राजपथ - जनपथ
अंतागढ़ के विवाद का अंत ही नहीं...
अंतागढ़ प्रकरण एक बार फिर सुर्खियों में है। वजह यह है कि उस समय के कांग्रेस प्रत्याशी मंतूराम पवार ने कोर्ट में बयान देकर हलचल मचा दी है कि उन्होंने दबाव में नाम वापस लिया था। अब उन्होंने न सिर्फ इस प्रकरण में लेन-देन का खुलासा किया, बल्कि तत्कालीन सीएम रमन सिंह और अजीत जोगी को इसके पीछे का मुख्य सूत्रधार भी बता दिया। मंतूराम पवार के पलटी मार देने से रमन सिंह-भाजपा बचाव की मुद्रा में आ गए हैं।
मंतूराम पहले नाम वापसी के पीछे किसी तरह दबाव-प्रलोभन से इंकार करते रहे हैं। चर्चा है कि मंतूराम का कोर्ट में धारा-164 के तहत दर्ज बयान काफी हद तक सही है। आगे कोर्ट में उनका बयान टिकेगा या नहीं, यह अभी साफ नहीं है। वे पहले हाईकोर्ट में नाम वापसी प्रकरण में दबाव-प्रलोभन को झूठा करार देकर जमानत ले चुके हैं।
सुनते हैं कि प्रकरण की ठीक जांच हुई, तो एक महिला अफसर भी लपेटे में आ सकती हैं। हल्ला यह है कि रमन सचिवालय के लोगों ने नाम वापसी की पटकथा पहले से ही लिख ली थी। महिला अफसर के जरिए नाम वापस करा देर सवेर मंतूराम को अहम पद देने की योजना थी। पर इसी बीच प्रकरण में बेटे-दामाद की भी एंट्री हो गई। लेन-देन भी हो गया। चर्चा तो यह भी है कि दामाद अमेरिका से सभी लोगों के संपर्क में थे। अब अगर उस समय के फोन-कॉल की जांच हुई, तो बात आगे बढ़ सकती है। लेकिन इसके लिए फिर केन्द्र सरकार की मदद की जरूरत होगी, जो कि बदली परिस्थितियों में आसान नहीं दिख रहा है। ऐसे में इस मामले के ज्यादा किसी नतीजे तक पहुंचने की संभावना पता नहीं कितनी है।
चेंबर सीढ़ी चढऩे वाले पहले सीएम?
सीएम भूपेश बघेल ने चेम्बर भवन जाकर सबको चौंका दिया। वे पहले सीएम हैं, जिन्होंने प्रदेश के सबसे बड़े व्यापारी संगठन के भवन की सीढ़ी चढ़कर न सिर्फ व्यापारियों की समस्याएं सुनी, बल्कि कई घोषणाएं भी की। वैसे तो भाजपा व्यापारियों के ज्यादा करीब रही है, लेकिन पिछले 15 बरसों में न तो सीएम बल्कि कोई भी मंत्री भी चेम्बर दफ्तर नहीं गए।
व्यापारियों की नाराजगी भाजपा के मंत्री अमर अग्रवाल को लेकर ज्यादा रही हैं। वे जीएसटी आदि को लेकर सुझावों को अनदेखा कर देते थे। सीएम भूपेश बघेल के पास व्यापारियों ने एक अहम समस्या की ओर उनका ध्यान आकृष्ट कराया और कहा कि अकेले रायपुर नगर निगम की 5 सौ से अधिक दुकानें बनकर खाली पड़ी हैं। यह भी बताया गया कि पूरा पैसा देने के बाद भी 7 फीसदी किराया देना पड़ता है। सीएम हैरान रह गए। उन्होंने पूछ लिया कि पिछली सरकार में ये सब क्यों ठीक नहीं कराया। जवाब मिला कि पिछली सरकार के समक्ष भी ये बातें रखी गई थी तब सरकार ने कोई रूचि नहीं ली। सीएम ने कहा कि जल्द ही इस मामले में दिखवाएंगे। कुल मिलाकर सीएम ने अपनी साफगोई से व्यापारियों को फिलहाल तो खुश कर दिया है।
सैकड़ों करोड़ पड़े हैं, काम करवाने वाले नहीं
छत्तीसगढ़ सरकार के कई विभागों का हाल यह है कि केंद्र सरकार से आए हुए सैकड़ों करोड़ पड़े हुए हैं जिनका इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है क्योंकि उन विभागों में इतने सारे काम करवाने के लिए तकनीकी अफसरों का ढांचा नहीं है। इनमें से एक आदिम जाति कल्याण विभाग है जहां किसी काबिल इंजीनियर की कमी से सैकड़ों करोड़ रुपये पड़े हुए हैं और मंजूर योजनाएं आगे ही नहीं बढ़ पा रही हैं। अभी मुख्यमंत्री ने आदिवासी इलाकों में ओबीसी छात्र-छात्राओं के लिए हॉस्टल बनाने की घोषणा भी कर दी है। घोषणा भी है, बजट भी है, लेकिन बनाने के लिए इंजीनियर नहीं हैं। दूसरे कई राज्यों में एक दूसरे विभाग के इंजीनियरों को लेकर निर्माण कार्य आगे बढ़ाने की परंपरा है, लेकिन छत्तीसगढ़ लीक पर चल रहा है। ऐसे ही नक्सल प्रभावित इलाकों में लोक निर्माण विभाग से कई ऐसी सड़कें बननी हैं जिनके लिए केंद्र सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय से सैकड़ों करोड़ आकर पड़े हैं, लेकिन काम आगे नहीं बढ़ रहा है, बल्कि शुरू ही नहीं हो रहा है। ऐसी हालत में जब अगली बार केंद्र सरकार से किसी योजना के लिए बजट मांगा जाता है, तो वहां से जवाब मिलता है कि काम निपटाने की राज्य की क्षमता ही नहीं है।
दूसरी तरफ राज्य सरकार की कई ऐसी योजनाएं रहती हैं जिनके लिए बजट की कमी रहती है और उस वजह से वे काम नहीं हो पाते। एक ही इंसान की दो जेबें, एक लबालब, दूसरी खाली।
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