राजपथ - जनपथ
नेताओं की अगली पीढ़ी
कांग्रेस के बड़े नेताओं के परिवार के सदस्य अब धीरे-धीरे राजनीति में कूद रहे हैं। कुछ तो आ चुके हैं, और कुछ उच्च शिक्षित युवा प्रोफेशनल कांग्रेस के जरिए राजनीति में सक्रिय हो रहे हैं। पूर्व केन्द्रीय मंत्री शशि थरूर की अगुवाई में ऑल इंडिया प्रोफेशनल कांग्रेस दो साल पहले ही अस्तित्व में आया था। इसके जरिए इंजीनियर, डॉक्टर, सीए और अन्य उच्च शिक्षित लोगों को कांग्रेस से जोडऩा मकसद रहा है। छत्तीसगढ़ में प्रोफेशनल कांग्रेस का पुनर्गठन हुआ है। यहां अध्यक्ष का दायित्व संभाल रहे धमतरी के नेता पंकज महावर की जगह अब क्षितिज विजय चंद्राकर को जिम्मेदारी सौंपी गई है।
क्षितिज, दिवंगत पूर्व केन्द्रीय मंत्री चंदूलाल चंद्राकर के परिवार से हैं, और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के दामाद भी हैं। क्षितिज आईटी एक्सपर्ट हैं और वे कनाडा में काम कर चुके हैं। थरूर ने प्रोफेशनल कांग्रेस के सचिव की जिम्मेदारी सुश्री ऐश्वर्या सिंहदेव को सौंपी है। ऐश्वर्या, पंचायत मंत्री टीएस सिंहदेव की भतीजी हैं और जिला पंचायत सदस्य आदित्येश्वर शरण सिंहदेव की बहन है। ऐश्वर्या की पढ़ाई लंदन में हुई है। और वे महिलाओं की समस्याओं को लेकर जागरूक भी हैं। राजनीतिक परिवार से होने से पहचान को लेकर संकट नहीं है। मगर उन्हें अब प्रोफेशनल कैरियर से हटकर काम कर दिखाना होगा।
राजधानी के बल्लम नेताओं का संघर्ष
राजधानी रायपुर में कांग्रेस के बड़े नेताओं को अपनी सियासी साख बचाए रखने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ रहा है। 15 साल बाद पार्टी सत्ता में आई तो उम्मीद थी कि उनका भी कुछ भला होगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। उलटे सरकार बनने के बाद जनता की अपेक्षाएं बढ़ गई। ऐसे में विधायकी बचाए रखने के लिए जमकर पसीना बहाना पड़ रहा है। शहर के एक युवा विधायक तो अब आटो रिक्शा चलाते गली-गली घूम रहे हैं। कोरोना संक्रमण में क्षेत्र के लोगों को राशन से लेकर तमाम जरुरी सामान खुद उपलब्ध करा रहे हैं। इतना ही नहीं पानी, सफाई जैसी तमाम समस्याओं के लिए वे वार्ड वार्ड घूम रहे हैं। दरअसल, उन्होंने प्रदेश की हाईप्रोफाइल सीट से बीजेपी के बड़े नेताओं को हराया है। ऐसे में अगले चुनाव में पत्ता साफ होने का खतरा भी हो सकता है। लिहाजा नेताजी कोई कोर कसर छोड़ नहीं रहे हैं। माना जाता है कि सत्ताधारी दल के जनप्रतिनिधियों के पास लोगों को उपकृत करने के कई अवसर होते हैं, लेकिन अभी तक उन्हें यह अवसर मिला नहीं है, तो जनता से सीधा जुड़ाव रखना जरुरी है, वरना पब्लिक तो चुनाव में पूरा हिसाब-किताब चुकता कर देती है। इसी तरह रायपुर नगर निगम के एक नेताजी विपक्षी दल की सरकार में खूब चांदी काट चुके हैं, लेकिन अपनी पार्टी की सरकार बनने के बाद पद के लिए भी लाले पड़ गए थे। खैर, जैस-तैसे एडजस्ट हो पाए। चूंकि काफी मान मन्नौवल के बाद पद मिला है, तो नेताजी चुपचाप बैठने में ही भलाई समझ रहे हैं। उनको भी पता है कि ज्यादा सक्रियता दिखाने से लोगों की अपेक्षाएं बढ़ेंगी और उन्हें पूरा करने की स्थिति में हैं नहीं। हालांकि नेताजी को दिल्ली जाने का मौका मिला था, लेकिन उनका यह सपना पूरा नहीं हो सका। उनके बारे में कहा जाता है कि वे दिल्ली जाने से पहले ही इतने मशगूल हो गए थे, जिसका भी उन्हें नुकसान हुआ। वे सोशल मीडिया में अपनी एक पोस्ट के कारण भी चर्चा में है, जिसमें उन्होंने सरकार में नंबर टू की तारीफ की थी। हो सकता है कि कोई खिचड़ी पका रहे हों। इसी तरह राजधानी के एक और वयोवृद्ध नेताजी को उम्मीद दी थी कि सरकार बनने के बाद बड़ा ओहदा मिलेगा, लेकिन उनकी स्थिति भी जस की तस है। इंतजार करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। कुल मिलाकर इन नेताओं का समय पद बचाने की चुनौती और संघर्ष में ही बीतता दिख रहा है।