राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : कांग्रेस संगठन पर चर्चा
02-Mar-2020
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : कांग्रेस संगठन पर चर्चा

कांग्रेस संगठन पर चर्चा

प्रदेश कांग्रेस में फेरबदल की तैयारी है। प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया इस सिलसिले में प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम और सीएम भूपेश बघेल के साथ ही अन्य प्रमुख नेताओं से लगातार चर्चा भी कर रहे हैं। सुनते हैं कि मरकाम के करीबी कोंडागांव के रवि घोष को गिरीश देवांगन की जगह प्रभारी महामंत्री बनाया जा सकता है। गिरीश सीएम भूपेश बघेल के करीबी हैं और चर्चा है कि पार्टी उन्हें राज्यसभा में भेज सकती है। यह भी कहा जा रहा है कि यदि राज्यसभा में नहीं गए, तो उन्हें निगम-मंडल में जगह मिल सकती है। 

चर्चा यह भी है कि मप्र के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह ने अपनी तरफ से दो-तीन नामों की सिफारिश की है। इनमें से एक अल्पसंख्यक नेता भी है। हल्ला तो यह भी है कि प्रदेश संगठन में हिसाब-किताब रखने की पोजिशन में मरकाम अपने किसी विश्वस्त नेता को चाहते थे। उन्होंने मौजूदा व्यवस्था में बदलाव के लिए दबाव भी बनाया था। इसके लिए मरकाम को एक प्रभावशाली मंत्री का साथ भी मिला। मगर चर्चा है कि पार्टी के कई और प्रभावशाली नेताओं के दबाव के चलते उनकी इच्छा पूरी नहीं हो पा रही है। यानी हिसाब-किताब के लिए किसी नए पर भरोसा नहीं किया जाएगा। मौजूदा व्यवस्था कायम रहेगी। 

भाजपा संगठन, और अटकलें

प्रदेश भाजपा का मुखिया कौन होगा, इसको लेकर अटकलें लगाई जा रही है। यह तकरीबन तय हो गया है कि सर्वमान्य नेता को ही प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी जाएगी। चर्चा है कि प्रदेश के सांसदों ने पार्टी हाईकमान को साफ तौर पर बता दिया कि जाति समीकरण को ध्यान में रखकर प्रदेश अध्यक्ष बनाने से पार्टी को नुकसान हो सकता है। अभी पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरा हुआ है। ऐसे में पार्टी को खड़ा करने के लिए तेजतर्रार अध्यक्ष की जरूरत है। सांसदों की सलाह पर पूर्व केन्द्रीय मंत्री विष्णुदेव साय के नाम को नजर अंदाज कर नए नाम पर विचार हो रहा है। अब तेजतर्रार होने के पैमाने पर खरा माने जाने वाले एक सवर्ण नेता से जब कहा गया कि उन्हें अध्यक्ष बनना चाहिए, तो उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने 15 बरस सरकार चलाई है, वे ही लोग विपक्ष के इन दिनों में संगठन भी चलाएं, उनको पार्टी अगर आखिरी दो बरस में प्रदेश अध्यक्ष बनने कहेगी, तो वे सोचेंगे।

आंदोलन कितना उग्र हो?
धान खरीद मसले पर भाजपा एक बड़ा आंदोलन खड़ा करना चाहती थी। सरकार ने बात मान ली, तो आंदोलन का फैसला वापस ले लिया गया। मगर आंदोलन से पहले ही भाजपा नेताओं में आपसी मतभेद उभरकर सामने भी आ गए। सुनते हैं कि आंदोलन की तैयारी बैठक में एक तेजतर्रार पूर्व मंत्री ने यह सुझाव दिया कि कम से कम एक बेरिकेड्स तोड़कर आगे बढऩा होगा, तब कहीं जाकर माहौल बनेगा। इस पर किसान मोर्चा के एक पदाधिकारी ने उन्हें यह कहकर चुप करा दिया कि आंदोलन की अगुवाई उन्हें (पूर्व मंत्री) ही करना होगा, क्योंकि तोडफ़ोड़ की स्थिति में पुलिस कार्रवाई को सहने के लिए आम कार्यकर्ता तैयार नहीं है। उन्होंने पूर्व मंत्री की यह कहकर खिंचाई की कि पहले भी वे इस तरह की सलाह दे चुके हैं और खुद गायब हो जाते थे। किसान नेता की तीखी प्रतिक्रिया के बाद बैठक में थोड़ी देर के लिए खामोशी छा गई। ( [email protected])

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