राजपथ - जनपथ
कुछ मंत्रियों से नाखुश, कुछ से खुश
खबर है कि प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया और सीएम भूपेश बघेल कुछ मंत्रियों के परफार्मेंस से नाखुश चल रहे हैं। चर्चा है कि पुनिया ने अपने पिछले प्रवास के दौरान सीएम से मंत्रियों के कामकाज पर बात भी की थी। जिन मंत्रियों का परफार्मेंस खराब बताया जा रहा है, उनमें बिलासपुर और सरगुजा संभाग के एक-एक और दुर्ग संभाग के दो मंत्री हैं।
सुनते हैं कि इन मंत्रियों को बदले जाने पर भी विचार किया गया है। हालांकि अभी इस पर प्रारंभिक चर्चा ही हुई है। इन मंत्रियों के प्रभार और उनके अपने विधानसभा क्षेत्र में म्युनिसिपल और पंचायत चुनाव के नतीजों की समीक्षा होना बाकी है। हल्ला यह है कि चुनाव समीक्षा में खरा नहीं उतरने पर चारों में से कम से कम दो को बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है। फेरबदल बजट सत्र के बाद होने की पूरी संभावना है।
इससे परे दो-तीन मंत्रियों के कामकाज को बेहतर माना जा रहा है। इनमें नए नवेले कैबिनेट मंत्री उमेश पटेल भी हैं। पार्टी के भीतर यह माना जाता है कि उमेश के विभाग में करप्शन का स्तर दूसरे विभागों की तुलना में कम है। शिकवा-शिकायतों के बाद भी ट्रांसफर पोस्टिंग में उमेश ने पूरी पारदर्शिता बरती। यही नहीं, युवा महोत्सव का सफल आयोजन कर सीएम का भरोसा जितने में कामयाब रहे हैं।
युवा महोत्सव में करीब 10 हजार प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। राज्य बनने के बाद अब तक का सबसे बड़ा आयोजन था। इसमें पूरी व्यवस्था इतनी चाक-चौबंद थी कि कहीं से किसी को कोई शिकायत का मौका नहीं मिला। दिलचस्प बात यह है कि कुछ समय पहले रेलवे ने इसी तरह खेल आयोजन किया था, लेकिन कुछ सौ लोगों के बीच के आयोजन में कई तरह की खामियां रही। हाल यह रहा कि दूषित भोजन के चलते कई खिलाड़ी बीमार पड़ गए। मगर हजारों की संख्या में आए प्रतिभागी युवा महोत्सव की व्यवस्था को काफी सराहते रहे।
खुद सीएम ने प्रतिभागियों के बीच में जाकर उनसे व्यवस्था को लेकर पूछताछ की। प्रतिभागियों के फीडबैक से सीएम खुश नजर आए। यह सब उमेश की लगातार मॉनिटरिंग के बूते संभव हो पाया और उनके सचिव सिद्धार्थ कोमल परदेशी ने भी काफी मेहनत की। प्रशासनिक फेरबदल में परदेशी का कद बढ़ा है और उन्हें पीडब्ल्यूडी जैसे बड़े विभाग की अतिरिक्त जिम्मेदारी सौंपी गई है। ऐसे में देर-सबेर उमेश के विभागों में भी इजाफा हो जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
माफिया पर कार्रवाई
प्रदेश में अपराध नियंत्रण के लिए सीएम-गृहमंत्री ने पुलिस को फ्री हैण्ड दे दिया है। उन्होंने माफियाओं पर सख्त से सख्त कार्रवाई के लिए दिशा निर्देश दिए हैं। मगर सत्तारूढ़ दल के कई प्रभावशाली नेता ही ऐसे लोगों को बचाने में जुटे हैं। ऐसे ही एक प्रकरण में सत्ताधारी दल के एक सीनियर विधायक को भूमाफिया का बचाव करना काफी महंगा पड़ गया।
हुआ यूं कि पुलिस ने कुख्यात भूमाफिया की घेरेबंदी की, तो उसने विधायक के निवास में डेरा डाल दिया। पुलिस को तो सख्त निर्देश हैं, फिर क्या था पुलिस ने विधायक निवास को ही घेर दिया था। हड़बड़ाए विधायक ने यहां-वहां फोन लगाया, लेकिन कहीं से कोई राहत नहीं मिली। आखिरकार एक ताकतवर मंत्री के कहे हुए पुलिस वहां से हटी, और भूमाफिया को अपने घर से निकाला गया। उस दिन तो भूमाफिया तो बच निकला, लेकिन कुछ दिनों बाद रायपुर पुलिस ने आखिर उसे दबोचकर ही दम लिया। हुआ यह भी है कि मध्यप्रदेश में कांगे्रस सरकार जितने आक्रामक तरीके से तरह-तरह के भूमाफिया, हनीट्रैप माफिया, अवैध निर्माण के खिलाफ कार्रवाई कर रही है, उससे भी छत्तीसगढ़ में सरकार पर एक दबाव पड़ रहा है कि वह भी ऐसे छंटैल लोगों के खिलाफ कुछ तो करे।
हिंदी प्रदेश में हिंदी का हाल
छत्तीसगढ़ हिन्दीभाषी प्रदेश है, और यहां की हिंदी बेहतर भी मानी जाती है। लेकिन राजधानी रायपुर को देखें, तो राज्य सरकार, और म्युनिसिपल ने पिछले पन्द्रह-बीस बरस में जगह-जगह गेट बनाकर उन पर कुछ महान लोगों की लाईनें लिखी हैं, उनमें जगह-जगह हिज्जों की गलतियां दिखती हैं। इसके अलावा सड़क और चौराहे जिन नामों पर हैं, उनके हिज्जों में भी गलतियां खटकती हैं। भगत सिंह के नाम पर से ऊपर की बिंदी गायब दिखती है, और देश की महानता की कविताओं की लाईनें गलत लिखी गई हैं। अब राज्य सरकार और म्युनिसिपल की स्कूलों में सैकड़ों हिंदी-शिक्षक-शिक्षिकाएं हैं। कॉलेजों में भी हिंदी पढ़ाने वाले लोग हैं जो कि ऐसी गलतियों के सामने से रोज निकलते हैं, लेकिन भाषा की गलतियां सुधारने की कोई कोशिश नहीं दिखती। जो हिंदी भाषा का ही कमाते-खाते हैं, वे भी इस बारे में बेफिक्र रहते हैं।
ये तो बात सरकारी बोर्ड की हुई, लेकिन निजी दुकानों के बोर्ड और होर्डिंग पर भी हिंदी और अंगे्रजी की गलतियां ही गलतियां दिखती हैं, और लोग इसे अनदेखा करके आते-जाते रहते हैं कि गलतियां सुधारना उनका काम तो है नहीं। नतीजा यह होता है कि स्कूल आते-जाते बच्चे भी इन गलतियों को सीखते चलते हैं, इन्हें ही सही मानने लगते हैं।
इन दोनों से अलग एक बड़ी दिलचस्प बात यह है कि छत्तीसगढ़-मध्यप्रदेश जैसे हिंदीभाषी प्रदेशों से लेकर महाराष्ट्र जैसे मराठीभाषी बहुत से प्रदेशों तक ट्रक-कार जैसे गाडिय़ों पर जो शब्द सबसे अधिक गलत लिखा दिखता है, वह आशीर्वाद है। गाडिय़ों पर माँ-बाप का आशीर्वाद जैसी बातें लिखी दिखती हैं, और अधिकतर जगहों पर आशीर्वाद को आर्शीवाद लिखा जाता है। अब पेंटरों ने यह गलती कहां से सीखी इसका पता लगाना तो नामुमकिन है, लेकिन हिंदी को चाहने वाले कुछ लोग पेंटरों के पास रूककर उनकी गलतियां सुधारने का योगदान तो दे ही सकते हैं।