राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : राज्यसभा, चर्चा नहीं, अटकलें शुरू
29-Feb-2020
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : राज्यसभा, चर्चा नहीं, अटकलें शुरू

राज्यसभा, चर्चा नहीं, अटकलें शुरू

राज्यसभा के चुनाव 26 मार्च के लिए तय हुए हैं और महीना भर बाकी रहने पर भी अटकलें तो हर जगह लगती ही हैं क्योंकि राज्यसभा पहुंचना बहुत बड़ी बात होती है, छह बरस के लिए जिंदगी का सुख, दिल्ली में असर, और बाकी जिंदगी की पेंशन-सहूलियतें सब तय हो जाती हैं। छत्तीसगढ़ से अभी दो सीटें खाली हुई हैं जिनमें एक मोतीलाल वोरा की भी है। दूसरी सीट रणविजय सिंह जूदेव की है, लेकिन भाजपा इस बार विधायकों की कमी से किसी को राज्यसभा भेज नहीं पाएगी, और वह किसी नाम को छांटने की फिक्र से भी मुक्त है। दोनों नाम कांग्रेस के तय होना है, और एक अनार सौ बीमार वाली नौबत है। 

मोतीलाल वोरा कांग्रेस पार्टी के लिए इतनी अधिक अहमियत रखते हैं कि वे दिल्ली में सोनिया गांधी के सबसे करीबी लोगों में तो हैं ही, वे नेशनल हेरल्ड जैसे पार्टी-कारोबार को भी सम्हालते हैं, और यह जिम्मा सम्हालते हुए वे सोनिया और राहुल के साथ अदालती कटघरे में भी पहुंचे हुए हैं। एक नाव में सवार इन तमाम लोगों की एक-दूसरे पर निर्भरता भी मायने रखती है। जानकारों का कहना है कि वोराजी एक बार और राज्यसभा जाने के लिए बिल्कुल तैयार हैं, उनकी सेहत भी उम्र के विपरीत, किसी जवान नेता के टक्कर की है, और वे छत्तीसगढ़ में पैदा न होने पर भी पूरी जिंदगी से छत्तीसगढ़ की राजनीति करते आए हैं। दूसरी तरफ दिल्ली के जानकार कुछ लोगों का यह भी कहना है कि केरल के के.सी. वेणुगोपाल का नाम भी छत्तीसगढ़ से राज्यसभा के लिए तय हो सकता है, इनके लिए पार्टी अतिरिक्त कोशिश करेगी क्योंकि राहुल गांधी केरल से ही विशाल बहुमत से लोकसभा सदस्य निर्वाचित हुए हैं, और केरल ने कांग्रेस की लोकसभा में इज्जत बचाकर रखी है। लेकिन ऐसा लगता है कि छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जिस तरह छत्तीसगढ़ी-राजनीति कर रहे हैं, एक नाम खालिस छत्तीसगढ़ी का होगा। अब इसमें उनके पास संगठन के अपने सहयोगी गिरीश देवांगन, और राजनीतिक सलाहकार विनोद वर्मा के नाम हो सकते हैं, दोनों ही छत्तीसगढ़ी माटीपुत्र हैं, दोनों ही ओबीसी तबके के हैं। हालांकि इस बारे में मुख्यमंत्री के कुछ करीबी लोगों से पूछने पर उनका कहना है कि अभी मुख्यमंत्री के आसपास राज्यसभा को लेकर कोई चर्चा भी शुरू नहीं हुई है, और लोग अपने-अपने अंदाज से अटकलें लगा रहे हैं। 

जब अटकल की ही बात आती है तो मध्यप्रदेश में सिंधिया और दिग्विजय सिंह दोनों को राज्यसभा भेजने की तैयारी बताई जाती है, लेकिन अगर दिग्विजय सिंह को वहां से न भेजकर छत्तीसगढ़ से राज्यसभा में भेजा जाएगा, तो भी छत्तीसगढ़ के तमाम कांग्रेस विधायक खुश होंगे, क्योंकि सारे ही विधायक उन्हीं के साथी और प_े रहे हुए हैं। लेकिन यह बात सिर्फ राजनीतिक संबंधों के आधार पर है, यह अटकल की दर्जे की बात भी नहीं है। फिलहाल जो एक नाम अधिक संभावना रखता है वह मोतीलाल वोरा का है, क्योंकि वे खुद तैयार हैं, दूसरा नाम प्रदेश के भीतर या बाहर कहीं का भी हो सकता है। 

पुराने गुरू काम आए

पूर्व सीएम अजीत जोगी और नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ. शिवकुमार डहरिया के बीच चोली-दामन का साथ रहा है। जोगी, डहरिया के राजनीतिक गुरू माने जाते हैं। मगर जोगी ने कांग्रेस छोड़ी तो डहरिया ने उनका साथ छोड़ दिया। इसके बाद दोनों के रिश्तों में खटास आ गई। डहरिया अभी भी जोगी को लेकर सहज नहीं दिखते हैं। इसका नजारा विधानसभा में उस वक्त देखने को मिला जब भाजपा सदस्यों ने डहरिया की टिप्पणी से खफा होकर उनके विभागों के सवालों का बहिष्कार कर दिया। 

पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर ने तो डहरिया के प्रति अपनी नाराजगी का इजहार करते हुए यहां तक कह दिया कि आसंदी चाहे तो उनके (चंद्राकर) खिलाफ कार्रवाई कर दे, लेकिन वे नगरीय प्रशासन मंत्री से सवाल नहीं पूछेंगे। फिर क्या था, अजीत जोगी, भाजपा सदस्यों और डहरिया के बीच सुलह सफाई के लिए आगे आए। उन्होंने डहरिया के प्रति अपना प्रेम दिखाते हुए छत्तीसगढ़ी में गुजारिश की कि मैं तोर संरक्षक हौं, तोर अभिभावक रहैंव। हॉस्टल से यहां (विधानसभा) लाए हौं। मोर बात मान ले, एक लाईन मीठा बोल दे। सब कुछ ठीक हो जाही। कखरो मन में कोई बात नहीं रहई। डहरिया खड़े हुए और सफाई दी कि चंद्राकर और अन्य विपक्षी सदस्यों का वे सम्मान करते हैं।

उन्होंने आगे कहा कि वे जोगीजी का भी सम्मान करते हैं। छात्र राजनीति के दौर में जोगीजी जब कलेक्टर थे, तब एक बार हॉस्टल में उनका घेराव भी कर चुके हैं। वे जोगी से जुड़े रहे हैं, लेकिन बोचकने (अलग होने) में काफी समय लगा। उनकी टिप्पणी से जोगी समेत बाकी सदस्य भी हंस पड़े। 

रमन सिंह का बदला मिजाज

पूर्व सीएम रमन सिंह अब बाकी भाजपा सदस्यों को साथ लेने के लिए आतुर दिख रहे हैं। वे अब हरेक मुद्दे पर अपने विरोधी माने जाने वाले पार्टी विधायकों से चर्चा में परहेज नहीं कर रहे हैं।  दरअसल, नेता प्रतिपक्ष के चयन के बाद से रमन सिंह और बृजमोहन-ननकीराम कंवर खेमे के बीच दूरियां बढ़ गई थीं। हाल यह रहा कि ननकीराम कंवर ने रमन सिंह के पीएस रहे अमन सिंह और मुकेश गुप्ता के खिलाफ शिकायतों का पुलिंदा सीएम भूपेश बघेल को सौंप दिया था और सरकार ने जांच के लिए एसआईटी बिठा रखी है। 

कंवर की तरह पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर, नारायण चंदेल भी रमन सिंह से छिटके रहे हैं। शीतकालीन सत्र में तो रमन सिंह वकीलों की फीस से जुड़े सवाल पूछकर उलटे घिर गए थे। सीएम भूपेश बघेल और सत्तापक्ष के सदस्यों ने उन पर बुरी तरह चढ़ाई कर दी थी। हालांकि नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक और शिवरतन शर्मा ने थोड़ा बहुत सत्ता पक्ष के सदस्यों का प्रतिकार किया, लेकिन यह काफी नहीं था। बाकी भाजपा सदस्य खामोश रहे। धरमलाल कौशिक को तो बाकी भाजपा सदस्यों का साथ मिल रहा है, लेकिन रमन सिंह के साथ ऐसा नहीं था। सुनते हैं कि यह सब भांपकर रमन सिंह ने अपने खिलाफ नाराजगी को दूर करने के लिए खुद पहल की है। 

विधानसभा में ननकीराम कंवर के पास जाकर उनसे किसानों से जुड़े विषयों पर चर्चा की। यही नहीं, वे अजय और बाकी सदस्यों से भी लगातार बतियाते दिखे। इसका कुछ असर भी हुआ और भाजपा सदस्य विधानसभा में पिछले सत्रों के मुकाबले ज्यादा मुखर दिखे।  ( [email protected])

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