राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : बाहर की रणनीति सदन में
18-Mar-2020
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : बाहर की रणनीति सदन में

बाहर की रणनीति सदन में

छत्तीसगढ़ विधानसभा के इतिहास में पहला मौका है जब किसी सदस्य ने नाराजगी दिखाते हुए आसंदी पर कागज फाड़कर फेंक दिया।  वैसे तो, उत्तरप्रदेश के विधानसभा में राज्यपाल के अभिभाषण को फाड़कर आसंदी पर फेंकने की घटनाएं कई बार हो चुकी हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ विधानसभा में इस तरह की घटनाएं पहले कभी नहीं हुई थीं। अब जब सदन की कार्रवाई स्थगित करने के विरोध में बृजमोहन अग्रवाल और अजय चंद्राकर ने कार्यसूची फाड़कर आसंदी की तरफ फेंकी, तो मामला तूल पकड़ रहा है। 

सत्तापक्ष के सदस्यों ने विधानसभा सचिवालय को विशेषाधिकार हनन की सूचना देकर बृजमोहन और अजय के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। दोनों के खिलाफ कार्रवाई के लिए दबाव बन रहा है। दूसरी ओर, चर्चा है कि यह घटना पूर्व नियोजित थी। यह तय था कि कोरोना के चलते सदन की कार्रवाई नहीं चलेगी। ऐसे में बृजमोहन खेमे ने कार्यसूची फाड़कर फेंकने की रणनीति पहले ही बना ली थी। 

चूंकि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष की नियुक्ति होनी है और पार्टी हाईकमान इसके लिए तेजतर्रार नेता की तलाश कर रहा है। अब जब कोरोना के चलते पार्टी की गतिविधियां विज्ञप्तियों तक सीमित होकर रह गई है, ऐसे मौके पर सदन में अपने को आक्रामक साबित करने का इससे बेहतर मौका नहीं था। दोनों विधायकों ने इस मौके को भुनाया भी। अब देखना है कि हाईकमान के प्रदेश अध्यक्ष चयन के मापदण्ड में दोनों नेता खरे उतरते हैं, या नहीं। 

हिन्दी में ब्लैकह्यूमर के खतरे...
बहुत से हौसलामंद लोग इन दिनों सोशल मीडिया पर कोरोना का मजाक उड़ा रहे हैं। ये लोग कोरोना-मौतों से भी न डर रहे हैं, न हिचक रहे हैं। दरअसल अंग्रेजी में मौतों से जुड़े लतीफों को ब्लैक-ह्यूमर कहा जाता है, जिसका चलन हिन्दी में न के बराबर है। हिन्दी में तो मरने वाले को तुरंत ही स्वर्ग अलॉट करके स्वर्गीय लिखना शुरू हो जाता है, फिर चाहे हर किसी को यह गारंटी हो कि मृतक अपनी हरकतों की वजह से नर्क में भी मुश्किल से भी ईडब्ल्यूएस क्वार्टर ही पाएगा। ऐसे में कोरोना के मजाक कुछ लोगों को बुरे भी लग रहे हैं क्योंकि मौत के खतरे के साथ मजाक अच्छी नहीं लगती। हमेशा सिर्फ सफेद कपड़े पहनने वाले एक आदमी ने बिल्कुल सफेदी की चमकार वाला कोरोना-मास्क पहन लिया तो लोगों ने कहा कि रूबिया मैचिंग हाऊस से लेकर आया है। दूसरे ने मजाक को आगे बढ़ाया कि ये बाकी जिंदगी भी सफेद ही पहनेंगे, और गुजर जाएंगे, तो भी (कफन में) यही रंग जारी रहेगा। यहां तक तो बात फिर भी चल गई, लेकिन कोरोना-वैराग्य के बीच किसी ने इस ब्लैकह्यूमर को और दो कदम आगे बढ़ाया, और कहा कि गुजर जाने पर इनका भी यही रंग जारी रहेगा, और इनकी जीवनसंगिनी का भी। 

ऐसे काले मजाक फिर चाहे वे कितने ही सफेद रंग पर टिके हुए हों, लोगों को एकदम से भड़का सकते हैं। इसलिए अंग्रेजी का ब्लैकह्यूमर हिन्दी में कुछ सोच-समझकर, खतरा तौलकर ही इस्तेमाल करना चाहिए। 

कोरोना और सांस्कृतिक-विज्ञान
कोरोना से बचाव के चक्कर में लोग कई किस्म की परंपरागत बातों में विज्ञान ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं। घर-परिवार के बीच अधिक समय गुजारने की मजबूरी लोगों के बीच कई किस्म की चर्चा छेड़ रही है। एक किसी ने कहा कि पहले लोग जब पखाने जाते थे, और साबुन का चलन नहीं था तो मिट्टी से तीन बार हाथ धोने का रिवाज था। तीन बार हाथ धोते-धोते कोरोना जैसे तमाम कीटाणु-जीवाणु निकल जाते रहे होंगे। दूसरे ने कहा कि राख का भी इस्तेमाल होता था, और राख से तो तेल वाले बर्तनों की चिकनाहट भी निकल जाती थी, और हाथों को भी वैसा नुकसान नहीं होता था जैसा आज लिक्विड सोप से हाथों को होता है। एक ने कहा कि राख से तो कोरोना भी खत्म हो जाता होगा, तो एक ने सुझाया कि जब तक कोई वैज्ञानिक रिसर्च ऐसा साबित न करे, तब तक ऐसी बात को आगे बढ़ाना खतरनाक होगा। कुल मिलाकर कोरोना से पैदा हुआ एकाकी जीवन लोगों को कहीं भूले-बिसरे दिन याद दिला रहा है, तो कहीं दार्शनिक बना रहा है, तो कहीं सोशल मीडिया पर अधिक सक्रिय कर रहा है। ([email protected])

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