राजपथ - जनपथ
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कांग्रेस के प्रभारी पीएल पुनिया ने पिछले दिनों कई नेताओं से वन-टू-वन मुलाकात की। मुलाकात में एक-दो ने खुद को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की मांग की। इनमें से एक ब्राम्हण नेता भी थे, जो अविभाजित मध्यप्रदेश में संगठन के कर्ता-धर्ता रह चुके हैं। आर्थिक रूप से सक्षम इस नेता की खासियत यह रही है कि राज्य बनने के बाद जितने भी प्रदेश प्रभारी रहे हैं, वे सभी इस ब्राम्हण नेता को महत्व देते रहे हैं। पुनिया भी पिछले प्रभारियों से अलग नहीं हैं। लेकिन दिक्कत यह है कि जो पद वे मांग रहे हैं, उसके लिए वे किसी भी सूरत में फिट नहीं बैठ रहे हैं।
ब्राम्हण नेता का अच्छा-खासा जमीन का कारोबार है, लेकिन जमीनी कार्यकर्ताओं के बीच उनकी पैठ नहीं है। मीडिया जगत से जुड़े पुराने लोग जरूर ब्राम्हण नेता को पसंद करते हैं। वे पद में भले न हों, मीडिया जगत के लोगों का पूरा ख्याल रखते हैं। पुनिया के सामने दिक्कत यह है कि इस ब्राम्हण नेता को निगम-मंडलों में जगह देने के लिए सीएम भूपेश बघेल शायद ही तैयार हो और प्रदेश संगठन में उनके लायक कोई पद नहीं है। पुनिया दुविधा में भले ही हो, ब्राम्हण नेता को उम्मीद है कि सेवा-सत्कार फायदा जरूर मिलेगा। दरअसल टीवी के परदे पर अपने को देखते हुए कई लोगों का ऐसा आत्ममुग्ध हो जाना कुछ अटपटी बात नहीं है।
ताकतवरों के बीच समझौता
पिछले कुछ समय से एक बड़े बंगले को लेकर चल रहा विवाद सुलझ गया है। बंगले के पुराने काबिजदार और आबंटी के बीच सुलह होने की चर्चा है। सुलह इस बात पर हुआ है कि काबिजदार, आबंटी के पैतृक मकान की साज-सज्जा कराएंगे। काबिजदार के लिए कोई बड़ी बात नहीं है, पिछले 15 सालों में वे कईयों को घर दिला चुके हैं। मौजूदा निवास से इतना भावनात्मक रिश्ता कायम हो गया है कि इसे छोडऩे के एवज में कोई भी जायज-नाजायज मांग मानने के लिए तैयार थे। जिन्हें बंगला आबंटित किया गया था उनकी मांग इतनी छोटी है कि उसे मानने में कोई दिक्कत नहीं है। और ऐसा कोई समझौता सरकार को भी प्रशासनिक-भावनात्मक असुविधा से बचा रहा है। इससे सदियों पुराना यह सिद्धांत भी साबित होता है कि ताकतवरों के बीच समझौते होने की गुंजाइश अधिक रहती है, और कमजोरों के बीच कम।
गरीब प्रदेश में ऐसी रईसी?
सरकार में फिजूलखर्ची अगर न हो, तो रिश्वतखोरी कैसे होगी? कमीशनखोरी कैसे होगी? अभी मुख्यमंत्री के अपने गृहजिले दुर्ग में वनविभाग के सबसे बड़े अफसर, वन संरक्षक के दफ्तर की अच्छी-भली चारदीवारी को तोड़कर वहां लोहे की महंगी ग्रिल लगाई जा रही है। आज पर्यावरण दिवस पर पर्यावरण से जुड़े हुए इस विभाग में यह फिजूलखर्ची जारी है, और इससे धरती पर लोहा, सीमेंट, रेत की गैरजरूरी बर्बादी भी हो रही है। मजे की बात यह है कि मुख्यमंत्री की नजरों वाले जिले में यह काम नेता प्रतिपक्ष का सबसे ही करीबी अफसर करवा रहा है, और अभी चूंकि काम चल रहा है इसलिए सरकार इस बर्बादी की जांच भी कर सकती है।