राजपथ - जनपथ

आखिरकार सरकार ने काफी उठा-पटक के बाद दवा निगम में घोटाले की जांच ईओडब्ल्यू से कराने का फैसला ले लिया। यह सबकुछ आसान नहीं था। करीब 3 सौ करोड़ से अधिक की दवा खरीदी में भारी गड़बड़ी हुई और इसमें ताकतवर लोग शामिल थे। पहली नजर में निगम के पूर्व एमडी वी रामाराव को दोषी ठहराया जा रहा है, क्योंकि उनके ही कार्यकाल में यह सबकुछ हुआ है।
सुनते हैं कि धमतरी के एक बड़े सप्लायर को घोटाले का मुख्य सूत्रधार माना जा रहा है। यह खेल रमन सरकार के पहले कार्यकाल में शुरू हुआ था। तब तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री डॉ. कृष्णमूर्ति बांधी और सचिव बीएल अग्रवाल का इस घोटालेबाज सप्लायर को संरक्षण मिला। तब एक-दो प्रकरणों को सीबीआई ने जांच में भी लिया था, तो कई प्रकरण अभी भी ईओडब्ल्यू में जांच के लिए पेंडिंग है। इन सबके बाद भी इस सप्लायर का रूतबा कम नहीं हुआ। रमन सरकार के तीसरे और आखिरी कार्यकाल में इस सप्लायर को काम देने के लिए दो मंत्री और कई प्रभावशाली लोग लगे रहे। दामाद बाबू का भी साथ मिला। दिग्गजों की सरपरस्ती में धमतरी के इस सप्लायर से जुड़ी कई ऐसी कंपनियों को करोड़ों की दवा सप्लाई का ऑर्डर मिल गया, जो कि दूसरे राज्यों में ब्लैक लिस्टेड थीं।
बाद में सरकार बदलने के बाद रामाराव की जगह आए निगम के एमडी भुवनेश यादव ने इन सबको ब्लैक लिस्ट भी किया। करोड़ों की दवा सप्लाई में गड़बड़ी की जांच कराने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी। चर्चा है कि धमतरी के इस सप्लायर के एक नजदीकी रिश्तेदार कांग्रेस में हैं और बड़े ठेकेदार हैं। उन्होंने एक बड़े बंगले को साधकर जांच रूकवाने की कोशिश की, लेकिन इसमें सफलता नहीं मिल पाई। स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव भ्रष्टाचार के मामले में सख्त कार्रवाई के पक्षधर रहे। ऐसे में ईओडब्ल्यूू से जांच कराने की उनकी अनुशंसा को फौरन मान लिया गया। जांच आगे बढ़ती है, तो दवा निगम के अफसरों के साथ-साथ सप्लायर का भी घिरना तय है।
भ्रष्टाचार का हाल यह था...
लेकिन इस निगम के कामकाज में संगठित भ्रष्टाचार का हाल यह था कि रायपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेज का एक विभाग पोस्ट गे्रजुएट कोर्स चालू करने के लिए मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की शर्तों के मुताबिक एक माईक्रोस्कोप चाहता था जो 5-6 लाख रुपये का ही था। पिछले दस बरस से विभाग से इसकी जरूरत लिखकर भेजी जाती रही, और इस दवा निगम से उसकी जगह पौन करोड़ रुपये का एक दूसरा माईक्रोस्कोप ले लेने के लिए दबाव डाला जाता रहा। यह पूरी खतो-किताबत फाईलों को मोटा करती गई, लेकिन निगम ने किफायती माईक्रोस्कोप लेने ही नहीं दिया, और अड़े रहा कि उससे दस गुना से अधिक का माईक्रोस्कोप लेने पर सहमति विभाग लिखकर दे। इसके बिना दस बरस में वहां पोस्ट गे्रजुएट सीट मंजूर नहीं हुईं, और परले दर्जे के भ्रष्ट इस निगम ने जरूरत का मांगा गया माईक्रोस्कोप लेकर नहीं दिया। (rajpathjanpath@gmail.com)