राजपथ - जनपथ
संसदीय सचिव, तब और अब...
वैसे तो संसदीय सचिव न तो संबंधित विभाग के फाइलों पर हस्ताक्षर कर सकते हैं, और न ही विधानसभा में सवालों का जवाब दे सकते हैं। कुछ सरकारी सुविधाओं को छोड़ दें, तो संसदीय सचिव एक तरह से अधिकारविहीन हैं। रमन सरकार में तो पूनम चंद्राकर जैसे कई संसदीय सचिवों की कोशिश रहती थी कि फाइलों पर हस्ताक्षर करने के अधिकार भले ही न हो, कम से कम अवलोकन करने के अधिकार मिल जाए। मगर उनकी हसरत पूरी नहीं हो पाई।
पिछली सरकार में संसदीय सचिवों को तो मंत्री, विभागीय बैठकों में भी नहीं बुलाते थे। आम विधायकों की तरह मंत्रियों से मिलने के लिए उन्हें इंतजार करना पड़ता था। ऐसे ही तुनकमिजाजी संसदीय सचिव ने मंत्री से मुलाकात में देरी पर अपना गुस्सा उनके पीए पर निकाल दिया था। उन्होंने पीए की सबके सामने पिटाई कर दी थी। इसके बाद संसदीय सचिव ने मंत्री के बंगले में जाना भी छोड़ दिया था। मगर कांग्रेस सरकार में कुछ संसदीय सचिवों की स्थिति एकदम अलग है।
विकास उपाध्याय को ही लें, उनकी सक्रियता से विभागीय मंत्री के बंगले में हलचल मची हुई है। विकास उपाध्याय ने अफसरों की टीम ले जाकर एक्सप्रेस-वे सर्विस रोड खुलवा दिया। चर्चा है कि मंत्री तक को इसकी जानकारी नहीं थी। विकास को संसदीय सचिव बने कुछ ही दिन हुए हैं। पीडब्ल्यूडी और अन्य विभाग के अफसर उनके आगे-पीछे होते देखे जा सकते हैं। विकास की धमक को देखकर यह कहा जा सकता है कि संसदीय सचिवों को कोई लिखित अधिकार भले ही न हो, जुबानी जमा खर्च से काफी कुछ काम कराया जा सकता है।
मिजाजपुर्सी के दिन आये
भाजपा में असंतुष्ट नेताओं को मनाने की कवायद चल रही है। खुद सौदान सिंह इस मुहिम में जुटे हैं। असंतुष्टों की नाराजगी सौदान सिंह की कार्यप्रणाली को लेकर ज्यादा रही है। वे पिछले दो दिनों में अब तक धमतरी-कांकेर और अन्य जिलों के नेताओं के साथ-साथ पूर्व विधायकों से फोन पर बात कर चुके हैं। सौदान सिंह का अंदाज बदला-बदला सा है। वे पार्टी गतिविधियों पर बिल्कुल भी चर्चा नहीं करते। वे पहले हालचाल पूछते हैं।
परिवार के लोगों के स्वास्थ्य की जानकारी लेते हैं। फिर कहते हैं कि प्रदेश में कोरोना लगातार बढ़ रहा है। हमारे बड़े नेता भी इसकी चपेट में आ गए हैं। इससे बचने के लिए सामाजिक दूरी बनाकर रखें। सौदान से चर्चा करने वाले एक नेता ने अनुभव सुनाया कि 15 साल सत्ता में रहते किसी भी नेता ने हालचाल जानने की कोशिश नहीं की। अब जब नाराज लोगों का गुस्सा फूट रहा है, तो घर परिवार तक की सुध लेने लग गए हैं। दो दिन पहले सच्चिदानंद उपासने ने कहा था कि कार्यकर्ता पद नहीं, सम्मान के भूखे हैं। लगता है कि सौदान सिंह ने उपासने की बातों को गंभीरता से ले लिया है।