राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : आखिर मदनवाड़ा-जांच
20-Jan-2020
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : आखिर मदनवाड़ा-जांच

आखिर मदनवाड़ा-जांच
आखिरकार भूपेश सरकार ने दस बरस पुराने मदनवाड़ा नक्सल प्रकरण की जांच के लिए आयोग के गठन का फैसला लिया है। राज्य के पूर्व लोकायुक्त जस्टिस शंभूनाथ श्रीवास्तव आयोग के मुखिया होंगे। मदनवाड़ा नक्सल हमले में राजनांदगांव के तत्कालीन एसपी विनोद कुमार चौबे समेत 29 जवान शहीद हो गए थे। इस पूरे प्रकरण पर पुलिस के आला अफसरों की रणनीतिक चूक भी सुर्खियों में रही है और इसके लिए तत्कालीन आईजी मुकेश गुप्ता निशाने पर रहे। मगर मुकेश गुप्ता को इस घटना के बाद गेलेन्ट्री अवार्ड मिल गया था। 

कांग्रेस नेता और पूर्व एसपी चौबे के परिजन बरसों से प्रकरण की न्यायिक जांच की मांग करते रहे हैं और जब आयोग के गठन की घोषणा हुई, तो भाजपा ने सरकार के इरादे पर ही सवाल खड़े कर दिए।  खैर, आयोग के अध्यक्ष जस्टिस शंभूनाथ श्रीवास्तव की साख काफी अच्छी रही है। उन्होंने प्रमुख लोकायुक्त के पद पर रहते कई अहम आदेश पारित किए थे। जस्टिस श्रीवास्तव ने पिछली सरकार में बेहद ताकतवर रहे पुलिस अफसर मुकेश गुप्ता के खिलाफ शिकायतों की पड़ताल की थी और 30 पेज की जांच रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। 

गुप्ता लोक आयोग के समक्ष हाजिर नहीं हुए। जांच रिपोर्ट में मुकेश गुप्ता के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को सही पाया गया था और इसकी सीबीआई जांच की अनुशंसा की गई। ये अलग बात है कि जांच रिपोर्ट मिलने के बाद रमन सरकार के हाथ-पांव फूल गए और जीएडी में चार माह तक आयोग की अनुुशंसा धूल खाते पड़ी रही। इसी बीच लोकायुक्त की रिपोर्ट के खिलाफ मुकेश गुप्ता हाईकोर्ट चले गए और  कोर्ट से उन्हें राहत मिल गई। फिलहाल प्रकरण पर रोक लगी हुई है। अब जस्टिस शंभूनाथ श्रीवास्तव प्रकरण की जांच करेंगे, तो मदनवाड़ा का सच सामने आने की उम्मीद है। लोगों का अंदाज यह भी है कि इससे मुकेश गुप्ता की मुश्किलें और बढ़ सकती है। 

कुलपति को चुनौती के पीछे कौन?
छत्तीसगढ़ के पत्रकारिता विवि में पढ़ाई-लिखाई तो पहले से ही भगवान भरोसे है, अब तो यहां का कामकाज भी भगवान भरोसे है। लगता है न कोई बोलने वाला है और न ही टोकने वाला। अब इस वाकये को ही लीजिए जिसमें विवि के एक शिक्षक ने यहां के प्रभारी कुलपति को कोर्ट की नोटिस भेज दी और नोटिस भी ऐसी वैसी नहीं बल्कि उनकी नियुक्ति को लेकर। जिसमें कहा गया है कि संभाग आयुक्त को शासन ने 6 महीने के लिए कुलपति का प्रभार दिया था। छह महीने का समय बीत गया तब वे असंवैधानिक रूप से कुलपति के प्रभार पर बने हुए हैं। शिक्षक ने अदालत से मांग की है कि संभाग आयुक्त को प्रभारी कुलपति पद से हटाया जाए और उन्हें (स्वयं को) इस पद पर नियुक्ति दी जाए, क्योंकि वे सर्वाधिक काबिल और अर्हता पूरा करने वाले शिक्षक हैं। पत्रकारिता के इस शिक्षक को कौन बताए कि शासन ने नियमित कुलपति की नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी होने तक प्रभारी कुलपति का कार्यकाल बढ़ा दिया है। फिर भी वे कोर्ट पहुंच गए। आलम यह है कि शिक्षक महोदय विवि में सीना तानकर घूम रहे हैं और लोगों को बता रहे हैं कि उन्होंने प्रभारी कुलपति को हटाने के लिए कानूनी लड़ाई छेड़ दी है और देर सबेर उनकी नियुक्ति हो जाएगी। खैर, फैसला जो भी हो, लेकिन इतना तो तय है कि विवि के शिक्षकों का अपना जलवा है, लेकिन प्रभारी कुलपति की नियुक्ति करने वाले शासन में बैठे लोग अब तक चुपचाप हैं, यह बात गले नहीं उतर रही है। कुछ लोगों का कहना है कि इन शिक्षक महोदय को संघ का समर्थन है। अगर, ऐसा है तो और बड़ी बात है, क्योंकि साल भर से राज्य में कांग्रेस की सरकार है। कांग्रेस सरकार में कोई संघ के समर्थन से ऐसा कर रहा है या इसके पीछे किसी फूल छाप कांग्रेसी का हाथ है, इस पर परदा उठना बाकी है।

काले जादू की दुकान...
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के चौराहों पर इन दिनों मजदूरी पर रखे गए लोग एक विजिटिंग कार्ड रूके हुए लोगों के बीच बांट रहे हैं। यह कार्ड किसी मूसा पठान बंगाली नाम के आदमी का है जिसका फोन नंबर भी इस पर दिया गया है। इसमें इस आदमी को विश्व का नंबर एक तांत्रिक बताया गया है, और काले व रूहानी इल्म का माहिर भी। यह कार्ड दावा करता है कि नौकरी, कारोबार, किया-कराया, गृहक्लेश, मनचाही शादी, सौतन-दुश्मन से छुटकारा, पति-पत्नी, प्रेमी-प्रेमिका वश में करवाना, वशीकरण मुठकरणी करवाना या तोड़वाना, सभी समस्याओं का समाधान गारंटी के साथ। अब यह दावा अपने आपमें कानून के खिलाफ है जिसमें जादू को गैरकानूनी माना गया है। लेकिन छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे राज्यों में हर बरस बड़ी संख्या में महिलाओं को टोनही-जादूगरनी कहकर मारा जाता है, उन पर हमले होते हैं, उनका सामाजिक बहिष्कार होता है। अंधविश्वास में इस तरह डूबे हुए देश में जादू-टोने का ऐसा दावा करने वाले लोग कमा भी रहे हैं, खा भी रहे हैं। फिलहाल रायपुर में जो कार्ड बंट रहा है उसमें पीछे की तरफ गुरूमुखी लिपि में भी यही बातें छपी हैं, याने मूसा पठान बंगाली पंजाब में भी लोगों को अपने हुनर का झांसा देकर या तो आया है, या यहां से उधर जाएगा। अब ऐसे खुले प्रचार के बाद भी पुलिस इन लोगों पर, ऐसे लोगों पर कोई कार्रवाई करती है या नहीं, पता नहीं। 

अदालती फैसला और समझबूझ
वैसे अभी त्रिपुरा हाईकोर्ट का एक ऐसा फैसला सामने आया है जो कि देश भर में बड़बोले अफसरों के लिए मददगार हो सकता है। नौ और दस जनवरी को इस हाईकोर्ट ने अभिव्यक्ति के आजादी के तहत, खासकर सोशल मीडिया के सिलसिले में यह कहा कि सरकारी कर्मचारी भी वहां पर अपनी राजनीतिक राय रख सकते हैं, और राजनीतिक कार्यक्रमों में शामिल भी हो सकते हैं। अब देश के किसी भी दूसरे प्रदेश में कोई मामला अदालत तक पहुंचने पर त्रिपुरा के इस फैसले की नजीर तब तक काम आएगी, जब तक उस राज्य का हाईकोर्ट, या सुप्रीम कोर्ट इसके खिलाफ कोई फैसला न दे। यह अदालती फैसला दूर तक जाएगा जो कि सरकारी कर्मचारियों को भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है। लेकिन इसके साथ-साथ हर प्रदेश के सरकारी कर्मचारियों-अधिकारियों को इतना तो याद रखना ही पड़ेगा कि अदालत सिर्फ सजा से बचा सकती है, निलंबन खारिज कर सकती है, लेकिन किस अफसर को किस कुर्सी पर बिठाया जाए, और कहां से हटाया जाए, यह फिर भी सरकार का अपना विशेषाधिकार बने रहेगा, इसलिए लोगों को किसी अदालती फैसले के साथ-साथ अपनी सामान्य समझबूझ का भी इस्तेमाल करना चाहिए। ([email protected])

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