राजपथ - जनपथ
कौशल्या मंदिर तालाब एक नहीं छह
आज जब अयोध्या में राम मंदिर का भूमिपूजन हुआ है, तब लोगों को छत्तीसगढ़ में भी राम से जुड़ी कई बातें याद आईं। रायपुर के एक फोटोग्राफर नरेन्द्र बंगाले ने शहर से लगे हुए आरंग विधानसभा क्षेत्र के चंदखुरी गांव के कौशल्या मंदिर की यह फोटो भेजी है जो उन्होंने 2013 में शायद किसी हेलीकाप्टर से ली थी। इन सात बरसों में वहां आसपास कुछ निर्माण चाहे हो गए हों, लेकिन मोटेतौर पर कौशल्या मंदिर का यह तालाब आज भी चारों तरफ से खुला हुआ है। तालाब के बीच एक टापू पर मंदिर है, और वहां तक जाने के लिए एक पुल बना हुआ है। लेकिन ध्यान से देखें तो एक दिलचस्प बात यह है कि एक बड़े तालाब के इर्द-गिर्द पांच और तालाब बिल्कुल लगे हुए हैं, और खूब हरियाली है, चारों तरफ पेड़ हैं। इस जगह पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अभी कुछ दिन पहले ही पूजा की है, और इस पूरे मंदिर-तालाब के विकास की एक बड़ी योजना घोषित की है। ऐसी कोई भी योजना इन आधा दर्जन तालाबों की खूबसूरती को बरकरार रखने वाली होनी चाहिए।
एमएमआई दिग्गज सेठों का अखाड़ा...
रायपुर के बड़े अस्पतालों में से एक एमएमआई अस्पताल ट्रस्ट में वर्चस्व की लड़ाई चल रही है। शहर के बड़े धन्ना सेठों के दबदबे वाले इस ट्रस्ट में सरकारी-अदालती आदेश के बाद किसी तरह चुनाव हुए और लूनकरण जैन-महेन्द्र धाड़ीवाल के गुट ने ट्रस्ट पर कब्जा कर लिया। हालांकि चुनाव प्रक्रिया के खिलाफ सुरेश गोयल का धड़ा हाईकोर्ट गया है।
एमएमआई अस्पताल की स्थापना और ऊंचाईयों तक पहुंचाने के योगदान को लेकर दोनों धड़ों के अपने-अपने दावे हैं। यह भी प्रचारित हो रहा है कि ट्रस्ट के संस्थापक सदस्यों ने शहर में बेहतरीन स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने अपना काफी कुछ न्यौछावर किया था। इस अस्पताल का नाम एमएमआई रखने के पीछे जाहिर तौर पर वजह थी इसके प्रमुख संस्थापक महेंद्र धाडीवाल की कपडा-फर्म का नाम एम एम धाडीवाल होना. कपड़ा बाजार में इस फर्म को एमएम नाम से ही बुलाया जाता था।
ट्रस्ट के 11 संस्थापक सदस्यों ने अस्पताल की स्थापना वर्ष-1991-92 में कुल पौने दो लाख रूपए की पूंजी लगाई। बाद में अस्पताल के निर्माण के लिए 6 करोड़ रूपए ऋण लिए गए। यही नहीं, शहर के अनेक दानदाताओं ने उदारतापूर्वक सहयोग किया। तब कहीं जाकर अस्पताल अस्तित्व में आया।
शुरूआत में तो सबकुछ ठीक ठाक चलते रहा और फिर धीरे-धीरे आर्थिक स्थिति चरमराने लगी। लोन नहीं अदा किया जा सका और फिर एनपीए हो गया। बाद में वन टाइम सेटलमेंट के बाद तीन करोड़ रूपए भुगतान कर अस्पताल को कर्ज मुक्त कराया गया। कुछ लोगों का दावा है कि अस्पताल का ऋण चुकाने में सुरेश गोयल की अहम भूमिका रही है। मगर महेन्द्र धाड़ीवाल से जुड़े लोग इसको नकारते हैं। गोयल वर्ष-2007 से अध्यक्ष रहे। अस्पताल चलाना काफी खर्चीला हो रहा था, तब पूरा नियंत्रण बैंग्लोर के एक बड़े अस्पताल ग्रुप को दे दिया गया। तब से अब तक यह ग्रुप अस्पताल संचालन कर रहा है। ट्रस्ट का हस्तक्षेप सिर्फ इतना ही रहता है कि कुछ रोगियों को इलाज में छूट दिला सकता है। साथ ही ट्रस्ट के संचालन के लिए मुनाफे में से कुल ढाई फीसदी की राशि मिलती है।
अस्पताल का संचालन बैंग्लोर के ग्रुप को देने के बाद ट्रस्ट में वर्चस्व की लड़ाई शुरू हो गई और सुरेश गोयल विरोधी खेमा उन्हें हटाने की कोशिश में जुट गया । पहले 11 सदस्यों के अलावा कई नए सदस्य बनाए गए थे। सुरेश गोयल का खेमा चाहता था कि नए सदस्यों को भी मतदान का अधिकार दिया जाए। मगर विरोधी खेमा इसके पक्ष में नहीं था। बाद में रजिस्ट्रार फर्म एण्ड सोसायटी के नियमों के अनुसार हाईकोर्ट के आदेश के बाद प्रमुख सचिव मनोज पिंगुआ ने सुनवाई की और संस्थापक सदस्यों को ही वोट के अधिकार दिए गए। अब संस्थापक सदस्यों में से ज्यादातर महेन्द्र धाड़ीवाल के साथ थे, लिहाजा उनके खेमे की जीत हो गई। अब सुरेश गोयल के खेमे ने चुनाव प्रक्रिया के खिलाफ हाईकोर्ट याचिका दायर की है। कोर्ट का आदेश चाहे कुछ भी हो, लेकिन धन्ना सेठों के आपसी झगड़े से अस्पताल की प्रतिष्ठा पर आंच आई है, धन्ना सेठों की साख पर आंच आयी या नहीं पता नहीं।