राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : एडीजी आईजी बना दिए गए?
04-Nov-2019
 छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : एडीजी आईजी बना दिए गए?

एडीजी आईजी बना दिए गए?
छत्तीसगढ़ सरकार ने बीती रात करीब दो दर्जन आईपीएस अफसरों के तबादले किए जिसमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण तबादला खुफिया विभाग के मुखिया का रहा। इस कुर्सी पर अब तक तैनात एडीजी संजय पिल्ले पहले भी एक बार खुफिया विभाग में रह चुके थे, इसलिए उनके लिए यह काम पुराना ही था। लेकिन राज्य सरकार की बहुत सी बातें किस तरह बाहर जा रही थीं, उसकी खबर खुफिया विभाग को न हो पाना संजय पिल्ले के हटने की एक वजह हो सकती है, लेकिन मुख्यमंत्री के सबसे करीबी इस पुलिस पद पर रहने या इससे जाने की वजह हो सकता है कि सीएम को खुद को ही हो। फिलहाल उनकी जगह दुर्ग के आईजी हिमांशु गुप्ता को विभाग का मुखिया बनाया गया है, और लिस्ट में उनके पदनाम को लेकर कुछ हैरानी खड़ी हुई है। हिमांशु गुप्ता एडीजी बनाए जा चुके हैं, और महीनों बाद का यह आदेश उन्हें फिर आईजी लिख रहा है। इसी तरह एडीजी के.एस.आर.पी.कल्लूरी को ट्रांसपोर्ट से पुलिस मुख्यालय भेजा गया है, आईजी के पद पर। यह बात भी हैरान करती है क्योंकि कई महीने पहले जो तीन आईजी एडीजी बनाए गए थे उनमें ये दोनों भी शामिल थे। अब इन्हें फिर आईजी किस हिसाब से लिखा गया है, यह समझ से परे है। कुछ लोगों को यह जरूर लगा कि इस सरकार ने पिछली सरकार के बनाए हुए तीन स्पेशल डीजी को वापिस एडीजी बना दिया था, इसलिए शायद एडीजी बनाए गए तीन लोग फिर आईजी बना दिए गए हैं, लेकिन सरकार ने ऐसा कोई आदेश निकाला नहीं था, इसलिए यह आदेश कुछ अटपटा है। 

चर्चित लोग और चर्चित मामले
कल्लूरी के ट्रांसपोर्ट से हटने के बारे में यह बात पहले से चर्चा में रही है कि ट्रांसपोर्ट मंत्री मोहम्मद अकबर उनसे खुश नहीं थे, लेकिन फिर भी उन्हें वहां से हटाने में कई महीने लग गए। इस लिस्ट में राज्यपाल के एडीसी रहे आईपीएस भोजराम पटेल को कांकेर का एसपी बनाया गया है। उन्हें पिछली सरकार ने सीएसपी ही बनाकर रखा था, और कभी एडिशनल एसपी भी नहीं बनाया था। अब शायद वे ऐसे पहले एसपी होंगे जो बिना एडिशनल एसपी बने सीधे एसपी बने हैं। दुर्ग के एसपी प्रखर पांडेय को जिले में मायने रखने वाले बहुत से चर्चित मामलों में पूरी तरह नाकामयाब होने के बाद वहां से हटाकर बटालियन में रायगढ़ भेजा गया है। दुर्ग में आईजी के दफ्तर में ही बैठने वाले डीआईजी राजनांदगांव की कुर्सी अब नांदगांव भेजी गई है, और रतनलाल डांगी नांदगांव में बैठेंगे। अभी भिलाई के एक ही दफ्तर में आईजी और डीआईजी दोनों बैठते थे, और चर्चा यह थी कि रतनलाल डांगी हिमांशु गुप्ता को यह याद दिलाते रहते थे कि उन्हें केवल लोकसभा चुनाव के कुछ हफ्तों के लिए लाया गया है, और बाद में डांगी ही वहां प्रभारी आईजी के रूप में रहेंगे। लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। 

पिछली सरकार में कुछ नाजुक मामलों से जुड़े रहे एडीजी अशोक जुनेजा पर लगातार जिम्मेदारियां बढ़ती चल रही हैं, खुफिया विभाग से तो उन्हें सरकार बदलने पर हटना ही था, लेकिन उन्हें हटाकर भी पुलिस मुख्यालय में प्रशासन का सबसे महत्वपूर्ण काम दिया गया था, अब उन्हें पुलिस भर्ती का अतिरिक्त काम भी दिया गया है। एडीजी पवनदेव के बारे में चर्चा रहती थी कि वे एसीबी-ईओडब्ल्यू में जाना चाहते हैं, जा रहे हैं, लेकिन उन्हें भेजा गया है पुलिस हाऊसिंग कार्पोरेशन में जहां पर अब तक डीजी डी.एम. अवस्थी ही सब सम्हाल रहे थे। पवनदेव पुलिस हाऊसिंग में एमडी के साथ-साथ चेयरमैन भी रहेंगे, और इस तरह अवस्थी वहां से पूरी तरह बाहर हो जाएंगे। दिलचस्प बात यह है कि पुलिस हाऊसिंग को लेकर महालेखाकार ने जो आपत्तियां अपनी रिपोर्ट में लिखी हैं, वे जांच के लिए ईओडब्ल्यू में अब तक खड़ी हुई हैं, और ईओडब्ल्यू के एडीजी (या अब महज आईजी?) जी.पी. सिंह के डी.एम. अवस्थी से सांप-नेवले जैसे मधुर संबंध सिपाही स्तर तक सबको मालूम हैं। अब पुलिस हाऊसिंग पर एजी की आपत्तियां और जांच दोनों ही अवस्थी के सीधे काबू से बाहर है। 

विवेकानंद आखिर बस्तर से निकले...
केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति से दिल्ली से छत्तीसगढ़ लौटते ही आईजी विवेकानंद को तकरीबन तुरंत ही बस्तर भेज दिया गया था, और वे तब से अभी, ढाई साल के बाद पहली बार बस्तर से निकल रहे हैं, लेकिन हर किसी को महीनों पहले से यह मालूम था कि वे दुर्ग के आईजी बनाए जाने वाले हैं। इस पूरी लिस्ट में सबसे लंबे समय से इसी एक नाम की चर्चा इसी एक कुर्सी के लिए थी, बाकी तमाम फेरबदल तकरीबन ताजा हैं। लेकिन इस पूरी लिस्ट को लेकर इस बात की हैरानी हैं कि गृह विभाग के बड़े अफसरों को इसकी जानकारी शायद नहीं थी, और एक छोटे से अफसर के दस्तखत से करीब दो दर्जन आईपीएस अफसरों के तबादले की लिस्ट जारी की गई। यह प्रक्रिया कुछ हैरान करने वाली इसलिए भी है कि दो एडीजी को आईजी बनाने के साथ-साथ यह लिस्ट एसीएस गृह विभाग से होकर भी नहीं गुजरी है ऐसा राज्य सरकार के एक अधिकारी का कहना है। सी.के. खेतान अभी तक गृह विभाग के एसीएस हैं जो कि शायद आज सुब्रत साहू को काम सौंपने वाले हैं जो कि चुनाव आयोग से निकलकर यह काम सम्हालने में कुछ लेट हुए हैं, लेकिन ऐसी चर्चा है कि खेतान के पद पर रहते हुए भी उनकी जानकारी में ये तबादले नहीं थे। 

वॉट्सऐप निगरानी सॉफ्टवेयर
आज देश भर में जिस इजरायली सॉफ्टवेयर, पेगासस, की चर्चा चल रही है, उसके बारे में एक अंग्रेजी अखबार में यह खबर छपी है कि छत्तीसगढ़ पुलिस के सामने भी इसे बनाने वाली इजरायली कंपनी ने 1917 में इसका प्रदर्शन किया था। यह सॉफ्टवेयर वॉट्सऐप जैसे सुरक्षित माने जाने वाले मैसेंजर को भी टैप कर सकता है, और इसकी मदद से दुनिया के कई देशों में सरकारों ने ऐसा किया भी। कंपनी यह दावा भी करती है कि वह इसे सरकारों और सरकारी एजेंसियों के अलावा किसी को नहीं बेचती है। अंग्रेजी अखबार संडे गार्डियन में दो दिन पहले छपी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पेगासस बनाने वाली इजरायली साइबर इंटेलीजेंस कंपनी, एनएसओ, ने 2017 में छत्तीसगढ़ पुलिस के बड़े अफसरों के सामने राज्य के पुलिस मुख्यालय में इसका प्रदर्शन किया था। इस अखबार ने उस बैठक में मौजूद एक अधिकारी के हवाले से लिखा है कि बैठक में वरिष्ठ खुफिया अफसर मौजूद थे। इस बारे में पूछने पर डीजीपी डी.एम. अवस्थी ने कहा कि न तो उनके सामने कभी ऐसा कोई प्रजेंटेशन हुआ, न पूछताछ पर उन्हें ऐसी कोई जानकारी मिली। उस वक्त वे एडीजी नक्सल इंटेलीजेंस और नक्सल ऑपरेशंस थे, और ऐसे किसी निगरानी सॉफ्टवेयर की उनके सामने चर्चा भी नहीं हुई। प्रदेश के एक एडीजी आर.के. विज से पूछने पर उन्होंने कहा कि ऐसे किसी प्रोडक्ट के प्रदर्शन की उन्हें कोई याद नहीं है, न तो मौजूद रहने की, न ही बाद में ऐसे किसी कागज की। उस वक्त राज्य के खुफिया-चीफ एडीजी अशोक जुनेजा थे, और उनसे संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन उनके फोन पर कोई जवाब नहीं मिला। 

संडे गार्डियन ने यह भी लिखा है कि 2017 में रायपुर पुलिस मुख्यालय में यह प्रजेंटेशन 20-25 मिनट चला, लेकिन कंपनी ने उसके 60 करोड़ दाम बताए जिसे बहुत अधिक मानते हुए बात उसी समय खत्म हो गई। इस अखबार की पूछताछ पर इस कंपनी एनएसओ ने कहा कि वे इस बात से इंकार नहीं करते कि हिन्दुस्तान में उनके इस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया गया है, लेकिन वे यह नहीं बता सकते कि उन्होंने इसे किस एजेंसी या सरकार को बेचा था।  ([email protected])

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