राजपथ - जनपथ
एक-दो प्रकरणों को छोड़ दें, तो भूपेश सरकार ट्रांसफर-पोस्टिंग के मामलों में उदार रही है। उन अफसरों को महत्व दिया जा रहा है, जिनकी साख अच्छी है। इनमें से कुछ अफसर जो रमन सरकार के करीबी माने जाते रहे हैं, उनका भी महत्व कम नहीं हुआ है। मसलन, सीएम के ओएसडी अरूण मरकाम को ही लें, वे पुराने सीएम रमन सिंह के भी ओएसडी थे। सरकार बदलने के बाद सचिवालय के दागी-बागी टाइप के अफसरों को बदल दिया गया, लेकिन मरकाम और जनसंपर्क के उमेश मिश्रा का रूतबा बरकरार है।
अरूण मरकाम सरगुजा के पूर्व भाजपा सांसद कमलभान सिंह के दामाद हैं। मगर, इन रिश्तों को जानकर भी भूपेश बघेल ने उन्हें नहीं बदला। मरकाम मिलनसार और मेहनती अफसर माने जाते हैं। इसी तरह उमेश मिश्रा राज्य बनने के बाद से सीएम सचिवालय में हैं। वे अजीत जोगी, फिर रमन सिंह और अब भूपेश बघेल के साथ काम कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सबका साथ-सबका विकास, का नारा सबसे ज्यादा चर्चित रहा। मगर, बहुत कम लोग जानते हैं कि यह नारा छत्तीसगढ़ में तैयार हुआ था और इसे उमेश मिश्रा ने रमन सिंह के लिए गढ़ा था। उमेश मौजूदा सीएम भूपेश बघेल के संयुक्त सचिव के साथ-साथ संवाद के मुखिया भी हैं। रमन सरकार में संवाद भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर कुख्यात रहा और यहां की गड़बडिय़ों की पड़ताल ईओडब्ल्यू कर रही है। ऐसे में संस्था की छवि निखारने की जिम्मेदारी उमेश मिश्रा पर आ गई है। उनके आने के बाद से यहां काम में पारदर्शिता नजर आने लगी है।
राजभवन मेहमान भरोसे...
छत्तीसगढ़ के राज्यपाल की कुर्सी महीनों से अतिरिक्त प्रभार पर चल रही है। मध्यप्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को ही तब छत्तीसगढ़ का भी प्रभार दिया गया जब यहां के राज्यपाल बलरामजी दास टंडन गुजर गए। तब से अब तक यह राज्य अतिरिक्त प्रभार पर जारी है। लोगों का यह अंदाज था, और है, कि अगर केन्द्र में यूपीए सरकार बनती, तो छत्तीसगढ़ में कोई और राज्यपाल तैनात होते। लेकिन दिल्ली में मोदी सरकार, और राज्य में उसके सामने तनकर खड़ी हुई भूपेश सरकार का टकराव देखते हुए अब अंदाज है कि केन्द्र इस राज्य में पूर्णकालिक राज्यपाल तैनात करेगा, और वे राज्यपाल ऐसे होंगे जो कि राजनीति की समझ रखते भी होंगे।
दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ में बरसों पहले ई.एस.एल नरसिम्हन छत्तीसगढ़ के राजभवन से जब हैदराबाद ले जाए गए, तो उस वक्त वहां तेलंगाना राज्य बनना था। और 2009 से वे अब तक आन्ध्र और तेलंगाना दोनों के राज्यपाल हैं। उन्हें यूपीए सरकार ने तैनात किया था, लेकिन आईबी में उनके कामकाज की वजह से और इन दोनों राज्यों पर उनकी खास पकड़ को देखते हुए मोदी सरकार ने अपने पिछले पूरे कार्यकाल में नरसिम्हन को नहीं छुआ और वे आज तक दोनों राज्यों को देख रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में भाजपा के नेता राजभवन में कोई भूतपूर्व भाजपाई चाहते हैं ताकि वे वहां जाकर कांग्रेस सरकार के खिलाफ अपनी बात रख सकें। आनंदीबेन भी गुजरात की भाजपा-मुख्यमंत्री रही हुई हैं, लेकिन वे अतिरिक्त प्रभार की वजह से न तो छत्तीसगढ़ में अधिक समय रहतीं, और न ही यहां की भाजपा को उनसे कोई राहत मिलती है। आने वाले दिनों में जब नरेन्द्र मोदी-अमित शाह भाजपा के कुछ नेताओं का पुनर्वास सोचेंगे, तब छत्तीसगढ़ के राजभवन को कोई स्थायी निवासी मिलेंगे।
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