राजपथ - जनपथ
जिम्मेदारी से बाहर जाकर काम..
छत्तीसगढ़ के दो अफसर अपनी सीधी जिम्मेदारियों से आगे बढ़कर जिस तरह सोशल मीडिया पर लोगों की मदद करते दिख रहे हैं, वह उन्हें बाकी लोगों से अलग कर रहा है. जिलों के कलेक्टर या एसपी का तो कई किस्म का जिम्मा भी बनता है, लेकिन बिलासपुर के आईजी दीपांशु काबरा , और राजभवन के सचिव, श्रम सचिव सोनमणि बोरा एक-एक ट्वीट देखते ही उस दिक्कत को सुलझाने में लग जाते हैं. सरकारी इंतजाम में ट्विटर पर जवाब देने के बाद भी बहुत से फ़ोन करने पड़ते हैं, तब कहीं जाकर कोई काम हो पता है. लेकिन ट्विटर पर दीपांशु और सोनमणि जिस तरह लगे हुए हैं, वह देखने लायक है. वे न सिर्फ मदद का वायदा कर रहे हैं, बल्कि काम हो जाने पर उसकी जानकारी भी पोस्ट कर रहे हैं. अफसरों का ऐसा उत्साह भी सरकार की छवि बनाता है, लोगों की मदद तो करता ही है।
सोनमणि बोरा को इस अखबार को मिली एक तकलीफ भेजी गयी. किसी ने पुणे से फ़ोन करके 'छत्तीसगढ़Ó अख़बार को बताया था कि वे छत्तीसगढ़ के हैं, पुणे में फंसे हैं, और काने को भी नहीं है. सोनमणि बोरा ने कुछ घंटों के भीतर ही जवाब भेजा- श्रमिक पुणे में केमिकल कंपनी पोस्ट विंस प्रोसेसर में कार्यरत है. श्रमिक से बात किया गया। प्रारम्भ में उन्होंने भोजन कोई नहीं पहुंचा रहा है ऐसी शिकायत की थी. इनसे सुपरवाइज का नंबर 7385------- लिया गया उनसे संपर्क करने पर उन्होंने बताया कि 12 अप्रैल को ही श्रमिकों को भुगतान हुआ है और आवेदक जीवन लाल को 12000 रुपये भुगतान किया गया है , इस संबंध में फैक्ट्री मालिक श्री जाधव जी 9881----- से भी संपर्क किया गया उनके द्वारा भी यही जानकरी दी गई। साथ ही नजदीक के राशन दुकान में सामान देने को कह दिया गया है बताया गया, पुष्टि के लिए पुन: श्रमिक से संपर्क किया गया और श्रमिक ने भी स्वीकार किया कि 12000 रुपये 11 य 12 अप्रैल को प्राप्त हुए है. श्रमिक का कहना है कि मैं अकेले पड़ गया हूं इसलिये डर लग रहा है घर वापस जाना चाहता हूँ. उन्हें लॉक डाउन तक घर पर ही सुरक्षित रहने की सलाह दी गई।
बेवजह की बदनामी
सियासी मामले-मुकदमे आखिर में अदालतों तक ही पहुंचते हैं। पत्रकार अर्नब गोस्वामी के खिलाफ तीन राज्यों में दर्ज एफआईआर की सुनवाई भी सुप्रीम कोर्ट में हुई। यह मामला भी सियासी आरोप-प्रत्यारोप का ही है। सभी राज्यों से अलग छत्तीसगढ़ में अर्नब गोस्वामी के खिलाफ रायपुर से लेकर सुकमा तक 101 एफआईआर दर्ज कराई गई थी। सुनवाई से कुछ देर पहले तक पुलिस लिखा पढ़ी करती रही। ऐन वक्त पर पत्रकार को हाजिर होने के लिए नोटिस जारी किया गया। खैर ये तो कानूनी प्रक्रिया है, जिसके तहत कार्रवाई की जा रही है, लेकिन सवाल यह है कि मामले मुकदमे दर्ज करने से लेकर नोटिस जारी करने तक कानून की किताबें तो जरुर खंगाली जाती होंगी, लेकिन जिरह के दौरान जिस तरह से कोर्ट ने पाया कि एक साथ 101 एफआईआई का कोई औचित्य नहीं है और इसे विधि सम्मत नहीं माना जा सकता, ऐसी स्थिति में राज्य के कानून विशेषज्ञों और सलाहकारों पर सवाल उठना लाजिमी है।
सभी जानते हैं कि अदालतों में छोटी सी गलती और सियासी नफा-नुकसान के लिए उठाए गए कदमों का बड़ा संदेश जाता है, क्योंकि अदालतों में सुनवाई तथ्यों और सबूत के आधार पर होती है। ऐसे में बारीक से बारीक बिन्दु का अध्ययन जरुरी है। वरना कोर्ट की फटकार भी लग सकती है। फटकार न भी मिले तो दूसरे पक्ष को राहत मिलना भी बड़ी बात होती है। इस केस में भी कानून विशेषज्ञ इस बात से दुखी है कि केवल सियासी और प्रशासनिक सलाह पर कोर्ट कचहरी की कार्रवाई नहीं चलती। उनका मानना है कि अदालती नतीजा अगर पक्ष में है तो कोई बात नहीं, लेकिन खिलाफ में है, तो सभी कानून के जानकारों की भूमिका पर सवाल उठाते हैं। पहले ही छत्तीसगढ़ के कई कानूनी मामलों में पक्ष में फैसला नहीं आने से सवाल उठते रहे हैं। ऐसे में इस मामले में भी कमजोर कानूनी तैयारी ने एक बार कानूनी सलाहकारों को कटघरे में ला दिया है। वे इसी बात से परेशान हैं कि बेवजह की बदनामी उन्हें मिल रही है।
कांग्रेस पार्टी में दिल्ली के स्तर पर ऑपरेशन-अर्नब को नामी वकील और कांग्रेस राज्यसभा सदस्य विवेक तन्खा देख रहे थे. वहीं से एक ड्राफ्ट बनकर आया कि पार्टी जगह-जगह ऐसी पुलिस-रिपोर्ट करवाए. अंग्रेज़ी से हिंदी किया गया और पार्टी के हुक्म को पूरा किया गया. पहले भी बहुत से मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस-रिपोर्ट की ऐसी कार्पेट-बॉम्बिंग के खिलाफ राहत दी हुई है. अर्नब गोस्वामी को तुरंत राहत मिल गयी. जब कई प्रदेशों में एक सरीखी रिपोर्ट दजऱ् होती है, तो सुप्रीम कोर्ट को भी अभियान समझ आ जाता है. कुल मिलकर देश भर में कांग्रेस के खिलाफ ही माहौल बन गया. यह एक अलग बात है कि इसी दौर में छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंहदेव भी मौके पे चौका लगाने रिपोर्ट लिखने थाने पहुँच गए, जो कि कई लोगों का मानना है कि एक मंत्री को नहीं करना चाहिए था।
दिग्गजों के चक्कर में नेता प्रतिपक्ष नहीं...
चार महीने बाद भी भाजपा रायपुर नगर निगम में पार्षद दल का नेता नहीं तय कर पाई है। जबकि प्रदेश के अन्य निकायों में चुनाव के थोड़े दिनों बाद ही पार्टी ने नेता प्रतिपक्ष का नाम घोषित कर दिया था। रायपुर नगर निगम के नेता प्रतिपक्ष के लिए अभी तक किसी एक नाम पर सहमति नहीं बन पाई है।
सुनते हैं कि सांसद सुनील सोनी और पूर्व मंत्री राजेश मूणत अपने करीबी पार्षद को नेता प्रतिपक्ष बनाना चाहते हैं। दोनों ही अड़ गए हैं। यही वजह है कि नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी अब तक खाली है। चर्चा है कि सुनील सोनी, सीनियर पार्षद सूर्यकांत राठौर को नेता प्रतिपक्ष बनाने के पक्ष में हैं, तो राजेश मूणत, पार्षद मीनल चौबे को पार्षद दल का मुखिया बनाना चाहते हैं।
पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने अब तक किसी का नाम नहीं लिया है, लेकिन कहा जा रहा है कि वे भी सूर्यकांत राठौर को नेता प्रतिपक्ष बनाने के पक्ष में हैं। पार्षद दल का नेता नहीं चुने जाने से भाजपा निगम के भीतर विपक्ष की भूमिका अदा नहीं कर पा रही है। कोरोना संक्रमण के चलते रायपुर शहर में लॉकडाउन है, तो अब पीलिया का कहर टूट पड़ा है। भाजपा के कई पार्षदों का हाल यह है कि वे अपने वार्ड में जरूरतमंद लोगों को राशन और अन्य जरूरत की सामग्री उपलब्ध कराने के लिए कांग्रेस के नेताओं के आगे-पीछे हो रहे हैं। पीलिया से करीब 5 हजार लोग पीडि़त हैं। इतना सब होते हुए भी भाजपा पार्षदों ने खामोशी ओढ़ ली है। अब नेता ही नहीं तो लड़ाई-झगड़े का सवाल ही नहीं है।
पीडब्ल्यूडी में फेरबदल के मायने
आखिरकार पीडब्ल्यूडी में बहुप्रतीक्षित फेरबदल हो ही गया। डीके अग्रवाल की जगह विजय कुमार भतप्रहरी को ईएनसी का प्रभार सौंपा गया। सुनते हैं कि अग्रवाल को हटाने के लिए सालभर पहले ही नोटशीट चल गई थी। भतप्रहरी को अग्रिम बधाई देने वालों का तांता लग गया था। मगर नोटशीट अटक गई थी। इससे परे अग्रवाल निर्विवाद रहे हैं। उनकी साख भी अच्छी रही है। ऐसे में उन्हें हटाने का फैसला आसान नहीं था। लेकिन स्काईवॉक से लेकर एक्सप्रेस-वे में अनियमितता आदि को लेकर अग्रवाल पर भी छींटे पड़ रहे थे। उन पर कामकाज में नियंत्रण न होने का आरोप लग रहा था।
इन सबके बीच में कुछ दिन पहले एक युवा नेता ने उनके खिलाफ शिकायतों का पुलिंदा ईओडब्ल्यू को सौंपा था। ऐसे में संकेत मिलने लग गए थे कि देर-सवेर अग्रवाल की बिदाई हो सकती है। ठेकेदारों ने भी इसके लिए जमकर मेहनत भी की थी। ऐसे में सोमवार देर रात को विधिवत आदेश निकला, तो किसी को हैरानी नहीं हुई। खाद्यमंत्री अमरजीत भगत के करीबी एमएल उरांव एसई, सेतु मंडल को अंबिकापुर प्रभारी चीफ इंजीनियर का अतिरिक्त दायित्व सौंपा गया है। उरांव की पदस्थापना से टीएस सिंहदेव के गढ़ में अमरजीत भगत का दबदबा बढ़ा है। ([email protected])