राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : गुरू का संदेश या सामाजिक खिचड़ी
02-Dec-2019
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : गुरू का संदेश या सामाजिक खिचड़ी

गुरू का संदेश या सामाजिक खिचड़ी 
सियासत में गुरू-चेले की परंपरा बरसों पुरानी है। सूबे के मुखिया भूपेश बघेल के राजनीतिक गुरु दिग्विजय सिंह पिछले दिनों रायपुर प्रवास पर आए थे। कहा गया कि वे यहां सामाजिक और व्यक्तिगत कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आए थे। यही वजह है कि उन्होंने काफी संजीदगी से अपने कामकाज निपटाए, लेकिन जाते-जाते उनकी सूबे के पूर्व मुखिया डॉ. रमन सिंह से मुलाकात कार्यक्रम ने राजनीतिक हलकों को नया मुद्दा दे दिया। यह मुलाकात इस लिहाज से भी अहम हो जाती है, क्योंकि वे यहां के मुखिया के राजनीतिक गुरू माने जाते हैं और उन्होंने अपने चेले के धुर विरोधी से मुलाकात की। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि आखरी ऐसी क्या जरूरत पड़ गई कि उन्हें विरोधियों से मिलने के लिए होटल से लेकर रमन सिंह के घर तक पैदल चलना पसंद किया। खैर, जो भी बात रही होगी, लेकिन इससे विरोधी खेमे का उत्साह बढ़ा है। दूसरी तरफ यह चर्चा भी है कि ये मुलाकात सामाजिक कार्यक्रम के संबंध में थी और वे यहां पूर्व मुखिया को न्यौता देने गए थे। वाकई ऐसा है तो बात दूर तलक जाएगी और चर्चा शुरू हो गई कि विपक्षी दल के नेताओं के बीच कुछ सामाजिक खिचड़ी तो नहीं पक रही। अब जब बात धर्म, जाति, या किसी आध्यात्मिक संबंध पर आकर टिकती है, तो फिर राजपूत-राजपूत एक हो जाते हैं, और दिग्विजय का रमन सिंह के घर जाना हो सकता है कि महज यही एक मुद्दा रहा हो। 

शुतुरमुर्ग और अफसरों में समानता

छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम ने एक बार अफसरों को शुतुरमुर्ग बताया था। उन्होंने किस संदर्भ में कहा ये तो वे ही बेहतर बता सकते हैं, लेकिन राज्य के एक वरिष्ठ आईएएस ने शुतुरमुर्ग और अफसरों के बीच कई समानताओं के बारे में बताया। इतना तो तय है कि शुतुरमुर्ग-अफसर संबंध की व्याख्या करने वाले आईएएस का संदर्भ एकदम साफ है। दरअसल, छत्तीसगढ़ में नई सरकार के गठन के बाद यहां के अफसरों को पूरा भरोसा था कि अब मंत्रालय की ताकतवर कुर्सियों पर नए नए चेहरे नजर आएंगे, लेकिन साल भर भी ऐसा हुआ नहीं तो बेचारे मन मसोस कर बैठ गए हैं। तब आईएएस साहब ने इसका जिक्र करते हुए किस्सा सुनाया कि जब सृष्टि की रचना हो रही थी, तो आग की रखवाली का जिम्मा शुतुरमुर्ग को दिया गया था, क्योंकि शुतुरमुर्ग ईमानदार और अनुशासित माना जाता है। अफसर भी ईमानदारी और अनुशासन की शपथ लेते हैं। इस बीच पहले आदिमानव ने शुतुरमुर्ग को एक सपना दिखाकर आग को चुरा लिया। आदिमानव ने शुतुरमुर्ग से कहा कि वह उड़ सकता है, चूंकि शुतुरमुर्ग की प्रबल इच्छा थी कि वो भी दूसरे पक्षियों की तरह खुले आकाश में उड़ सके, वह तुरंत झांसे में आ गया और आग की रखवाली से दूर हो गया। जिसका फायदा आदिमानव ने उठाया। राज्य के अफसरों ने भी सरकार बदलते ही खुले आकाश में उडऩे का सपना पाल लिया था, लेकिन ये भी शुतुरमुर्ग के सपने की तरह हवा हवाई निकला, क्योंकि शुतुरमुर्ग की तरह अफसरों को भी विशालकाय माना जाता है और वह किसी भी कीमत में उड़ नहीं सकता। शुतुरमुर्ग तेज भागने वाला माना जाता है, अफसर भी तेज भागने में भरोसा करते हैं। शुतुरमुर्ग के बारे में एक बात और प्रचलित है कि वह दुश्मन को देखकर रेत में अपना सिर छिपा लेता है, उसे लगता है कि दुश्मन देख नहीं पाएगा, इसी तरह अफसरों को भी लगता है कि उनके बारे में किसी को पता नहीं चलेगा, जबकि ऐसा होता नहीं। जिस तरह रेत में सिर छुपाए शुतुरमुर्ग सोचता है कि उसका विशालकाय शरीर भी छुप गया है, वैसे ही अफसरों के कारनामों की चर्चा तो नहीं होती, लेकिन उसके बारे में सभी को सबकुछ पता होता है। फिलहाल, हवा में उडऩे का सपना पाले बैठे अफसरों के लिए यही सलाह है कि जो काम यानी भागना आता है, तो उसी में ध्यान देंगे, तो ज्यादा बेहतर होगा। उडऩे के चक्कर में भागने की आदत छूट जाएगी, तो मुश्किल तो होगी ही है ना।
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