राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : फेरबदल सबके लिए अच्छा...
17-Aug-2019
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : फेरबदल सबके लिए अच्छा...

फेरबदल सबके लिए अच्छा...

पर्यटन मंडल में एमडी बनाए गए भीमसिंह ने शायद दो-चार दिन ही वहां काम किया, और वहां से निकल लिए। वे हाऊसिंग बोर्ड चले गए जो कि बहुत अच्छी हालत में तो नहीं है, लेकिन पर्यटन मंडल जैसी बुरी हालत में भी नहीं है। आज 17 तारीख हो गई है, और इस मंडल में अभी तक कर्मचारियों की तनख्वाह भी नहीं बंटी है। पिछले एमडी दूसरे मदों के पैसे तनख्वाह में डाल देते थे, और बाद में तनख्वाह के पैसे आने पर उन मदों की भरपाई कर दी जाती थी। भीमसिंह ने फाईल पर ही लिख दिया कि किसी दूसरे मद का पैसा वेतन पर खर्च न किया जाए। खुद तो चले गए, लेकिन यह हुक्म छोड़ गए। लेकिन इन तबादलों से एक बात अच्छी हुई कि हाऊसिंग बोर्ड में प्रबंध संचालक शम्मी आबिदी मार्कफेड चली गईं जहां काम अधिक है। भीमसिंह पर्यटन मंडल के मुकाबले अधिक काम वाले, चाहे ठप्प पड़े हुए, हाऊसिंग बोर्ड चले गए। और नई आईएएस बनीं इफ्फत आरा को पहली बार पर्यटन बोर्ड का प्रबंध संचालक बनने का मौका मिल गया। उनकी साख काफी अच्छी है। ऐसे में पर्यटन मंडल को उबारने का कठिन दायित्व उन पर है। इन दोनों मंडलों की दुर्दशा के लिए पिछली सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। 
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि पर्यटन क्षेत्र को विकसित किए बिना होटल-मोटल निर्माण के नाम पर करोड़ों फूंक दिए गए। हाल यह है कि होटल-मोटल जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पड़े हैं। निगम पर करोड़ों का बोझ पड़ा सो अलग। ऐसे में निगम का बंठाधार तो होना ही था। कुछ इसी तरह की कहानी हाउसिंग बोर्ड की भी है। बोर्ड का पुनर्गठन हुआ, तो अपनी लोक लुभावन स्कीम के चलते बोर्ड जल्द ही फायदे में आ गई। बोर्ड की पोस्टिंग को मलाईदार माना जाने लगा। लेकिन पिछले पांच सालों में अंधाधुंध मकान-काम्पलेक्स बनाए गए। ग्राहक तो नहीं मिले, अलबत्ता निर्माण के एवज में जमकर कमीशनखोरी हुई। हाल यह है कि नवा रायपुर में हजारोंं मकान खाली पड़े हैं और खरीददार नहीं मिल रहे हैं। बोर्ड कर्ज के भंवरजाल में फंस गया है। यहां तैनात रहे पदाधिकारियों और अफसरों के खिलाफ भ्रष्टाचार के ठोस प्रमाण भी मिले हैं और इसकी जांच ईओडब्ल्यू कर रही है। चर्चा है कि जांच ठीक से हुई तो, नेता प्रतिपक्ष भी तकलीफ में आ सकते हैं।  

दारू की गड़बड़ी को बचाने...

प्रदेश के सबसे अधिक मंत्रियों, और मुख्यमंत्री वाले जिले दुर्ग की एक सरकारी शराब दुकान में प्लेसमेंट एजेंसी के कर्मचारी को दाम से काफी अधिक पर शराब बेचते हुए इलाके के लोगों ने घेर लिया, और उसकी पिटाई की तैयारी चल रही थी। प्रदेश की अधिकतर सरकारी दुकानों में ओवररेट पर दारू बिक रही है, और चूंकि पीने वालों के लिए किसी की हमदर्दी नहीं रहती, उनकी दिक्कत पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा। ऐसे में जब एक कर्मचारी के पिटने की नौबत आ गई, तो पुलिस ने मौके पर पहुंचकर उस दुकान से कर्मचारी को निकाला, और उसकी हिफाजत के लिए उसे थाने ले जाकर बिठा दिया। पिटाई से बचाने के लिए की गई यह कार्रवाई आबकारी विभाग को ऐसा परेशान कर गई कि उस कर्मचारी को पुलिस थाने से निकालने के लिए विभाग के कुछ सबसे बड़े अफसर फोन पर जुट गए। एक तरफ तो कागजों पर यह चेतावनी जारी होती है कि अधिक रेट पर शराब बेचते कोई मिले तो उसके खिलाफ पुलिस रिपोर्ट की जाए, दूसरी तरफ जब कोई अधिक रेट पर बेचते ऐसे घिर गया, तो प्लेसमेंट एजेंसी के कर्मचारी को छुड़ाने के लिए सरकार और विभाग के दिग्गज जुट गए। अब ऐसे हाल में दारू अंधाधुंध मनमाने रेट पर नहीं बिकेगी, तो क्या होगा? यह भी सुनाई पड़ता है कि इस विभाग के एक बड़े अफसर ने अपने परिवार को पहले ही यूरोप में बसा दिया है, ताकि यहां मामला ज्यादा गर्म हो तो छोडक़र जाने में अधिक समय न लगे। भाजपा के लोग इस सरकार की आबकारी-गड़बडिय़ों को पकडऩे के लिए पिछली सरकार के आबकारी मंत्री अमर अग्रवाल की तरफ देखते हैं जिन्हें इस धंधे की समझ दारू ठेकेदारों से बढक़र थी। लेकिन उनका मुंह इसलिए नहीं खुल रहा है कि उनके वक्त की फाईलों का समुद्र आज की सरकार के पास, और एसीबी में है जहां पर खरीदी की गड़बड़ी 1500 करोड़ रूपए आंकी गई है। अब ऐसी फाईलों के जखीरे के सामने अमर अग्रवाल का मुंह खुले भी तो कैसे खुले?

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