राजपथ - जनपथ
मोबाइल कोरोनाग्रस्त?
दिल्ली से लौटने के बाद सीएम भूपेश बघेल ने कोरोना को लेकर आपात बैठक बुलाई, तो इसमें सरकार के दो मंत्री रविंद्र चौबे और मोहम्मद अकबर मौजूद थे। मगर स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव को बैठक की सूचना नहीं मिल पाई और वे रायपुर में रहने के बावजूद बैठक में शामिल नहीं हो पाए। सिंहदेव इससे खफा बताए जा रहे हैं। उन्होंने खुले तौर पर अपनी नाराजगी का इजहार किया और इसके लिए सीएम सचिवालय के अफसरों पर दोषारोपण किया। सिंहदेव की नाराजगी को भाजपा ने लपक लिया और नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने यहां तक कह दिया कि भविष्य में छत्तीसगढ़ से भी कोई सिंधिया निकल जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
कुछ नेता तो इसको भूपेश और सिंहदेव के बीच मतभेद से जोड़कर देखने लगे। मगर अंदर की खबर यह है कि स्वास्थ्य मंत्री सिंहदेव रायपुर में हैं, इसकी जानकारी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को नहीं दी गई थी। बैठक में स्कूलों को भी बंद करने का फैसला लिया गया, लेकिन स्कूल शिक्षामंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह को भी बैठक की जानकारी नहीं थी। जबकि वे भी रायपुर में थे। बाद में प्रेमसाय ने संसदीय कार्यमंत्री रविंद्र चौबे से बैठक की सूचना नहीं मिलने की बात कही, तो संसदीय कार्यमंत्री ने उनसे कहा कि वे (स्कूल शिक्षामंत्री) रायपुर में हैं, इसकी जानकारी नहीं थी। विभाग के लोगों ने भी नहीं बताया। चूंकि कोरोना को लेकर भय का वातावरण बन रहा है। इसलिए आनन-फानन में बैठक बुलाकर विभागीय मंत्री की गैर मौजूदगी में कुछ फैसले ले लिए गए। प्रेमसाय तो संतुष्ट हो गए, लेकिन सिंहदेव को कोई यह बात बता पाता, इससे पहले उनकी नाराजगी छलक गई। अब आज मोबाइल के वक्त में भी अगर अफसर कुछ दूरी पर बैठे मंत्रियों का पता नहीं लगा पाए, तो यह फोन के कोरोनाग्रस्त होने का मामला लगता है। सिंहदेव ने भी जिम्मेदार अफसरों को ही माना है।
निगम-मंडल की तैयारी
अपै्रल में निगम-मंडलों में नियुक्ति हो सकती है। इसको लेकर दावेदार काफी सक्रिय भी हैं और इसके लिए बड़े नेताओं के चक्कर काट रहे हैं। सुनते हैं कि मलाईदार खनिज निगम के लिए कांग्रेस के दो ताकतवर पदाधिकारियों में रस्साकसी चल रही है। नई रेत नीति प्रभावशील होने के बाद खनिज निगम के चेयरमैन का पद काफी पावरफुल हो गया है।
खास बात यह है कि दोनों ही पदाधिकारी सीएम के खास माने जाते हैं। एक पदाधिकारी तो राज्यसभा टिकट के दावेदार थे। और उन्हें पूरी उम्मीद है कि राज्यसभा टिकट न मिलने की भरपाई पार्टी उन्हें जरूर करेगी। जबकि दूसरे पदाधिकारी अपने आपको अनुभवी बता रहे हैं। दरअसल, इस पदाधिकारी के नजदीकी रिश्तेदार रमन सरकार में निगम के पदाधिकारी रह चुके हैं। ऐसे में वहां के सारे खेल-तिकड़म से परिचित हैं। चर्चा तो यह भी है कि भाजपा नेता के नजदीकी रिश्तेदार कांग्रेस पदाधिकारी ने पार्टी के रणनीतिकारों को खबर भिजवाई भी है कि यदि उन्हें निगम की जिम्मेदारी सौंपी जाती है, तो पार्टी को इसका भरपूर लाभ मिलेगा। देखना यह है कि पार्टी निगम की कमान किसे सौंपती है।
कब्र फाड़कर निकला इतिहास
लोग कहते हैं कि किसी की जिंदगी को नंगा करना हो तो उसे चुनाव लड़वा दो। और जब इतने से भी हसरत पूरी न हो, तो उसका दलबदल करवा दो। बहुत से लोग जो पुराने दल के हमदर्द हैं, वे धोखे की शिकायत करते हुए दलबदलू के खिलाफ सौ किस्म की बातें लिखने लगते हैं, और जो लोग गंदगी पाने वाले दल के लिए हमदर्दी रखते हैं, वे ऐसी आती हुई गंदगी के खिलाफ सौ किस्म की दूसरी बातें लिखने लगते हैं। अब सिंधिया के भाजपा में जाने से लोगों को सिंधिया के इतिहास की इतनी याद आई कि हद हो गई। सिंधिया राजघराने ने अंग्रेजों का साथ दिया था जिसकी वजह से झांसी की रानी लक्ष्मीबाई शहीद हो गई थी, यह जानकारी इतिहास से निकालकर लोगों ने सोशल मीडिया पर पोस्ट की, और खूब लड़ी मर्दानी कविता को स्कूली किताबों से निकालकर पोस्ट किया जिसमें सिंधिया की अंग्रेजों से यारी का जिक्र चले आ रहा है। कुछ लोगों ने मध्यप्रदेश की शिवराज-भाजपा सरकार के वक्त के चुनाव अभियान का जिक्र किया जिसका निशाना सिंधिया थे। कई लोगों ने इतिहास की यह जानकारी निकालकर दी कि महाराष्ट्र का एक प्रचलित सरनेम शिंदे, अंग्रेजों ने बिगाड़कर सिंधिया कर दिया था, और तब से सिंधिया लोग उसी कुलनाम को ढो रहे हैं, अपना खुद का मूल कुलनाम शिंदे फिर वापिस नहीं लाए। इतिहास के किताबों में भी ऐसा ही जिक्र मिलता है कि 1755 तक इस वंश के मुखिया जयप्पाराव शिंदे थे, जो कि इसके तुरंत बाद जानकोजी राव सिंधिया हो गए। सन् 1755 के आसपास अंग्रेजों ने शिंदे को सिंधिया बना दिया, और तब से यह नाम वैसा ही चले आ रहा है। ऐसी तमाम बातें एक दलबदल के साथ कब्र फाड़कर निकलकर सामने आ रही है। अब दलबदलू को कुछ तो भुगतना ही होता है।
नया रायपुर और एक मजाक...
पिछले दिनों मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने विधानसभा में बजट पेश किया, तो उसी शाम संपादकों को चाय पर बुलाया। बातचीत की अधिकतर बातें तो छप गईं, कुछ उनके नाम से, कुछ अनौपचारिक चर्चा की तरह बिना नाम के, लेकिन उनकी कही एक बात कुछ अधिक गहरी थी, और वह कहीं चर्चा में नहीं आई। न सोशल मीडिया पर लिखा गया, और न ही उस पर समाचार दिखे।
दरअसल जब यह चर्चा चल रही थी कि नया रायपुर कब तक बसेगा, तो भूपेश बघेल का कहना था कि वे तो जल्द से जल्द मंत्री-मुख्यमंत्री के बंगले बनवा रहे हैं, और तुरंत वहां रहने चले जाएंगे। उनका कहना था कि वे जाएंगे तो अफसर भी जाएंगे, और धीरे-धीरे, तेजी से नया रायपुर बस जाएगा। उन्होंने इस बसाहट की एक ऐसी मिसाल दी जो बातचीत के बीच में खो गई, लेकिन वह थी बहुत मजेदार। उन्होंने बहुत शरारत के अंदाज में यह कहा कि फिल्म मंडी याद है या नहीं?
श्याम बेनेगल की फिल्म मंडी जिन्हें याद हो वे इसकी कहानी का वह हिस्सा भूल नहीं सकते जिसमें म्युनिसिपल कमेटी चकलाघर को शहर के बाहर भेजने का फैसला लेती है, और जब चकलाघर बाहर वीरान जगह पर जाकर शुरू होता है, तो धीरे-धीरे आबादी भी उसी तरफ बढऩे लगती है। अब ऐसी बात खुद मुख्यमंत्री तो बोल सकते थे, कोई और तो ऐसा मजाक कर नहीं सकता था। ([email protected])