राजपथ - जनपथ
केंद्रीय कानून के विरोध से अपात्रता?
छत्तीसगढ़ विधानसभा के पूर्व प्रमुख सचिव देवेन्द्र वर्मा भोपाल शिफ्ट हो गए हैं। उनकी पूर्व विधानसभा अध्यक्ष प्रेमप्रकाश पाण्डेय और पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल से गहरी छनती रही है। देवेन्द्र वर्मा कई और राजनेताओं के करीबी रहे हैं। वे संसदीय मामलों के गहरे जानकार भी माने जाते हैं। वे प्रेमप्रकाश पाण्डेय के पुत्र के विवाह समारोह में शिरकत करने पहुंचे, तो उन्होंने अनौपचारिक रूप से मीडिया से जुड़े लोगों के साथ निजी चर्चा में एनआरसी-सीएए पर अपनी राय रखी।
छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों के सीएम एनआरसी-सीएए का खुलेतौर पर विरोध कर चुके हैं। उन्होंने अपने राज्यों में एनआरसी-सीएए लागू नहीं होने देने की बात कही है। छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू ने भी दो दिन पहले मीडिया में यही बात दोहराई है। पूर्व प्रमुख सचिव देवेन्द्र वर्मा का मानना है कि केन्द्रीय कानून को रोकने का अधिकार राज्यों को नहीं है। ये बात कानून के खिलाफ टीका-टिप्पणी करने वाले राजनेता भी जानते हैं। मगर उनकी यह टिप्पणी संविधान के खिलाफ भी है।
वे कहते हैं कि निर्वाचित जनप्रतिनिधियों ने संविधान की शपथ ली है और ऐसे में उनकी कानून के खिलाफ टिप्पणी असंवैधानिक है। पूर्व पूर्व विधानसभा सचिव का मानना है कि निर्वाचित जनप्रतिनिधियों का एनआरसी-सीएए को लागू नहीं करने की बात कहना सदन से अयोग्यता का कारण भी बन सकता है। यह उनकी अयोग्यता साबित करने के लिए एकदम फिट केस है। जिस तरह एनआरसी-सीएए के खिलाफ टीका-टिप्पणी हो रही है, उसको लेकर देर सवेर संबंधित नेताओं की सदस्यता समाप्त करने के खिलाफ कोई सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर सकता है, क्योंकि संवैधानिक विषयों पर सिर्फ सुप्रीम कोर्ट में ही सुनवाई हो सकती है। फिलहाल तो गली-मोहल्लों में एनआरसी-सीएए को लेकर बहस ही चल रही है।
भाजपा का समुद्रमंथन जारी
प्रदेश भाजपा के नए मुखिया की तलाश चल रही है। पूर्व सीएम रमन सिंह और बाकी दिग्गज नेताओं की अपनी अलग पसंद बताई जा रही है। इन चर्चाओं के बीच पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर, नारायण चंदेल और शिवरतन शर्मा प्रदेश अध्यक्ष को लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के समक्ष बेबाकी से अपनी बात कह चुके हैं। चूंकि नड्डा छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रभारी भी रह चुके हैं। और उनके प्रदेश के इन तीनों समेत कई अन्य से उनके व्यक्तिगत संबंध भी हैं। ऐसे में नड्डा ने उनकी बातों को गंभीरता से सुना।
तीनों नेताओं ने इशारों-इशारों में कह दिया कि नेता प्रतिपक्ष की तरह ही प्रदेश अध्यक्ष बनाने से पार्टी को खड़ा करना मुश्किल हो जाएगा। उन्होंने आक्रामक प्रदेश अध्यक्ष की जरूरत पर बल दिया। तीनों नेताओं को सुनने के बाद नड्डा के कहने पर राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष ने प्रदेश के सभी सांसदों से भी रायशुमारी की है। सुनते हैं कि सांसदों के विचार भी अजय, नारायण और शिवरतन से मेल खाते दिखे। प्रदेश अध्यक्ष के लिए खुद अजय चंद्राकर, विजय बघेल और रामविचार नेताम का नाम चर्चा में है। पूर्व सीएम रमन सिंह और सौदान सिंह की जोड़ी ने विष्णुदेव साय का नाम बढ़ाया है। चर्चा है कि आरएसएस सहित एक पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल ने बिलासपुर के सांसद अरूण साव को प्रदेश संगठन की कमान सौंपने की वकालत की है।
खास बात यह है कि हाईकमान ने रमन सिंह की पसंद पर विधायकों के बहुमत को नजरअंदाज कर धरमलाल कौशिक को नेता प्रतिपक्ष बनाया था। देखना है कि प्रदेश अध्यक्ष के चयन में पार्टी चंद्राकर, नारायण और शिवरतन की तिकड़ी की राय को महत्व देती है, अथवा नहीं। कुल मिलाकर नए प्रदेश अध्यक्ष के चयन से हाईकमान के सामने दिग्गजों की अपनी ताकत का भी प्रदर्शन हो जाएगा।
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