राजपथ - जनपथ
अपना अहाता तुड़वाने से शुरूआत
राजधानी रायपुर के देवेन्द्र नगर में बड़े अफसरों और मंत्रियों की कॉलोनी की एक दीवार कल मुख्य सचिव आर.पी. मंडल ने तुड़वा दी। यह दीवार उन्हीं के बंगले के सामने की थी, और सड़क को चौड़ी करने के लिए इस जगह की जरूरत थी। अपने बंगले से जब मुख्य सचिव शुरुआत कर रहे हों, तो और लोग दिक्कत कैसे खड़ी कर सकते हैं। अधिक लोगों को यह याद नहीं होगा कि जब शहर के बीच से नहर के ऊपर कैनाल रोड बनाने की बात आई, तो उस वक्त मुख्य सचिव के लिए निर्धारित बंगले में तत्कालीन सीएस सुनिल कुमार रहते थे। कैनाल रोड को चौड़ा करने के लिए उस बंगले के अहाते की जगह की जरूरत थी। मंडल उस समय नगरीय प्रशासन सचिव थे। वे सुनिल कुमार के पास गए और डरते-डरते उन्हें कहा कि सड़क के लिए उनके बंगले के अहाते की कुछ जगह चाहिए। सुनिल कुमार ने तुरंत ही हामी भर दी, और मुख्य सचिव के बंगले की दीवार तोड़कर सड़क की जगह निकालने के बाद और किसी बंगले के साथ कोई दिक्कत नहीं आई।
मंडल को तेजी से काम करवाने के लिए जाना जाता है। वे जहां-जहां कलेक्टर रहे, उन्होंने तेजी से बाग-बगीचे बनवाए, सड़कें बनवाईं। पीडब्ल्यूडी के सचिव रहे तो निर्माण कार्य तेज रफ्तार से करवाए। मुख्य सचिव बनने के बाद उन्होंने तेजी से काम करवाने की पहल तो की है, लेकिन कलेक्टरी में जो रफ्तार मुमकिन रहती है, वह प्रशासन के मुखिया की कुर्सी से मुमकिन होगी या नहीं, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। फिलहाल राज्य सचिवालय और पूरे प्रदेश का प्रशासन खासा ढीला पड़ा हुआ था, और सुधार की बड़ी संभावना के साथ मंडल ने काम शुरू किया है, आगे-आगे देखें होता है क्या। फिलहाल जिन लोगों ने आज मंडल को फोन करके इस बात की बधाई दी कि तीन गरीबों के कब्जों के साथ-साथ प्रदेश के तीन सबसे बड़े अफसरों के अहातों को भी उन्होंने तुड़वाया, तो उनका जवाब था कि मुख्यमंत्री ने सीएस बनाने के साथ-साथ यह निर्देश भी दिया था कि गरीबों का कभी कोई नुकसान न हो, यह ध्यान रखना। उन्होंने कहा कि बेदखल लोगों की बसाहट भी सरकार करेगी, और प्रदेश के व्यस्त शहरों में जहां-जहां जाम लगता है, सभी जगह उसका हल निकाला जाएगा।
रिकॉर्ड समय, रिकॉर्ड किफायत
लेकिन मंडल का पुराना ट्रैक रिकॉर्ड कुछ इसी किस्म का रहा। पिछले मुख्यमंत्री रमन सिंह के समय राज्य को बाहर प्रचार दिलवाने के लिए यहां के स्टेडियम में आईपीएल मैच करवाने की बात हुई। आईपीएल की एक टीम की मालिक जीएमआर इस बात के लिए तैयार भी हो गई कि वह रायपुर स्टेडियम को अपनी सेकंड होमपिच घोषित कर देगी ताकि यहां मैच हो सके। लेकिन सबसे बड़ी चुनौती थी साठ दिनों के भीतर स्टेडियम को पूरा करना। ऐसे में मंत्रिमंडल की बैठक में जब यह तय किया गया कि किसी भी हालत में इसे तय समय में बनाया जाए, तो मंत्रिमंडल ने ही इस अकेले निर्माण कार्य के लिए खरीदी नियमों में कई किस्म की छूट दी। इसके बाद उस वक्त के खेल संचालक, एक आईपीएस राजकुमार देवांगन, अब बर्खास्त, से स्टेडियम को पूरा करने के लिए अनुमानित लागत पूछी गई तो उन्होंने 62 करोड़ रूपए का हिसाब बताया। लेकिन इससे पार पाने के लिए सरकार ने उस वक्त मंडल को खेल सचिव भी बनाया, और उन्होंने स्टेडियम पूरा करने का बीड़ा उठाया। उस वक्त के मुख्य सचिव सुनिल कुमार ने मंडल को पूरी छूट दी कि समय पर और ईमानदारी से काम करने के लिए तमाम प्रशासनिक स्वीकृतियां दी जाती हैं। इसके बाद मंडल ने देश में घूमकर कई स्टेडियम देखे, बीसीसीआई से एक सलाहकार को कुछ लाख की फीस पर लेकर आए, और कुर्सियों से लेकर कैमरों तक सारे सामान की खरीदी सीधे कंपनियों से करवाई।
उस वक्त के जानकार लोग बताते हैं कि स्टेडियम बना रही कंपनी नागार्जुन ने राजकुमार देवांगन के 62 करोड़ के बजट से खासा कम 48 करोड़ का बजट बताया था, लेकिन वह 75 दिनों से कम में इसे पूरा करने को तैयार नहीं थी। ऐसे में मंडल ने सीधे खरीददारी करके स्टेडियम पूरा करवाया, और 50 दिनों में काम खत्म करके जब 60वें दिन इसका उद्घाटन हुआ, तो हर खर्च मिलाकर स्टेडियम पर कुल 21 करोड़ रूपए खर्च हुए थे। रांची के स्टेडियम में जो कुर्सियां 27 सौ रूपए में लगी थीं, वे ही कुर्सियां छत्तीसगढ़ में 1080 रूपए में लगीं। पूर्व मुख्य सचिव सुनिल कुमार ने इस बारे में फोन पर कहा कि बाद में जब आईपीएल हुआ, और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी आए, तो उन्होंने एक डिनर पर रायपुर के स्टेडियम की जमकर तारीफ की थी।
विधायक न बने, तो अब जिलाध्यक्ष...
भाजपा में विधानसभा चुनाव में पराजित नेता जिलाध्यक्ष बनने की होड़ में हैं। पार्टी में अंदरूनी तौर पर इसका विरोध हो रहा है। सुनते हैं कि रायपुर ग्रामीण जिलाध्यक्ष पद के लिए देवजी पटेल की पुख्ता दावेदारी है। उन्हें सांसद सुनील सोनी का भी समर्थन है, लेकिन इसका त्रिपुरा के राज्यपाल रमेश बैस के समर्थक खुला विरोध कर रहे हैं।
इसी तरह राजनांदगांव से मौजूदा महापौर मधुसूदन यादव भी जिलाध्यक्ष बनना चाहते हैं। उन्होंने मंडल चुनाव में काफी रूचि भी ली थी, लेकिन राज्य भंडार गृह निगम के अध्यक्ष नीलू शर्मा और अन्य प्रमुख लोग उनके पक्ष में नहीं दिख रहे हैं। धमतरी के पूर्व विधायक इंदर चोपड़ा ने भी जिलाध्यक्ष बनने की इच्छा जताई है। मगर उन्हें पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर का एनओसी नहीं मिल पा रहा है। बेमेतरा में अवधेश चंदेल जिलाध्यक्ष बनना चाहते हैं, लेकिन उन्हें सरोज पाण्डेय का समर्थन नहीं मिल रहा है। बिलासपुर के शहर और ग्रामीण जिलाध्यक्ष पद के लिए नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक व पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल के खेमे आमने-सामने हंै। सबसे ज्यादा विवाद की आशंका दुर्ग-भिलाई में जताई जा रही थी, लेकिन वहां का चुनाव स्थगित हो गया है। मगर हारे नेताओं के संगठन चुनाव में कूदने से बाकी जिलों में भी दुर्ग-भिलाई जैसी स्थिति बन रही है। ([email protected])