राजपथ - जनपथ
मामलों का ढेर
राजस्व मंडल में प्रकरणों का अंबार लग गया है। वैसे तो यहां चेयरमैन अजय सिंह हैं, लेकिन कोई और सदस्य नहीं होने से राजस्व प्रकरणों की सुनवाई टल रही है। सुनते हैं कि अजय सिंह ने कह दिया है कि वे सिर्फ रायपुर के प्रकरणों को ही सुनेंगे। बिलासपुर और बस्तर संभाग के प्रकरणों की सुनवाई नहीं हो रही है। अजय सिंह से पहले केडीपी राव और रेणु पिल्ले यहां पदस्थ थे। दोनों का काम बंटा हुआ था और राजस्व प्रकरणों की सुनवाई लगातार हो रही थी। अब अजय सिंह का साथ देने के लिए कोई दूसरा सदस्य नहीं है, तो सुनवाई के लिए तारीख पर तारीख बढ़ती जा रही है।
बाकी क्या असामान्य हैं?
चुनाव और स्कूल-कॉलेज के दाखिले की खबरें आती हैं, या सरकारी नौकरी की बात आती है तो तुरंत आरक्षण की बात भी आ जाती है। आरक्षण के कई किस्म के तबके हैं, एसटी, एससी, ओबीसी, जनरल-ईडब्ल्यूएस, फ्रीडम फाईटर, विकलांग, वगैरह-वगैरह।
लेकिन इसका एक शब्द परेशान करता है, सामान्य श्रेणी। अब जनरल केटेगरी के लिए इस्तेमाल होने वाला यह शब्द बिना कुछ कहे हुए एक ऐसी धारणा पैदा करता है कि सामान्य से परे के बाकी तबके कुछ असामान्य हैं। अंगे्रजी के जनरल शब्द का यह अनुवाद सही नहीं है और इसके बारे में कुछ करने की जरूरत है। भाषा की बात करें तो दुनिया के हर लोकतंत्र में भाषा के कई शब्द वहां के समाज में फैली हुई और प्रचलित बेइंसाफी के मुताबिक बने हुए रहते हैं। हिन्दी में किसी जानवर को नरभक्षी कहा जाता है, मानो नारी खाने के लायक भी न हो। इसी को उर्दू में आदमखोर कहा जाता है, यानी केवल मर्द खाने वाला जानवर। और अंगे्रजी में भी ऐसे जानवर के लिए मैनईटर शब्द ही है, मानो उसे वूमेन खाना पसंद न हो।
भाषा से जुड़े कहावत और मुहावरे भी ऐसी ही सामाजिक बेइंसाफी से भरे हुए होते हैं जो कि दलित-आदिवासी, कमजोर, बीमार, महिला, गरीब, विकलांग के खिलाफ होते हैं। लोगों को भाषा की बेइंसाफी पर चर्चा करनी चाहिए और उसे सुधारने पर जोर देना चाहिए।
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