राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : हम साथ-साथ हैं...
17-Sep-2019
 छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : हम साथ-साथ हैं...

हम साथ-साथ हैं...

एसआईटी नान घोटाले की जांच कर रही है। यह मामला बेहद उलझा हुआ है। कौन-किससे मिला हुआ है, यह समझना कठिन हो रहा है। एसआईटी ने निलंबित डीजी मुकेश गुप्ता, नान के एकाउंटेट चिंतामणि चंद्राकर सहित कई और के खिलाफ कार्रवाई की है। चर्चा तो यह भी है कि सबका एक-दूसरे से कनेक्शन है। यह भी संयोग है कि सबके वकील एक ही हैं। 

मसलन, मुकेश गुप्ता का जिला कोर्ट में प्रकरण अमीन खान देख रहे हैं। गुप्ता, अमीन के साथ ही एसआईटी के समक्ष हाजिर हुए थे। अमीन खान, चिंतामणि चंद्राकर की पैरवी कर रहे हैं। अमीन खान ने मुकेश गुप्ता के करीबी डीएसपी आरके दुबे की भी हाईकोर्ट में पैरवी की थी। यह भी दिलचस्प है कि सुप्रीम कोर्ट के नामी वकील महेश जेठमलानी, मुकेश गुप्ता की हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में पैरवी कर रहे हैं। जेठमलानी, नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक द्वारा नान घोटाले की एसआईटी जांच के खिलाफ दायर याचिका की भी पैरवी कर रहे हैं। ऐसे में यह समझना मुश्किल नहीं है कि ये सभी साथ-साथ हैं...।

राजभवन को क्यों कोंचा जा रहा है?
छत्तीसगढ़ की नई राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उईके राज्य की पहली राजनीतिक राज्यपाल हैं, और इनके पहले सारे राज्यपाल अफसर की जिंदगी से निकलकर आए हुए थे। आमतौर पर माना जाता है कि केंद्र के विरोधी दल की सरकार वाले राज्य में राज्यपाल को दिक्कत खड़ी करने के लिए भेजा जाता है, लेकिन दो-तीन ऐसे सार्वजनिक कार्यक्रम हुए जिनमें राज्यपाल ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की खुलकर तारीफ की, और  राज्य सरकार के कार्यक्रमों को केंद्र की एक बैठक में बहुत अच्छी तरह पेश भी किया। 

लेकिन राज्य सरकार के अफसरों के बर्ताव से राजभवन कुछ हक्का-बक्का है। जब राज्यपाल के नाम से एक फर्जी चिट्ठी छत्तीसगढ़ के कुछ लोगों को भेजी गई, तो इस अखबार 'छत्तीसगढ़' में उसकी खबर छपी। खबर के साथ राज्यपाल का उस बारे में लंबा बयान भी छपा, जिसमें उन्होंने कहा था कि वे इसकी पुलिस रिपोर्ट करने जा रही हैं। इसके बाद जब राजभवन के सचिव की ओर से पुलिस के नाम शिकायत बनाई गई और राजभवन के एक बड़े अफसर एक बड़े पुलिस अफसर से जाकर मिले, तो उन्हें डांट खानी पड़ी कि पहले अखबार में छपवाओ और उसके बाद शिकायत लेकर आओ! खैर अखबार में खबर राजभवन ने नहीं छपवाई थी, और पुलिस के बड़े अफसरों को इतनी बुनियादी समझ रहनी चाहिए कि अखबार में छप जाने से किसी मामले के कानूनी पहलू पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। रफाल विमान डील के कागजात दिल्ली के अखबार, द हिंदू, में छप जाने के बाद भी सुप्रीम कोर्ट ने उस पर आधारित जनहित याचिका मंजूर की थी, लेकिन जाहिर है कि हर अफसर हिंदू जैसे अखबार पढ़ते नहीं हैं।
 
लेकिन बात महज इतनी ही नहीं है। राज्यपाल के दिल्ली प्रवास पर राजभवन के अधिकारियों को वहां राज्य शासन के भवन में कमरा मिलने में दिक्कत हुई, और इसे सुनकर भी राज्यपाल हैरान हो गईं। राज्यपाल ने अपने रायगढ़ प्रवास के दौरान राजभवन में तैनात अपने एक एडीसी के घर जाना तय किया क्योंकि वह एडीसी वहीं का रहने वाला है। इसे लेकर सत्ता में बैठे कई-कई लोग इतने नाराज हुए, और उस अफसर तक तरह-तरह की चेतावनी भेजी गई कि राज्यपाल को अपने घर ले जाना ठीक नहीं है। अब अगर राज्यपाल खुद होकर अपने किसी मातहत के घर जाना चाहती हैं, तो मातहत भला क्या कहकर उसके लिए मना कर सकते हैं? 

कुल मिलाकर सरकार में बैठे कई लोग बैठे-ठाले राज्यपाल को नाराज करने की कोशिश में लगे दिखते हैं क्योंकि इनमें से हर किसी को राजभवन के साथ शिष्टाचार का सलीका ठीक से मालूम है, और उसके बाद भी मुख्यमंत्री की जानकारी के बिना ऐसी छोटी-छोटी शिकायतों का मौका दिया जा रहा है।

अफसरों का क्या हो रहा है?
रायपुर शहर के बीच सैकड़ों करोड़ की लागत से बने एक्सपे्रस हाईवे का हाल बुरा दिख रहा है। विशेषज्ञों की जांच बताती है कि न सिर्फ सड़क खराब बनी है, बल्कि जो फ्लाईओवर या पुल बने हैं, उनकी दीवारें भी तिरछी हो रही हैं। साढ़े तीन सौ करोड़ का एक बड़ा हिस्सा खतरे में है। एक तरफ शहर के बीच बना स्काईवॉक गले की हड्डी बना हुआ है, और दूसरी ओर उससे दस गुना बड़ी यह दूसरी हड्डी गले में और खड़ी हो गई है। अब सवाल यह है कि जिन अफसरों ने इस पूरे दौर में नियमों के खिलाफ जाकर, विभागों की इजाजत के बिना स्काईवॉक बनवाया उनका क्या हो रहा है? क्या योजना बनाने की कार्रवाई भी ठेकेदार पर ही होगी? और दूसरी तरफ बेहद घटिया कंस्ट्रक्शन करने वाली कंपनी क्या महज जुर्माना पटाकर बच निकलेगी, या सरकार उससे और भी वसूली कर पाएगी? ठेकेदार का चाहे जो हो, सैकड़ों करोड़ के इस निर्माण में हर जगह जिम्मेदारी अफसरों की बनती थी, और किसी अफसर पर जिम्मेदारी तय होते दिख नहीं रही है।

राज्य में बड़े-बड़े घोटाले और बड़े-बड़े जुर्म नई सरकार निकाल रही है, लेकिन इनके होने के वक्त जिम्मेदारी जिन अफसरों पर थी उनमें से कौन-कौन कटघरे में हैं, और कौन-कौन पूरी तरह अनछुए हैं इसे लेकर राज्य के अफसरों में बड़ी सुगबुगाहट चल रही है। कुछ लोगों का कहना है कि रंगा और बिल्ला में से रंगा को सजा हो और बिल्ला मुस्कुराता रहे यह अटलजी के शब्दों में- यह बात ठीक नहीं है...।

कल जब एक आईएफएस अफसर को श्रद्धांजलि देने के लिए अरण्य भवन में अफसर जुटे तो वहां भी इसी बात को लेकर चर्चा चल रही थी कि छांट-छांटकर सजा, और छांट-छांटकर मजा से कुछ और लोग जीते जी ही मर रहे हैं।
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