राजपथ - जनपथ
जोगी के लिए साय की प्रार्थना
छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी इस समय जिन्दगी और मौत के बीच झूल रहे हैं। उन्हें दवाओं के साथ दुआओं की भी जरुरत है। उनके स्वास्थ्य लाभ के लिए डॉक्टरों के साथ समर्थक और जानने वाले भी अपने-अपने तरीकों से कोशिश कर रहे हैं। इसी में एक नाम है वरिष्ठ आदिवासी नेता नंदकुमार साय का। साय जोगी के लिए महामृत्यृजंय का जाप कर रहे हैं।
जबकि जोगी और साय के बीच सियासी कटुता किसी से छिपी नहीं है। जोगी जब छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री थे, तो साय नेता प्रतिपक्ष हुआ करते थे। दोनों अलग-अलग विचारधारा के साथ अलग-अलग राजनीतिक दल से जुड़े हैं। सीएम और नेता प्रतिपक्ष का पद भी एक दूसरे के विरोध का माना जाता है। जोगी के मुख्यमंत्रित्वकाल में साय ने उनके निवास के सामने बड़ा प्रदर्शन किया था। इस प्रदर्शन में पुलिस ने जमकर लाठियां भांजी थीं । पुलिस की लाठी खाने से साय का पैर भी फ्रैक्चर हुआ था। जोगी पर विपक्षी दल के नेताओं की आवाज को दबाने के लिए पुलिस से पिटवाने के आरोप लगे थे। उस वक्त मुकेश गुप्ता रायपुर के एसपी हुआ करते थे।
जोगी की जाति के मसले को साय कोर्ट तक ले गए थे। अनुसूचित जाति जनजाति आयोग का अध्यक्ष रहते हुए भी उन्होंने जोगी की जाति पर सवाल उठाए थे। मरवाही से साय जोगी के खिलाफ चुनाव भी लड़ चुके हैं। जिसमें साय को हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद ही उन्होंने जोगी की जाति के मसले पर कोर्ट में याचिका लगाई थी। इतना सब कुछ होने के बाद भी साय भलमनसाहत दिखाते हुए जोगी के लिए अपने तरीके से प्रार्थना कर रहे हैं। यह छत्तीसगढ़ की सियासत की खासियत है कि जिंदगी भर एक दूसरे के घोर विरोधी भी जीवन मरण के मसले पर साथ खड़े हैं।
जोगी के बारे में भी कहा जाता है कि उनके हमेशा से अपने विरोधियों से अच्छे संबंध रहे हैं। जबकि, सियासी मैदान में विरोध करते करते कब कौन किसका दुश्मन बन जाता है, यह पता भी नहीं चलता। बात व्यक्तिगत टिप्पणियों से होते हुए बुरा-भला सोच तक पहुंच जाती है। पिछले दिनों बीजेपी के एक बड़े नेता के स्वास्थ्य को लेकर कई तरह की कहानियां सोशल मीडिया में सुनने को मिल रही थीं, जिसका उन्हें खंडन करना पड़ा। हम अक्सर राजनीति में शुचिता की बात करते हैं, लेकिन जब इसके पालन करने की बात होती है, तो सभी सियासी विरोध को प्रमुखता देते हैं। ऐसे समय में साय ने गिरते राजनीतिक मूल्यों के बीच मिसाल पेश की है। हम भी आशा करते हैं कि साय और उनके जैसे तमाम भलेमनसाहत रखने वालों की प्रार्थना स्वीकार हो, ताकि राजनीति में शुचिता को मुकाम हासिल हो सके।
कोरोना गया, प्रदेश अध्यक्ष आया?
लॉकडाउन में राज्यसभा सदस्य रामविचार नेताम काफी सक्रिय हैं। वे वीडियो कॉन्फ्रेंस कर सरगुजा संभाग के पदाधिकारियों की बैठक ले चुके हैं। वे राज्य सरकार पर तीखा हमला बोल रहे हैं। रामविचार का कद पार्टी के भीतर काफी बढ़ा है। उन्हें झारखंड के चुनाव में अहम जिम्मेदारी दी गई थी। चुनाव नतीजे भले ही पार्टी के अनुकूल नहीं आए। मगर उन्होंने झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड विकास पार्टी के मुखिया बाबूलाल मरांडी को भाजपा में शामिल कराने में अहम भूमिका निभाई। वैसे तो मरांडी की घरवापसी के लिए अमित शाह सीधे प्रयासरत थे, लेकिन नेताम की भूमिका को नकारा नहीं जा रहा है। रामविचार प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में भी हैं। उन्हें सरोज पाण्डेय और सौदान सिंह का साथ मिल रहा है, लेकिन चर्चा है कि पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह उनके नाम पर सहमत नहीं हो पा रहे हैं। यही वजह है कि उनके नाम की घोषणा नहीं हो पा रही है। माना जा रहा है कि कोरोना संक्रमण में कमी आते ही नए अध्यक्ष की घोषणा हो सकती है।
निर्वाचित लोग तो झांसे से बचें...
छत्तीसगढ़ के शहरों में लॉकडाऊन को लेकर जिस तरह के प्रयोग देखने मिल रहे हैं, वे लॉकडाऊन की पूरी जरूरत और नीयत, इन दोनों को खारिज कर दे रहे हैं। दारू के बारे में हम जितना लिख चुके हैं, उससे ज्यादा अब लिखने की जरूरत नहीं है क्योंकि केन्द्र सरकार ने जिस तरह दारू को खोला, उससे देश के तमाम राज्यों को चाहे-अनचाहे दारू शुरू करना पड़ा, और उसने पीने वाले तबके, और उनके संपर्क में आने वाले लोगों का शारीरिक-दूरी की, सोशल डिस्टेंसिंग की सारी कामयाबी को खत्म कर दिया। अब पाकिस्तान के एक मशहूर शायर की जुबान से, हर किसी को हर किसी से खतरा है।
लेकिन शनिवार-इतवार दो दिन के बाजार बंद के बाद आज जब बाजार खुले, तो शहर के बीच ट्रैफिक जाम हो गया। सारे दुपहिया वाले एक-दूसरे के बगल खड़े रहे, और डेढ़ महीने से चली आ रही मशक्कत किसी काम की नहीं रही। लेकिन सरकार के बीच बात की जाए तो पुलिस विभाग प्रशासनिक अधिकारियों को यह कहकर डरा देता है कि पुलिस के अमले पर वैसे भी बहुत दबाव है, काम के बोझ से वे थके हुए हैं, और ऐसे में दुकानों को खुलने के घंटे बढ़ाने का मतलब पुलिस का तनाव बढ़ाना है, और ऐसे में कभी पुलिस लाठी चलाने के बजाय गोली चला दे, तो पुलिस को जिम्मेदार न माना जाए। अब ऐसी चेतावनी के बाद प्रशासनिक अफसर ढीले पड़ जाते हैं कि कौन गोली चलने की नौबत लाए।
सच तो यह है कि छत्तीसगढ़ में सुबह से रात तक दुकानों को अगर खोला जाए तो बाजार की भीड़ एकदम घट जाएगी, दुकानों पर लोगों का शारीरिक संपर्क नहीं होगा, और आज जब व्यापारी संगठनों से लेकर पार्षद और विधायक तक बाजार खोलने के हिमायती हैं, तब यह गैरजरूरी रोक-टोक खत्म होनी चाहिए। हर इलाके के पार्षद हैं, विधायक हैं, और सांसद भी अपने-अपने इलाकों में हैं। हर इलाकों के व्यापारी संगठन हैं, और इन पर जिम्मेदारी डालकर बाजार बिल्कुल सुबह से देर रात तक खोलने की छूट देनी चाहिए ताकि मुर्दा पड़ा हुआ बाजार चल सके, गरीब कारीगरों के चूल्हे जल सकें। दारू से मोटी कमाई करने वाली सरकार को भी यह समझना चाहिए कि अगर बाजार से कलपुर्जे नहीं मिलेंगे, तो मरम्मत करने वाले कारीगर भी कमा नहीं पाएंगे, और सस्ती दारू के ग्राहक टूटने लगेंगे। आज गरीब-मजदूरों, कारीगरों, छोटे-बड़े व्यापारियों के भले के लिए बाजार को बेरोक-टोक खोलने नहीं दिया जा रहा, तो कम से कम दारू की बिक्री के हित में बाजार को पूरे वक्त खुलने देना चाहिए। संक्रमण को रोकने के लिए जरूरी हो तो भी लगातार दो दिन बाजार बंद रखने के बजाय हर तीन दिन के बाद एक दिन बाजार बंद करना चाहिए, और जिन दिनों बाजार खुले, उसे चौबीसो घंटे खुले रखने की छूट रहनी चाहिए। अफसरों को एक ही कार्रवाई समझ में आती है, जिसका नाम प्रतिबंध है। इसलिए हर जगह पुलिस और प्रशासन प्रतिबंध बढ़ाकर समझ लेते हैं कि कानून व्यवस्था बेहतर हो गई है। जनता के बीच से चुनकर आने वाले विधायकों, और उनमें से बने हुए मंत्रियों को इस झांसे से बचना चाहिए।