राजपथ - जनपथ
बधाई इतनी भारी पड़ी !
भाजपा की दो महिला नेत्री शैलेंद्री परगनिया और मीनल चौबे, राज्य महिला आयोग की नवनियुक्त अध्यक्ष किरणमयी नायक को बधाई देकर फंस गई हैं। भाजपा के वॉटसएप ग्रुप में इसकी कड़ी आलोचना हो रही है। एक भाजपा नेता ने मैसेज पोस्ट किया कि किरणमयी नायक ने भाजपा के नेताओं के खिलाफ रात के 1 बजे तक लिखित शिकायत की थी। हाईकोर्ट में भाजपा नेताओं के खिलाफ भी याचिका लगाई है। ऐसी महिला के सम्मान के लिए पार्टी की महिला मोर्चा के पदाधिकारियों को जाना कहां तक उचित है।
इस नेता ने तो शैलेंद्री और मीनल के खिलाफ कार्रवाई तक की मांग कर दी है। दोनों महिला पदाधिकारियों को नई कार्यकारिणी में भी जगह मिलने की उम्मीद जताई जा रही है। मीनल का नाम तो नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष के लिए भी प्रमुखता से उभरा है। पूर्व मंत्री राजेश मूणत इसके लिए अड़े हैं, मगर सुनील सोनी इससे सहमत नहीं है। कुल मिलाकर दोनों बड़े नेताओं के बीच टकराव के कारण नेता प्रतिपक्ष नियुक्ति नहीं हो पा रही है। अब मीनल के किरणमयी को बधाई देने पर जिस तरह पार्टी नेताओं की भृकुटी तनी है, उससे मीनल के नेता प्रतिपक्ष बनने का दावा कमजोर होता दिख रहा है।
क्रिकेट से नोट तक, लार वालों के लिए...
वैसे तो कोरोना से जुड़ी हुई कोई भी और बात लिखने का अब दिल नहीं करता, लेकिन लोगों की जान बचाने के लिए फिर भी कुछ लिखना जरूरी लगता है। जिन लोगों को दिन भर नोट गिनने की जरूरत पड़ती है, और जिनके पास इतने भी नोट नहीं रहते कि मशीन लगा लें, वे लोग आमतौर पर थूक से काम चलाते हैं। जो लोग अधिक आधुनिक हो गए हैं वे लोग प्लास्टिक की एक डिब्बी में स्पंज का एक टुकड़ा रखते हैं, और उसमें पानी रखकर गीले स्पंज पर उंगलियां नम करके उससे नोट गिनते हैं।
अब आज कोरोना के खतरे में इन दोनों में से कौन सा तरीका अधिक खतरनाक है, यह समझना मुश्किल है। कोई दुकानदार अपने नोटों को बैंक ले जाने के पहले थूक लगाकर गिने, और बैंक में कोई उसे थूक लगाकर गिने, तो दूरदर्शन के एक मशहूर गाने की तरह, मिले थूक मेरा तुम्हारा..., जैसा हो जाएगा। खैर, बैंक में तो अब मशीन से नोट गिनते हैं, लेकिन मशीनविहीन छोटे लोग अब भी हाथों से गिनते हैं, अब भी बहुत से लोग थूक लगाते हैं, या फिर डिब्बी का स्पंज टेबिल के चारों तरफ बैठे कोई भी लोग इस्तेमाल करते हैं। कोरोना को यह नजारा बहुत सुहाता है।
लेकिन खबरों में ये छोटी-छोटी बातें नहीं आतीं, और बड़ी-बड़ी खबरों में भी केवल क्रिकेट गेंदबाज का थूक आता है कि लार लगाए बिना गेंद कैसे की जाए? गेंदबाजों की लार से खबरें ऐसी गीली हैं कि अखबारों के पन्ने गीले हो जाएं, या टीवी पर खेल की खबरें देखते हुए मॉनीटर से लार टपकने लगे। जो भी हो लोगों को अपनी लार काबू में रखनी चाहिए क्योंकि अब तक तो लापरवाह लार लोगों के कपड़े ही गीले कर सकती थी, अब तो वह जान ले सकती है। इसलिए किताबें पढ़ते हुए या अखबार के पन्ने पलटते हुए अपनी लार पर काबू रखें, क्योंकि हो सकता है जरा ही देर पहले किसी और ने ही उसे पलटा हो या जरा देर बाद कोई और उन्हें पलटे। ऐसे में साथ पढ़ेंगे साथ मरेंगे जैसा साथ ठीक नहीं है।
सुरक्षा इंतजाम और आशंका
सत्ता या विपक्ष के बड़े नेता जिन्हें उनके सुरक्षा दर्जे की वजह से बहुत से सिपाहियों और जवानों के घेरे में रहना पड़ता है, वे एक अलग किस्म के तनाव से गुजर रहे हैं। रोज अखबारों में देखते हैं कि किस थाने या बटालियन के, किस सुरक्षा बल के जवान कोरोना पॉजिटिव निकले हैं, और उन जगहों के दूसरे लोग उनके साथ तो तैनात नहीं हैं?
इसी तरह ये सुरक्षा कर्मचारी भी लगातार तनाव में रहते हैं, और रोज खबरों में देखते हैं कि कौन-कौन से नेता कोरोना पॉजिटिव निकले हैं, और अपने ऊपर मंडराते खतरे को लेकर सहमे रहते हैं।
सुरक्षा इंतजाम परस्पर विश्वास पर भी टिका होता है, और आज कोरोना ने लोगों के मन में एक-दूसरे के लिए खासा शक पैदा कर दिया है कि कहीं दूसरे लोग कोरोना पॉजिटिव न हों। खासकर एक वजह से यह शक बढ़ते चल रहा है कि हिन्दुस्तान में एक बड़ी आबादी कोरोना पॉजिटिव होकर उससे उबर भी जा रही है, और उनमें से किसी तरह के लक्षण नहीं दिखते, इसलिए जांच भी नहीं होती। अगर जांच हुई होती, तो आसपास के लोग सावधान भी हुए होते, लेकिन न जांच न आसपास के लोगों के सावधान होने की कोई जरूरत। यह समझने की जरूरत है कि आप उतने ही सुरक्षित हैं जितने आपके आसपास के लोग सुरक्षित हैं। इसलिए महज अपना खयाल रखना काफी नहीं है, आसपास सबको चौकन्ना रखना जरूरी है।