राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : नई राज्यपाल, पुरानी बातें...
18-Jul-2019
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : नई राज्यपाल, पुरानी बातें...

कॉलेज शिक्षक के रूप में काम कर चुकीं छत्तीसगढ़ की नई राज्यपाल अनसुईया उईके के कांग्रेस के पुराने नेताओं से अच्छे संबंध रहे हैं। वे कांग्रेस दिग्गज बसंतराव उईके की पुत्री हैं, जो कि 70 के दशक में अविभाजित मध्यप्रदेश में कांग्रेस के बड़े नेता थे। वे श्यामाचरण शुक्ल के करीबी थे। 

बहुत कम लोगों को मालूम है कि वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा ने अनसुईया को कॉलेज शिक्षक की नौकरी दिलाने में मदद की थी। बात वर्ष 82-83 की है, जब अविभाजित मध्यप्रदेश की अर्जुन सिंह सरकार में मोतीलाल वोरा उच्चशिक्षा मंत्री थे। उस समय नए कॉलेज खोले जा रहे थे। वोराजी ने उच्च शिक्षा मंत्री रहते सौ नए कॉलेज खोल दिए थे। शिक्षकों की कमी को पूरा करने के लिए उन्होंने नया रास्ता निकाला और कॉलेज शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया को पीएससी के दायरे से निकालकर मेरिट के आधार पर करने का फैसला लिया। इस तरह करीब 22 सौ शिक्षक एडहॉक भर्ती किए गए थे। 

बताते हैं कि भर्ती प्रक्रिया के दौरान अनसुईया उईके वोराजी से मिली थीं। योग्यता तो थी ही, वोराजी की सिफारिश पर अनसुईया उईके को पसंदीदा जगह पर कॉलेज शिक्षक के रूप में नियुक्ति मिल गई। बाद में यूजीसी ने कॉलेज शिक्षकों की भर्ती के लिए मापदंड बदल दिया। कई शिक्षक यूजीसी के मापदण्डों पर खरा नहीं उतर पा रहे थे उन्हें कॉलेज छोडऩा पड़ा। ऐसे शिक्षकों के लिए वोराजी ने फिर रास्ता बनाया और ये शिक्षक हाईस्कूल में नियुक्त कर दिए गए। बाकी योग्य शिक्षक जल्द स्थाई भी हो गए, जिनमें अनसुईया उईके भी रहीं, जो कि बाद में नौकरी छोड़कर सक्रिय राजनीति में आईं और विधायक-मंत्री, राज्यसभा सदस्य  होते हुए अब छत्तीसगढ़ की राज्यपाल नियुक्त हुईं हैं।

मरणोपरांत भी सेवक चाहिए...
मिस्र के पुराने इतिहास को पढ़ें, तो उसमें राजा-रानियों के साथ उनके दास-दासियों को भी दफन करने की परंपरा पता लगती है, उसके अलावा रोज के उनके इस्तेमाल के सामान भी दफन कर दिए जाते थे, और यह माना जाता था कि मृत्यु के बाद भी उन्हें रोज के सामानों और सेवकों की जरूरत पड़ती रहेगी। 

कुछ इसी किस्म का हाल आज के अफसरों का होता है। जो जितने बड़े अफसर होते हैं, उनके साथ उतने ही निष्ठावान सेवक दफन कर दिए जाते हैं। छत्तीसगढ़ में अब अभी-अभी एक मामला सामने आया जिसमें सरकार के एक सबसे ऊंचे ओहदे से रिटायर होकर एक लंबा पुनर्वास प्राप्त कर चुके अफसर ने अपने एक पुराने सेवक से सरकार को एक अर्जी भिजवाई। यह सेवक सरकारी अमले का था, और पिछले बीस बरस से मिस्र के इसी राजा की सेवा कर रहा था। अब जब राजा रिटायर हुआ तब भी सेवक की नौकरी जारी थी, और जैसा कि सरकार में आम इंतजाम चलता है, इस सेवक की तैनाती भूतपूर्व राजा के बंगले पर ही थी। अब जब सेवक रिटायर हो गया, तो उसकी तनख्वाह कौन दे? ऐसे में सेवक ने संविदा नियुक्ति के लिए अपने विभाग में अर्जी लगा दी है कि उसे संविदा पर आगे भी रखा जाए। मतलब यह कि बीस बरस के बाद भी वह बंधुआ मजदूर की तरह बंगला ड्यूटी करता रहे। 

लेकिन ऐसी चर्चा है कि विभाग ने संविदा की अर्जी खारिज कर दी है कि इस ओहदे पर पहले से विभाग में जरूरत से ज्यादा लोग काम कर रहे हैं, और इस पर संविदा का कोई न्यायसंगत तर्क नहीं बनता। 

लोगों ने अभी-अभी दुर्ग जिला अदालत से निकली एक खबर पढ़ी है कि किस तरह वहां की एक महिला जज ने अदालत के एक कर्मचारी द्वारा जज-बंगले पर ड्यूटी करने से मना कर दिया तो जज ने उसे दिन भर अपनी अदालत के दरवाजे पर खड़ा रहने की सजा दी। इस पर जब खड़े-खड़े वह चतुर्थ वर्ग गरीब कर्मचारी चक्कर खाकर गिर गया तो अदालत के कर्मचारियों ने उसे अस्पताल पहुंचाया, और उस महिला जज के खिलाफ मोर्चा खोला। लेकिन सरकार में तकरीबन हर अफसर अपने बंगले पर ऐसी बेगारी लेने के आदी रहते हैं, और उसी वजह से दुर्ग अदालत का यह मामला सबकी सहूलियत के लिए दफन कर दिया गया। 

अब रायपुर में राज्य स्तर की बेगारी का यह मामला फाईलों पर तो एक छोटे कर्मचारी की संविदा अर्जी की शक्ल में आया है, लेकिन इसके पीछे के राजा का नाम भी सबको मालूम है। अब स्टिंग ऑपरेशन करने के शौकीन पत्रकार अगर बड़े नेताओं और अफसरों के बंगलों पर काम करने के लिए रोज जाने वाले कर्मचारियों के वीडियो बनाएं, और पता लगाएं कि वे किस-किस विभाग में क्या-क्या काम करते हुए बताए जाते हैं, तो अकेले राजधानी रायपुर में हजारों कर्मचारी अमानवीय बेगारी करने से बच जाएंगे। आज तो हालत यह है कि मौजूदा और भूतपूर्व नेता और अफसर अपने साथ-साथ अपने रिश्तेदारों के लिए भी सरकारी कर्मचारियों का बंधुआ मजदूर की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं, और किसी कर्मचारी संघ को भी यह मामला उठाना चाहिए। जब पुलिस-परिवार आंदोलन कर सकते हैं, तो खुद कर्मचारी तो बंगला ड्यूटी के खिलाफ खड़े हो ही सकते हैं। दुर्ग की अदालत में एक छोटे से कर्मचारी ने विरोध करने का हौसला दिखाया है, और रायपुर में ऐसे अरबपति भूतपूर्व राजाओं के खिलाफ भी कुछ लोगों को तो मेहनत करनी ही चाहिए। 
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