राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : न राज्य में न बाहर...
24-May-2019
 छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : न राज्य में न बाहर...

कांग्रेस विधानसभा चुनाव का प्रदर्शन लोकसभा चुनाव में नहीं दोहरा सकी। जिस तरह विधानसभा चुनाव में जबरदस्त सफलता मिली थी, लोकसभा चुनाव में उसी अंदाज में हार का सामना करना पड़ा। ये अलग बात है कि पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में पार्टी की एक सीट बढ़ी है। जबकि विधानसभा चुनाव में जबरदस्त प्रदर्शन के बाद प्रदेश के नेताओं की पूछ परख काफी बढ़ गई थी। सीएम भूपेश बघेल पार्टी के स्टार प्रचारक थे। वे उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में चुनाव प्रचार के लिए गए थे। इसी तरह टीएस सिंहदेव को ओडिशा में चुनाव का प्रभारी बनाया गया था। सिंहदेव ने सरगुजा से ज्यादा समय ओडिशा में दिया, लेकिन वहां पार्टी को एक भी सीट नहीं मिल पाई। सीएम भूपेश बघेल भी लाव-लश्कर लेकर अमेठी में राहुल गांधी के चुनाव प्रचार के लिए गए थे, लेकिन राहुल को पहली बार हार का सामना करना पड़ा। यही नहीं, प्रदेश के नेता प्रभारी पीएल पुनिया के बेटे बाराबंकी में चुनाव प्रचार में भी लगे रहे, लेकिन पुनिया के बेटे तनुज पुनिया की जीत तो दूर, उनकी जमानत भी नहीं बच पाई। कुल मिलाकर प्रदेश कांग्रेस के नेताओं को न सिर्फ छत्तीसगढ़ में, बल्कि दूसरे राज्यों में भी झटका लगा है। 

बैस के जाने से फर्क नहीं पड़ा
सुनील सोनी की रिकॉर्ड वोटों से जीत से भाजपा के ही दिग्गज नेता हैरान हैं। इतनी बड़ी जीत की उम्मीद किसी को नहीं थी। वह भी तब जब सात बार के सांसद रमेश बैस की टिकट  काटकर सुनील सोनी को  दी गई। बैस की ग्रामीण इलाकों में अच्छी पकड़ है, और रायपुर संसदीय सीट का जातिगत समीकरण भी बैस के पक्ष में माना जाता था, इसलिए उनकी टिकट कटने से नुकसान का अंदेशा जताया जा रहा था। मगर, मोदी लहर ने इतनी बड़ी लीड दी जितनी कि राज्य बनने के बाद के तमाम लोकसभा चुनावों की रमेश बैस की लीड जोड़ दिया जाए तो भी वह सुनील सोनी की लीड 3 लाख 48 हजार तक नहीं पहुंचती है। पिछले चुनाव में बैस ने सत्यनारायण शर्मा को पौने 2 लाख वोटों से हराया था, लेकिन इस चुनाव में पिछले चुनाव की तुलना में जीत का अंतर दोगुना रहा है। वैसे भी बैस की नैय्या कभी अटल लहर या कांग्रेस विरोधी लहर के सहारे पार होती रही है, इस बार सुनील सोनी ने रायपुर सीट को बैस के मुकाबले एक नौजवान चेहरा दे दिया है जो इतनी लीड के सहारे अगले चुनाव में जारी भी रह सकता है। 

यह जीत संघ की मेहनत से...

राजनांदगांव सीट से संतोष पाण्डेय की जीत काफी चौंकाने वाली रही है। वजह यह है कि राजनांदगांव में दूसरे चरण में मतदान हुआ था। तब वहां मोदी फैक्टर प्रभावी होगा, ऐसा नहीं लग रहा था। वैसे भी पार्टी ने पूर्व सीएम रमन सिंह के पुत्र अभिषेक सिंह की टिकट काटकर संतोष पाण्डेय को प्रत्याशी बनाया था। सरल स्वभाव के संतोष पाण्डेय आरएसएस के पसंदीदा रहे हैं। उस समय पार्टी के भीतर यह भी चर्चा रही कि अभिषेक की टिकट कटने की दशा में रमन सिंह, राजिन्दरपाल सिंह भाटिया को टिकट चाहते हैं। होली के बाद रमन निवास पर जनता कांग्रेस के विधायक देवव्रत सिंह और राजिन्दरपाल सिंह भाटिया की मीटिंग भी हुई थी। उससे भी यही संकेत गया था। खैर, संतोष पाण्डेय को आरएसएस के सुझाव पर टिकट दी गई। आरएसएस ने सबसे ज्यादा मेहनत राजनांदगांव में ही की थी। वैसे तो अभिषेक को चुनाव संचालक बनाया गया था, लेकिन रमन सिंह समर्थकों की अरूचि को देखकर समानान्तर संचालन भी होता रहा। चुनाव प्रबंधन में माहिर पूर्व मंत्री मोहम्मद अकबर कांग्रेस प्रत्याशी के चुनाव संचालक थे और कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में जातिगत अंकगणित भी था। फिर भी आरएसएस की सक्रियता के चलते मतदान के पहले तक शहर और कस्बों में मोदी लहर दिखने लग गया था। आखिरकार संतोष पाण्डेय एक बड़े अंतर से चुनाव जीतने में सफल रहे। 

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