे तेज रफ्तार से इसे एक शानदार अस्पताल बनाएं।
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से ऐसा कोई भी वक्त नहीं रहा जब स्वास्थ्य विभाग प्रदेश का सबसे भ्रष्ट विभाग न रहा हो। हाल ही में यह तस्वीर बदली है जब कांगे्रस सरकार के स्वास्थ्य मंत्री टी.एस. सिंहदेव अस्पतालों पर अपनी जेब का पैसा खर्च कर रहे हैं बजाय अस्पतालों के पैसों से जेब भरने के। रमन सरकार में एक सबसे ताकतवर मंत्री अजय चंद्राकर स्वास्थ्य मंत्री थे, और सुब्रत साहू जैसे स्वास्थ्य सचिव थे जिनके पिता ओडिशा में चीफ सेक्रेटरी रह चुके थे। ऐसे लोगों के रहते हुए उनके विभाग में खूब चर्चित डी.के. अस्पताल में जिस रफ्तार से नियम-कायदे तोड़कर करोड़ों खर्च हुए, और बैंक से फर्जी कागजातों पर कर्ज लिया गया, उनमें से कोई भी बात इन दोनों लोगों की अनदेखी से हो नहीं सकती थी। जिस पंजाब नेशनल बैंक से करीब पौन सौ करोड़ रुपये का यह कर्ज लिया गया, वहां के उस वक्त के मैनेजर ने खुलासा किया है कि इस कर्ज के पीछे सरकार की मंजूरी थी, सरकार की गारंटी थी, और अस्पताल की कमेटी में स्वास्थ्य मंत्री, स्वास्थ्य सचिव, और रायपुर के कलेक्टर मेंबर थे। वैसे तो आज पुलिस की जांच डॉ. पुनीत गुप्ता को घेरे में लेकर चल रही है, और अभी बैंक के एजीएम को भी पुलिस ने गिरफ्तार किया है, लेकिन सरकार में जिम्मेदारी महज पुनीत गुप्ता पर खत्म नहीं हो सकती, उसके ऊपर के कई और लोगों की सीधी जिम्मेदारी इसमें बनती है। जब सरकार का कोई विभाग इतनी तेजी से कर्ज लेता है और खरीददारी करता है तो उसके लिए वित्त विभाग की कई तरह की इजाजत लगती है जो कि छोटी-छोटी बातों पर आपत्ति करने वाला विभाग रहता है। ऐसे में डी.के. अस्पताल को एक स्वतंत्र देश की तरह चलाने का यह काम कैसे हुआ यह हैरान करने वाला है। मीडिया में लगातार तस्वीरें आती भी थीं कि मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री इस अस्पताल की बदलती हुई शक्ल को देखने के लिए जाते थे। और स्वास्थ्य विभाग में हजारों करोड़ की खरीदी जिस तरह होती थी, उसकी जानकारी प्रदेश के आम लोगों को भी थी, इसलिए ऐसा तो हो नहीं सकता कि जानकार स्वास्थ्य मंत्री अजय चंद्राकर इससे नावाकिफ रहे हों। देखना है कि पुलिस के हाथ कहां तक पहुंचते हैं।
पुनीत की बुलेटप्रूफ जैकेट
डीकेएस घोटाले में फंसे पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह के दामाद डॉ. पुनीत गुप्ता के खिलाफ कई प्रकरण दर्ज तो हैं, लेकिन पुलिस उनसे कोई राज नहीं उगलवा पाई। पुनीत को अग्रिम जमानत मिली हुई है और बयान देने के लिए वकीलों की फौज लेकर पहुंचते हैं। पुलिस का कोई भी सवाल रहे, उनका एक ही जवाब होता है कि फाइल देखकर ही कुछ बता पाएंगे। फाइलें तो गायब हैं, और अस्पताल प्रबंधन ने इसको लेकर एफआईआर दर्ज करा रखी है।
पुनीत ने पुलिस को छकाने के लिए बकायदा आरटीआई लगाकर फाइलों की छायाप्रति मांग लिया है। अब फाइलें तो गुम हैं इसलिए उन्हें कोई जानकारी नहीं मिल सकती। ऐसे में पुनीत गोलमोल जवाब देकर पुलिस कार्रवाई से बच रहे हैं। अब सवाल यह है कि आखिर घोटाले की फाइलें कहां गर्इं। पुलिस की मानें तो इसके बारे में सिर्फ पुनीत गुप्ता ही कुछ बता सकते हैं। पुलिस के हाथ बंधे हैं क्योंकि पुनीत ने कानूनी कानूनी बुलेटप्रूफ जैकेट पहन रखी है। उनकी अग्रिम जमानत खारिज करने के लिए पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई है। कोर्ट ने चार हफ्ते के भीतर पुनीत से जवाब मांगा है। इस पर जुलाई में सुनवाई होगी। यह साफ है कि जब तक पुलिस पुनीत को रिमांड में लेकर पूछताछ नहीं करेगी तब तक फाइलों के राज से पर्दा नहीं उठ पाएगा। यह सब आसान भी नहीं दिख रहा है, क्योंकि पुनीत के लिए देश के नामी-गिरामी वकील पैरवी कर रहे हैं, और पुलिस को अदालत में इसका मुकाबला करने के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है।
महिला की शिकायत और धरम कौशिक
नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक से पार्टी के कई बड़े नेता नाराज बताए जा रहे हैं। वजह यह है कि कौशिक, छेड़छाड़ के आरोपी प्रकाश बजाज के समर्थन में बयानबाजी करने और आंदोलन छेडऩे के लिए पार्टी नेताओं पर दबाव बनाए हुए हैं। प्रकाश, धरम कौशिक के बेहद करीबी माने जाते हैं, और उनके राजदार भी बताए जाते हैं। सुनते हैं कि सालभर पहले रमन सिंह सरकार के रहते यह मामला प्रकाश में आया था। तब भी धरम कौशिक के दबाव की वजह से आगे कोई पुलिस-कार्रवाई नहीं हो पाई। चूंकि यह महिला से जुड़ा मामला है और महिला अत्याचार को लेकर पार्टी संवेदनशील होने का दावा करते रही है। ऐसे में कौशिक का आरोपी को बिना किसी जांच के क्लीन चिट देकर सरकार पर बदलापुर की राजनीति करने का आरोप लगाना पार्टी नेताओं को गले नहीं उतर रहा है। कुछ नेताओं ने तो कौशिक के बयान की कटिंग पार्टी हाईकमान को भेजी है और उनकी गतिविधियों पर रोक लगाने का आग्रह किया है।
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