राजपथ - जनपथ
फोन रिकॉर्डिंग की दहशत
सरकारों के लिए लोगों के मन में शक रहता ही है कि किसके फोन रिकॉर्ड किए जा रहे हैं। लोगों को याद होगा कि मुख्यमंत्री बनने के बाद जल्द ही भूपेश बघेल ने रायपुर के साईंस कॉलेज के एक कार्यक्रम में मंच पर ही माईक से कहा था कि ढांढ सर भी पिछली सरकार के वक्त उनसे वॉट्सऐप कॉल पर ही बात करते थे क्योंकि उन्हें आशंका थी कि उनके कॉल रिकॉर्ड हो रहे हैं। इस वक्त स्टेज पर विवेक ढांड भी मौजूद थे जो कि रमन सरकार में अपने कार्यकाल के आखिरी दिन तक मुख्य सचिव थे, और बाद में राज्य की सबसे ताकतवर कुर्सी रेरा पर काबिज हुए। क्योंकि उन्होंने इस बात का कोई खंडन नहीं किया, इसलिए जाहिर है कि भूपेश बघेल की कही बात सही थी। अब जब राज्य के कुछ नए-पुराने अफसरों और कुछ कारोबारी-नेताओं पर आयकर छापे पड़े, और बहुत बड़ा बवाल हुआ, तो यह बात सामने आई कि इन लोगों के टेलीफोन शायद इंटरसेप्ट किए जा रहे थे, और आयकर विभाग पूरी जानकारी लेकर आया था। अफसरों ने छापे के बाद इन तमाम लोगों के फोन पर से जानकारी भी निकाल ली थी, और लोगों को अब यह खतरा दिख रहा है कि फोन पर कोई भी बात सुरक्षित नहीं है, और वॉट्सऐप जैसे मैसेंजर की जानकारी भी फोन हाथ आने पर वापिस निकाली जा सकती है। इसका नतीजा यह हुआ कि लोग बड़ी तेजी से वॉट्सऐप से ऐसी दूसरी मैसेंजर सेवाओं पर जाने लगे हैं जो कि लोग वॉट्सऐप से अधिक सुरक्षित मान रहे हैं।
अभी तीन दिन पहले ऐसी ही एक दूसरी मैसेंजर सर्विस का पेज खोलने पर उन लोगों को बड़ा दिलचस्प नजारा देखने मिला जिनकीफोनबुक पर ऐसे तमाम लोगों के फोन नंबर दर्ज थे। सिग्नल और टेलीग्राम जैसे दूसरे मैसेंजरों के पेज पर यह दिखता है कि फोनबुक के और कौन-कौन लोग उस सर्विस को शुरू कर रहे हैं। तीन दिन पहले दोपहर के दो घंटों में ही छापों से प्रभावित लोगों में से आधा दर्जन ने सिग्नल शुरू किया, और उनके नाम दूसरों की स्क्रीन पर एक के बाद एक दिखते रहे, इनमें अफसर, भूतपूर्व अफसर, कारोबारी सभी किस्म के लोग थे।
अब वॉट्सऐप या ये दूसरी सेवाएं कितनी सुरक्षित हैं, और कितनी नाजुक हैं, इसका ठीक-ठीक अंदाज कम से कम आम लोगों को तो नहीं है। लेकिन एक दूसरा खतरा यह खड़ा हो रहा है कि किसी मैसेंजर सर्विस को पूरी तरह महफूज मानने वाले लोग उस पर अंधाधुंध संवेदनशील बातें करने लगते हैं, और यह भरोसा पता नहीं कितनी मजबूत बुनियाद पर है।
फिलहाल राजनीति, मीडिया, सरकार, और कमाऊ-कारोबार के बड़े लोग फोन पर बात हिचकते हुए कर रहे हैं, कुछ को राज्य सरकार की एजेंसियों से खतरा दिखता है, और कुछ को केन्द्र सरकार की एजेंसियों से। बहुत से लोगों को यह भी लगता है कि रमन सरकार के दौरान चर्चित अघोषित-गैरकानूनी इंटरसेप्टर का इस्तेमाल आज भी कोई सरकारी या कोई गैरसरकारी लोग कर रहे हैं। फिलहाल इस खतरे के चलते हुए ही सही, लोग फोन पर बकवास कम करने लगें, वही बेहतर है।
सिंधिया ने नीयत को मौका दिया
लोगों को राजनीतिक-सार्वजनिक जीवन के वीडियो और उसकी तस्वीरें अपनी नीयत की बात लिखने का मौका देते हैं। अभी ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा में गए, तो जाहिर है कि दस-बीस मिनट के कार्यक्रम में किसी पल वे मुस्कुरा रहे होंगे, किसी पल भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा मुस्कुरा रहे होंगे, और किसी पल दोनों खुश होंगे, या दोनों उदास होंगे। ऐसे में हर किसी को अपने मन की बात लिखने के लिए एक उपयुक्त फोटो या वीडियो हाथ लग ही गए, और लोगों ने उसकी व्याख्या करते हुए मन की बात लिख डाली। लोगों ने ट्विटर और फेसबुक पर तरह-तरह की भड़ास निकाली, और इस दलबदल से जुड़े, या उसके लिए जिम्मेदार, हर नेता-पार्टी को निशाना बनाया। होली का मौका था, जिस त्यौहार पर लोग आमतौर पर दारू या भांग पीकर मन की बात निकालते हैं, तो लोगों को इस बड़ी राजनीतिक हलचल के बहाने, और इस मौके पर भड़ास का मौका बढिय़ा मिला।
आज सुबह जब लोगों ने टीवी की खबरों पर ज्योतिरादित्य सिंधिया को केन्द्रीय रक्षा मंत्री, भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह से मिलते देखा, तो फिर लिखने का मौका मिला। राजनाथ सिंह अपने शिष्ट मिजाज के मुताबिक ठीक से बैठे थे, और ज्योतिरादित्य सिंधिया पांव मोड़कर झूलते हुए दिख रहे थे। फिलहाल भोपाल में क्या होगा इसे लेकर लोगों को सट्टा लगाने का एक बढिय़ा मौका मिला है, और सट्टा बाजार से कोरोना वायरस को थोड़ी सी छुट्टी मिलेगी।
बंजारा कुत्तों का बुरा मानना तय
जिस तरह मध्यप्रदेश के कांग्रेस और भाजपा के विधायक झुंड में कहीं बेंगलुरू, तो कहीं हरियाणा ले जाकर छुपाए जा रहे हैं, उससे लोगों को बहुत मजा आ रहा है। पार्टियों के कुछ तेज और तजुर्बेकार विधायक ऐसे बागी हो चुके, या बागी होने से बचाए जा रहे विधायकों को घेरकर चल रहे हैं उन्हें देखकर एक जानकार ने कहा- जब भेड़ों के रेवड़ लेकर लंबा सफर किया जाता है, तो गड़रिए बंजारा नस्ल के कुछ तेज कुत्तों को साथ लेकर चलते हैं। ऐसे दो-चार कुत्ते ही दो-चार सौ भेड़ों को दाएं-बाएं होने से रोककर रखते हैं। थोक में दलबदल की नौबत आने पर अतिसंपन्नता वाले ऐसे माहिर नेताओं को विधायकों की खरीदी के लिए, या उन्हें बिक्री से बचाने के लिए तैनात किया जाता है। हालांकि यह बात तय है कि बंजारा नस्ल के कुत्तों को उनकी यह मिसाल अच्छी नहीं लगेगी, फिर भी बात को सरल तरीके से समझाने के लिए यही उदाहरण अभी सबसे सही लग रहा है। ([email protected])