राजपथ - जनपथ
जंगल के बाहर बहुत कम बचे...
सरकार बदलने के बाद ज्यादातर वन अफसरों को मूल विभाग में भेज दिया गया था। दो-तीन अफसर रह गए हैं, जिनकी पोस्टिंग पिछली सरकार ने की थी और मौजूदा सरकार ने उन्हें यथावत रहने दिया। अलबत्ता, वे पहले से ज्यादा पॉवरफुल हो गए हैं। इनमें सीएसआईडीसी के एमडी अरूण प्रसाद भी हैं, जो कि डीएफओ स्तर के अफसर हैं लेकिन उनके पास सीएसआईडीसी के साथ-साथ मंडी बोर्ड के एमडी का भी अतिरिक्त प्रभार है। डीएफओ स्तर के अफसर को इतना अहम दायित्व पहले कभी नहीं मिला था।
हालांकि वन अफसर आलोक कटियार की भी पोस्टिंग पिछली सरकार में हुई थी। मगर वे एडिशनल पीसीसीएफ स्तर के अफसर हैं। वे प्रधानमंत्री सडक़ योजना के साथ-साथ क्रेडा के सीईओ की भी जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। आलोक कटियार जब हॉर्टिकल्चर मिशन में थे, तब उसके काम की राष्ट्रीय स्तर पर तारीफ हुई थी. जब वे प्रधानमंत्री सडक़ योजना में थे, वहां बहुत अच्छा काम हुआ था. इस बार भी उन्होंने इस दुबारा पोस्टिंग में सडक़-निर्माण तेज कर दिया है, और केंद्र सरकार में उसकी तारीफ हुई है।
सुनते हैं कि सीनियर लेवल पर अफसरों की कमी को देखते हुए कुछेक वन अफसरों की पदस्थापना का सुझाव दिया गया था, लेकिन सीएम ने साफ तौर पर मना कर दिया। उनका मानना था कि प्रदेश में 43 फीसदी वन क्षेत्र हैं, ऐसे में वन अफसरों की ज्यादा जरूरत वन विभाग को है।
कुंभ में बिछुड़े भाई, सोच एक...
हिन्दुस्तान में सदियों से कई ऐसी बातें चली आ रही हैं जिनके बारे में बुजुर्गों का सम्मान करने वाले लोग उन्हें समझदारी की और तजुर्बे की बात कहते हैं। अब ऐसी बातों का चलन यह कहकर भी बढ़ रहा है कि पुराने लोगों को विज्ञान की बहुत समझ थी, और जब उन्होंने ऐसा कहा था, तो जरूर उसके पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक तर्क रहा होगा।
सच तो यह है कि वैज्ञानिक तर्क को एक बार छोड़ दिया जाए, तो अंधविश्वास और उसे बढ़ावा देने वाले कहावत-मुहावरे लोगों को वैसे ही बहाकर ले जाते हैं, जिस तरह बाढ़ की तूफानी नदी लकड़ी के मुर्दा टुकड़े को बहाकर ले जाती है।
अभी सोशल मीडिया पर पाकिस्तान से किसी ने वहां के लोगों के बीच मौजूद अंधविश्वास के बारे में लिखा तो लगा कि अरे पाकिस्तान तो हिन्दुस्तान का ही कुंभ के मेले में बिछुड़ा हुआ भाई है, और दोनों की रगों में खून तो एक ही है। उसने पाकिस्तान के अंधविश्वासों के बारे में लिखा- यहां के लोग यह तो नहीं मानेंगे कि कोरोना एक हकीकत है, लेकिन यह जरूर मानेंगे कि खून मीठा होता है, इसलिए मच्छर ज्यादा काटते हैं, यह मानेंगे कि दरख्त के नीचे बैठने से जिन्न और चुड़ैल चिमट जाते हैं, खाली कैंची चलाने से घर में लड़ाईयां होती हैं, हिचक आ रही हो तो उसका मतलब है कि कोई याद कर रहे होंगे।
अब अभी 70-75 बरस ही हुए हैं अलग हुए, दोनों के अंधविश्वास तो एक ही किस्म के होंगे। हिन्दुस्तान में भी सुबह और रात में पैदल घूमने निकले लोगों को देखें तो यही लगता है कि वे कोरोना को एक कल्पना की बात मानकर चल रहे हैं, और अपने आपको गोदरेज कंपनी की बनाई गई तिजोरी मान रहे हैं कि जिसे कोरोना तोड़ नहीं सकेगा। लेकिन अंधविश्वास के मामले में हिन्दुस्तानी पाकिस्तानियों से कहीं पीछे नहीं हैं। अब और किसी वैज्ञानिक वजह से न सही, कम से कम इसलिए हिन्दुस्तानियों को अंधविश्वास छोड़ देना चाहिए कि इस वजह से लोग पाकिस्तानियों से उनकी तुलना करते हैं।