राजपथ - जनपथ
स्थानीय कुर्सी, राष्ट्रीय सिफारिश
रायपुर मेयर को लेकर जंग चल रही है। एक-दो दावेदारों के नाम पर राष्ट्रीय नेताओं ने भी सिफारिश की है। सुनते हैं कि कांग्रेस के राष्ट्रीय महामंत्री वेणुगोपाल ने भी एक दावेदार के लिए सिफारिश की है। इसके विपरीत दो दावेदारों के खिलाफ पार्षदों को अपने पाले में करने के लिए प्रलोभन देने की शिकायत भी सीएम तक पहुंची है। बिलासपुर में रामशरण यादव का नाम चौंकाने वाला रहा। वैसे तो रामशरण मेयर और विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन दोनों में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इस बार वे पार्षद का चुनाव लड़े और जीते, लेकिन उन्हें मेयर बनाने में सीएम के साथ-साथ प्रभारी सचिव चंदन यादव की भूमिका भी रही है।
कामयाबी दिखती नहीं, और...
किसी भी देश-प्रदेश की सरकार हो, कुछ एक कुर्सियां ऐसी होती हैं जिनकी कामयाबी हवा की तरह ओझल रह जाती हैं, और जिनकी नाकामयाबी फिल्म शोले की पानी की टंकी पर चढ़े धर्मेन्द्र की तरह चीख-चीखकर दुनिया को बताती है। इनमें से एक कुर्सी सरकार के खुफिया विभाग की रहती है, और दूसरी कुर्सी सरकारी वकील की रहती है। केंद्र से लेकर राज्य तक, अगर खुफिया विभाग की खुफिया जानकारी के आधार पर कोई हमला टल जाता है, तो सरकारें उसका प्रचार नहीं कर पातीं। चूंकि विभाग का नाम और काम दोनों ही खुफिया रहता है, इसलिए उसकी कामयाबी बंद कमरे की रहती है, लेकिन अगर कोई बड़ी वारदात हो जाती है, तो विपक्ष से लेकर मीडिया तक देश में इंटेलीजेंस ब्यूरो पर चढ़ बैठते हैं, और राज्यों में भी वहां की खुफिया विभाग पर। इसी तरह केंद्र और राज्य सरकारों के सरकारी वकील लगातार इस दबाव में रहते हैं कि वे कोई भी मामला न हारें, क्योंकि उनके जीते हुए दर्जनों मामले सार्वजनिक जीवन में दर्ज नहीं होते, और उनके हारे हुए एक-एक मामले को लेकर सरकार के भीतर की गुटबाजी भी उन पर चढ़ बैठती है कि उनका काम बहुत खराब है, और सरकारी वकील को बदल देना चाहिए। सरकार के हर पहलू के जानकार लोग यह बात जानते हैं कि ये दोनों कुर्सियां किसी अस्पताल में सबसे गंभीर और नाजुक मरीजों को देखने वाले विशेषज्ञ डॉक्टर की कुर्सी जैसी रहती हैं जहां से जिंदा निकलने वाले मरीजों की किसी को याद नहीं रहती, और मरकर निकलने वाले मरीजों के परिवार के लोग रोते-पीटते दिखते हैं, और वे ही याद रहते हैं।