राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : फाईल पर भ्रष्ट लिखा, और बचाने पहुंचे
07-Jul-2020 6:26 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : फाईल पर भ्रष्ट लिखा, और बचाने पहुंचे

फाईल पर भ्रष्ट लिखा, और बचाने पहुंचे

सरकारों में पहले भ्रष्टाचार होता है, फिर उसके कोई जानकार उसकी शिकायत करते हैं, अगर भ्रष्ट के ऊपर के लोग शामिल नहीं होते तो एक जांच का आदेश हो जाता है। जिस अफसर को जांच का जिम्मा दिया जाता है, उसे छांटने का काम पहले ही इस पैमाने पर तय होता है कि जांच में फंसाना है या बचाना है। इस नीयत से तय किए गए जांच अफसर की अपनी फरमाईश पूरी होती है तो जांच रिपोर्ट उस हिसाब से अधिक से अधिक गोलमोल बन जाती है, और भ्रष्ट के बच निकलने का पूरा रास्ता निकाल दिया जाता है। बुनियाद ही ऐसी बनाई जाती है कि सरकार में बैठे लोग इस रिपोर्ट के आधार पर जांच को खारिज कर सकें, भ्रष्टाचार के आरोपों को फाईल कर सकें। इन सबके बावजूद हजार में से एक मामला ऐसा रहता है जो सारी सेटिंग से परे जाकर अफसर को या नेता को कुछ मुसीबत में डाल देता है, तो फिर इसके बाद न्यायपालिका में ऐसा ही सिलसिला शुरू होता है।

सरकार के एक सबसे बड़े कमाऊ विभाग में पिछली सरकार के वक्त का एक बड़ा खुला भ्रष्टाचार सामने आया जो कि दस करोड़ रूपए से अधिक का था। भाजपा सरकार के वक्त के इस भ्रष्टाचार की जांच जिस अफसर ने की, उसने फाईल पर भ्रष्टाचार को सही माना कि ऐसा हुआ है। बाद में साथी अफसरों के साथ वह भी मंत्री के पास गया, और इस जांच को खत्म करने, इस पर कोई कार्रवाई न करने की मांग करने लगा। अफसरों को यह आशंका थी कि जिस तरह कुछ बरस पहले धमतरी के आरा मिल कांड में बड़े-बड़े अफसर बरसों तक फंसे थे, उस तरह की नौबत इस मामले में भी आ जाएगी। फिर विभागीय अफसरों से ऊपर एक बड़े आईएएस अफसर की मंजूरी भी इस भ्रष्टाचार की फाईल पर भ्रष्टाचार करने के लिए किसी तरह दर्ज थी। मंत्री ने जब फाईल देखी तो सामने बैठे बड़े अफसर को भी देखा, और कहा कि फाईल की रिपोर्ट में भ्रष्टाचार हुआ लिखते हो, और यहां सामने आकर मुझसे केस खत्म करने के लिए कहते हो? फाईल पर खुद भले बने रहना चाहते हो, और यह चाहते हो कि कोर्ट जाने की नौबत आए तो मैं कटघरे में पहुंचूं?

यह तो बात हुई बातचीत की, लेकिन आखिर में हुआ यही है कि दस करोड़ से ऊपर के राजधानी के इस भ्रष्टाचार की खुली किताब धरी हुई है, और उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। पता नहीं ऐसे मामलों को देखकर ऐसे ही विभागों के 10-20 हजार रूपए रिश्वत लेकर जेल जाने वाले लोगों को क्या लगता होगा? भ्रष्टाचार जितना बड़ा हो, उसे दबाने और बचाने में उतने ही बड़े लोग जुट जाते हैं, यही वजह है कि आज बड़े-बड़े लोग सारे खुले भ्रष्टाचार के बावजूद विभागों के बाप बने बैठे हैं।

सरकार कोई भी हो, जागीरदार यही

कुछ बड़े भ्रष्ट लोग इतने अधिक उत्पादक और उपयोगी होते हैं, कि एक सरकार जाने के बाद दूसरी सरकार आने पर भी वे सत्ता के इतने ही चहेते बने रहते हैं। राज्य के एक कमाऊ विभाग में अखिल भारतीय सेवा से छांटकर भेजे गए एक बड़े अफसर का हाल यह है कि वे भाजपा सरकार के लंबे बरसों में अपने बड़े से इलाके का ठेका लेते थे। वहां के तमाम कर्मचारियों से लेकर अधिकारियों तक की ट्रांसफर पोस्टिंग वे अकेले तय करते थे, और जागीरदारी किस्म के इस अधिकार के लिए वे अंग्रेज बहादुर को एकमुश्त मोटी रकम देते थे। पूरा कमाऊ विभाग जानता था कि उनके ऊपर कोई भी अफसर रहें, कोई भी मंत्री रहें, अपनी जागीर पर वे एकाधिकार रखते थे, और रंगदारी की वसूली का एक हिस्सा मंत्री तक पहुंचाते थे। कोई भी, छत्तीसगढ़ी भी, इस व्यवस्था को हिला नहीं पाया। अब इस सरकार में भी यह अफसर इसी तरह का एकाधिकार चला रहा है, और दो अलग-अलग पार्टियों के राज में ऐसा कैसे किया जा सकता है, इसकी ट्रेनिंग अभी यहां प्रोबेशन पर चल रहे नए लोगों को जरूर दिलानी चाहिए। आज राज्य में इस विभाग का हर काम इसी अफसर से होकर गुजर रहा है, और पिछली सरकार के वक्त का पहाड़ जैसा भ्रष्टाचार तो पकड़ में आने के बाद भी उसी वक्त निपटा दिया गया था, और सौ फीसदी भ्रष्ट रहने के बावजूद कागज पर पाक-साफ होकर आज फिर उससे बड़ा पहाड़ खड़ा करने में लग गए हैं, और सत्ता ने भी इन्हें जागीरदारी दे दी है। यह देखकर विभाग के गिने-चुने ईमानदार लोग चुप बैठ गए हैं कि जिन्हें आज जेल में होना था, वे आज कमाई की रेलमपेल में हैं। इतना संगठित भ्रष्टाचार करने की क्षमता रखने वाले लोग किसी सत्ता को बुरे नहीं लगते।

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