राजपथ - जनपथ
गाडिय़ों पर आतंकी तख्तियां
राजस्थान सरकार ने अभी तय किया है कि गाडिय़ों पर किसी धर्म के निशान, किसी संगठन या ओहदे का नाम लिखने पर चालान किया जाएगा। अब छत्तीसगढ़ में अगर देखें, तो सत्तारूढ़ पार्टी के आधे से अधिक पदाधिकारियों की गाडिय़ों का चालान हो जाएगा, और पिछले सत्तारूढ़ पार्टी के भी एक चौथाई पदाधिकारी तो अब तक पुरानी तख्तियों को ढो ही रहे हैं। फिर सरकारी विभागों में एक बार जिसने टैक्सी चला ली, वे लोग अपनी गाडिय़ों पर स्थायी रूप से ऑन गवर्नमेंट ड्यूटी लिखवाकर चल रहे हैं। लेकिन सबसे बड़ा और महान तबका पत्रकारों का है। प्रेस लिखाकर चलने वाले प्रदेश की राजधानी में इतने अधिक हैं कि लगता है कि मीडिया में काम करने वाले पत्रकारों के अलावा कपड़े प्रेस करने वाले, और बदन प्रेस करने वाले भी अपनी गाडिय़ों पर प्रेस लिखाकर चल रहे हैं। अभी तो राज्य सरकारें देश के नए ट्रैफिक जुर्माना-सजा कानून से जूझ रही हैं कि लोगों पर कैसे इतना बोझा डाला जाए, या न डाला जाए तो कब तक न डाला जाए, ऐसे में तख्तियों और संगठन या पदनाम पर चालान का बवाल कौन खड़ा करे। राज्य में विधानसभा सदस्यों, सांसदों, या पंचायत-म्युनिसिपल के पदाधिकारियों की तख्तियां तो नंबर प्लेट की जगह लगी रहती हैं जो रियायत पूरे राज्य में सिर्फ राज्यपाल को हासिल है। इसके बावजूद किसी का कुछ नहीं बिगड़ता, किसी का चालान नहीं होता, और आम जनता जुर्माना पटाती रहती है। विधानसभा अध्यक्ष को भी चाहिए कि अपने सदस्यों को गाडिय़ों पर नंबर प्लेट की जगह विधायक लिखने से मना करें क्योंकि इससे विधानसभा की गरिमा कम होती है कि कानून बनाने वाले लोग इस तरह धड़ल्ले से कानून तोड़ते हैं।
जर्नलिस्ट बनने का शौक
पता नहीं जर्नलिस्ट के काम में ऐसा क्या आकर्षक है कि तमाम किस्म के लोग पत्रकार होने का कार्ड रखना चाहते हैं, कहीं-कहीं से बनवा लेते हैं, और एक्टिविस्ट रहते हुए भी अपने आपको जर्नलिस्ट जाहिर करते रहते हैं। नतीजा यह होता है कि एक्टिविज्म का नफा होता है, और जर्नलिज्म का नुकसान। दरअसल जब कभी जर्नलिस्ट किसी और काम में शामिल हो जाते हैं, तो अपने पेशे का सीधा-सीधा नुकसान करते हैं, और जब दूसरे पेशों के लोग जर्नलिस्ट की खाल भी ओढ़ लेते हैं, तो भी नुकसान जर्नलिज्म का ही होता है। इन दिनों गाडिय़ों पर ऐसे स्टिकर दिखना आम हैं जिनमें लोग राजनीतिक दल का झंडा या पदनाम भी लगाए होते हैं, और प्रेस या पत्रकार का लेबल भी।
बारिश और टाटा स्काई
अभी जब जमकर बारिश हो रही है तो टाटा स्काई जैसे डिश एंटीना पर सिग्नल आने तुरंत बंद हो गए हैं। लोगों का तजुर्बा है कि कोई छत पर जाकर इस एंटीना के बगल में इतना फुसफुसा भर दे कि पानी गिर रहा है, तो यह काम करना बंद कर देता है।
कब मिलेंगे ऐसे सांसद-विधायक?
ब्रिटिश पार्लियामेंट में अभी एक सिक्ख सांसद ने प्रधानमंत्री पर इतना तीखा हमला किया कि पूरा सदन तालियों से गूंजते रहा। उसने प्रधानमंत्री को याद दिलाया कि किस तरह उन्होंने बुर्का पहनी महिलाओं को एटीएम मशीनों जैसा दिखने वाला लिखा था और उससे किस तरह नस्लीय नफरत बढ़ी थी। डेढ़-दो मिनट के इस बयान की दुनिया भर में जमकर तारीफ हो रही है, और सोशल मीडिया पर उस वीडियो को बार-बार पोस्ट किया जा रहा है। इसे देखते हुए एक सज्जन ने कहा कि हिन्दुस्तान की पार्लियामेंट में इतने कम शब्दों में इतना तीखा और इतना जायज, और इतना हौसलेमंद बयान देने वाले जाने कब होंगे। अभी हाल में तृणमूल कांग्रेस से सांसद बनी, और पहले कार्पोरेट सेक्टर में काम कर चुकीं एक महिला ने अंग्रेजी में जब इसी किस्म का धुआंधार हमला बोला था, तब भी लोगों ने लिखा था कि हिन्दी में बोलने वाले ऐसे लोग भी संसद में चाहिए जिनकी बात हिन्दीभाषी लोग समझ सकें, और प्रभावित हो सकें। फिलहाल सांसदों और विधायकों को इस सिक्ख ब्रिटिश सांसद का छोटा सा बयान जरूर सुनना चाहिए कि शब्दों की एक टोकरा बर्बादी के बिना भी अखबारी सुर्खी की तरह छरहरा हमला कैसे किया जा सकता है जिस पर प्रधानमंत्री तक की बोलती बंद हो जाए।
सजा के बीच मजा
हिन्दुस्तानी लोग तकलीफों के बीच भी मजा लेने से नहीं चूकते। दर्द से कराहते रहते हैं, और लतीफे बनाते रहते हैं। अभी ट्रैफिक चालान के खतरों के बीच जीते हुए लोग बैंकों के विलय पर एक लतीफा लिख रहे हैं- जिस तरह बैंकों का विलय हो गया, उसी तरह एक ही किस्म का डिंडोरा पीटने वाले टीवी समाचार चैनलों का भी विलय हो जाना चाहिए ताकि जनता चैनल बदले बिना एक साथ सभी का मिलाजुला प्रचार बैंक की एक ब्रांच की तरह पा सके। इससे रिमोट की बैटरी भी बचेगी।
हिन्दुस्तान में इन दिनों सोशल मीडिया पर लोगों के हास्य और व्यंग्य की एक नई ऊंचाई देखने मिल रही है। जो लोग गंदगी फैला रहे हैं वो तो अलग हैं, लेकिन उनसे परे बहुत से लोग हैं जो कि बड़े कल्पनाशील तरीके से पैनी बातें लिख रहे हैं।
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