राजपथ - जनपथ
जंगल में मंगल का दौर...
आईएफएस अफसर आरबीपी सिन्हा की सम्मानजनक बिदाई हो गई। उन्हें रिटायरमेंट के दिन ही पीसीसीएफ के पद पर पदोन्नति मिल गई। यह सब सीएस आरपी मंडल और पीसीसीएफ (मुख्यालय) राकेश चतुर्वेदी के प्रयासों से ही संभव हो पाया। उनसे सीनियर पीसी मिश्रा, आरबीपी सिन्हा जैसे भाग्यशाली नहीं रहे। उन्हें इस बात का मलाल रहा कि सरकार चाहती, तो उन्हें पीसीसीएफ के पद पर पदोन्नत कर सकती थी। तब सीके खेतान जैसे कड़क अफसर वन विभाग के प्रभार पर थे, जिन्होंने पीसीसीएफ के दो अतिरिक्त पद को ही खत्म कर दिया था।
सिन्हा के साथ-साथ संजय शुक्ला भी पदोन्नत हुए हैं। संजय को लघु वनोपज संघ का एमडी का दायित्व सौंपा गया है। वर्तमान में चतुर्वेदी ही लघु वनोपज संघ के एमडी का अतिरिक्त प्रभार संभाल रहे थे। वैसे संजय की पदस्थापना के बाद से वे संघ के कामकाज को लेकर निश्ंिचत हो गए थे। संजय ने कम समय में लघु वनोपज संघ में काफी काम किया है, और इसको सरकार ने भी नोटिस में लिया। यही वजह है कि पीसीसीएफ के पहले खत्म किए गए पदों को फिर निर्मित किया गया और केन्द्र से इजाजत लेकर संजय व आरबीपी सिन्हा को पदोन्नत किया गया।
चूंकि सिन्हा अब रिटायर हो चुके हैं, ऐसे में अगले दो-तीन दिनों में फिर पीसीसीएफ पद के लिए पदोन्नति होगी और नरसिंह राव को पीसीसीएफ के पद पदोन्नति दी जाएगी। यही नहीं, नरसिंह राव के पीसीसीएफ बनने के साथ ही रिक्त एपीसीसीएफ के पद के लिए भी डीपीसी होगी। इसमें सुनील मिश्रा को एपीसीसीएफ के पद पर पदोन्नति दी जाएगी। इसके अलावा सीसीएफ के दो रिक्त पदों के लिए भी पदोन्नति होगी। कुल मिलाकर एक साथ पीसीसीएफ, एपीसीसीएफ और सीसीएफ के पद पर पदोन्नति होगी।
दीपक को शुरू से अक्ल की जरूरत...
देश भर में बलात्कार खबरों में है, और कई समझदार लोग यह भी लिख रहे हैं कि बेटियों को शामढले या रात में बाहर न निकलने की नसीहत न देने वाले लोग बलात्कार करने की आशंका रखने वाले अपने बेटों को ही घर के भीतर ही कैद रखें तो बेहतर होगा। इसके पहले भी लोग इस बात की तरफ ध्यान खींचते आए हैं कि हिन्दुस्तान में बलात्कार की शिकार के बारे में यह माना जाता है कि उसकी इज्जत लुट गई, जबकि उसने तो कोई जुर्म किया नहीं होता। इज्जत तो बलात्कारी-मुजरिम की लुटती है, और समाज की भाषा में इसकी कोई जगह होती नहीं है। सामाजिक भाषा हमेशा से महिलाओं के खिलाफ रहती आई है, और उसका एक नमूना यह निमंत्रण पत्र भी है जिसमें बेटा ही कुल का दीपक हो सकता है, लड़की तो एक मोमबत्ती भी नहीं हो सकती। परिवार के भीतर लड़कों को जब एक अलग दर्जा देकर बड़ा किया जाता है तो उनके भीतर ऐसी सोच भी बढ़ते चलती है कि वे लड़कियों से जैसा चाहें वैसा सुलूक कर सकते हैं, और यही सोच बढ़ते-बढ़ते जब अधिक हिंसक होती है, तो वह बलात्कारी हो जाती है। इसलिए जो लोग अपनी आल-औलाद को बलात्कार के जुर्म में कैद काटते या फांसी पर चढ़ते देखना नहीं चाहते, उनको चाहिए कि परिवार के भीतर ही लड़के और लड़कियों को बराबरी का दर्जा दें, ताकि लड़कों की सोच हिंसक न हो सके, बलात्कारी न हो सके।
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