राजपथ - जनपथ
रिकॉर्ड टूटेगा या नहीं?
पंचायत चुनाव में दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर है। दिग्गज नेता अपने करीबियों को जिताने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। पंचायत मंत्री टीएस सिंहदेव अपने भतीजे आदितेश्वर शरण सिंहदेव (आदि बाबा) को अच्छे मतों से जिताने के लिए खुद मेहनत कर रहे हैं। आदि बाबा के पक्ष में अच्छा खासा माहौल भी दिख रहा है। सरगुजा के बड़े भाजपा नेता आदि बाबा के आगे नतमस्तक होते दिख रहे हैं।
सिंहदेव के उत्साही समर्थक दावा कर रहे हैं कि आदि बाबा को रिकॉर्ड मतों से जीत हासिल होगी। जिला पंचायत सदस्य के चुनाव में सबसे ज्यादा मतों से जीत का रिकॉर्ड कवर्धा के पूर्व विधायक योगीराज सिंह के नाम पर दर्ज है। उन्हें जिला पंचायत चुनाव में करीब 92 फीसदी वोट मिले थे। आदि बाबा के समर्थक इस रिकॉर्ड को ध्वस्त करने के लिए पूरी ताकत झोंक रहे हैं। पहले तो यह लग रहा था कि आदि बाबा आसानी से रिकॉर्ड ध्वस्त कर सकते हैं। मगर जाति समीकरण भी आड़े आता दिख रहा है। उनके क्षेत्र में रजवाड़ वोटर काफी हैं। भाजपा ने यहां रजवाड़ समाज के प्रत्याशी का समर्थन कर आदि बाबा को थोड़ी चुनौती देने की कोशिश की है। ऐसे में योगीराज का रिकॉर्ड टूटेगा या नहीं, यह देखना है।
खतरा और हिफाजत
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से एक उद्योगपति के अपहरण के बाद प्रदेश के पैसे वालों में एक दहशत फैली हुई हैं। जाहिर है कि जो तबका अपने आपको किसी धमकी या फिरौती के लायक संपन्न पाता है, उसे न सिर्फ डर होगा, बल्कि उस पर एक असर खतरा भी मंडराता रहेगा। फिर इस बार तो यह भी पता लगा है कि किसी अधिक संपन्न के धोखे में कम संपन्न उद्योगपति को उठा लिया गया क्योंकि दोनों के कारखाने अगल-बगल थे, और दोनों की गाडिय़ां एक रंग, एक मॉडल की थीं। अब बहुत से लोगों ने हिफाजत के लिए गनमैन रख लिए हैं, कुछ ने खुद के लिए नहीं रखे, तो अपने बच्चों के लिए रख लिए हैं। दूसरी तरफ मोबाइल फोन पर कुछ ऐसे एप्लीकेशन भी हैं जो कि फोन की लोकेशन दूसरे तय किए गए फोन पर दिखा सकते हैं, और इस तरह एक कंपनी के कुछ लोग, या एक परिवार के कुछ लोग एक-दूसरे की लोकेशन जानने की इजाजत फोन पर सेट कर सकते हैं।
लेकिन इससे लोकेशन तो पता लगती है, लेकिन अपहरण करने वाले तो सबसे पहले मोबाइल फोन कब्जे में करके उसे बंद कर देते हैं ताकि आगे की फरारी का रास्ता पुलिस को फोन की लोकेशन से न दिखे। ऐसे में लोग बिना घंटी वाला एक दूसरा छोटा फोन, या लोकेशन-ट्रैकर कपड़ों में कहीं छुपा कर रख सकते हैं, और अगर वह अपहरण करने वालों को न दिखा तो उसकी चार्जिंग तक तो घर-दफ्तर के तय किए गए नंबरों पर लोकेशन दिखेगी। ये बातें तो साधारण समझ की हैं, लेकिन कुछ ऐसी जानकार इलेक्ट्रॉनिक कंपनियां बाजार में हैं जो कि मोबाइल फोन से छोटे लोकेशन-ट्रैकर भी बेचती हैं। इनमें से कुछ लोकेशन-ट्रैकर तो सिक्कों से थोड़े बड़े ही हैं। अब लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करके अपनी जरूरत के लायक ट्रैकर छांटें, और थोड़ी सी प्राइवेसी खोकर बड़ी सी हिफाजत का इंतजाम भी करें। ऐसे ट्रैकर महंगे सामानों के बैग में भी रखे जा सकते हैं, और स्कूली बच्चों के बैग में भी। लेकिन ये तभी तक हिफाजत देते हैं जब तक इनसे जुड़े हुए फोन किसी मुजरिम के हाथ न लग जाएं।
अभी रायपुर में हुए अपहरण के बारे में यह पता लग रहा है कि इधर-उधर जगह बदलते हुए अपहरणकर्ता उद्योगपति के मोबाइल से ही उसके परिवार को फोन लगा लेते हैं, और फिर फोन बंद कर लेते हैं। पुलिस और अपहरणकर्ताओं के बीच लुकाछिपी चल रही है, और ऐसे में ज्यादा जानकारी देना जिम्मेदारी नहीं है, हालांकि गलाकाट मुकाबले के इस दौर में मीडिया के अपने पापी पेट का भी सवाल है जो अपने ग्राहकों को रोजाना कुछ न कुछ नई जानकारी देने को मजबूर भी हैं।
अब उद्योगपतियों और कारोबारियों को हिफाजत की जरूरत के समय जो फोन एप्लीकेशन और उपकरण सूझ रहे हैं, वे बाहर घूम-फिरकर काम करने वाले कर्मचारियों पर नजर रखने के काम भी आ सकते हैं, और कहीं-कहीं पर आ भी रहे हैं। जो कारोबार के काम से दौरे पर रहते हैं, या शहर में ही घूम-फिरकर काम करते हैं, उनके फोन भी उनका ठिकाना और वक्त अच्छी तरह बता सकते हैं। टेक्नालॉजी तो अपने आपमें कोई अक्ल नहीं रखती है, लोकेशन पर नजर चाहे कुत्तों पर रखनी हो, चाहे बच्चों पर, चाहे खुद पर और या फिर कर्मचारियों पर।