राजपथ - जनपथ
नान घोटाले में कितनी समानता
मध्यप्रदेश में नान घोटाला सामने आया है, बिल्कुल छत्तीसगढ़ की तरह। वहां मंडला और बालाघाट जिलों में नागरिक आपूर्ति निगम के अधिकारियों से मिलीभगत कर राइस मिलर्स ने मिलिंग के लिये मिला अच्छा चावल गायब कर दिया और जानवरों को खिलाया जाने वाला चावल जमा कर दिया। करीब 17 लाख टन चावल राशन दुकानों में गरीबों को बांटने के लिये भेज दिया गया। अभी मध्यप्रदेश में उप-चुनाव होने हैं। सरकार को ईमानदार तथा भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त दिखना ऐसे मौके पर बहुत जरूरी है। राइस मिल सील कर दिये गये हैं, मालिकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। नान प्रबंधक और क्वालिटी कंट्रोल अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई की गई है। एकबारगी सुनने में लगता है कि सब निपट जायेंगे। जो ऐसा सोचते हैं उन्हें छत्तीसगढ़ में हुए इसी नान के 36 हजार करोड़ के घोटाले को जरूर याद करना चाहिये। शुरुआती दौर में ताबड़तोड़ कार्रवाई हुई थी, लगा था अब तो कई नप जायेंगे। कितनी टीमें बनीं, बोरियों दस्तावेज, डायरियां जब्त हुईं। एक दहशत सी थी कि जांच एजेंसी किसी भी लपेटे में ले सकती है। फरवरी 2015 का मामला है। पांच साल होने जा रहे हैं। मामला कानूनी दांव-पेच और अदालतों के बीच झूल रहा है। लोगों ने अब पूछना बंद कर दिया कि दोषी कोई है? किसी को सजा होगी भी या नहीं? मध्यप्रदेश में जिन अधिकारियों पर शिकंजा कसा है क्या पता कल वे पाक-साफ दिखाई देने लगें। क्या पता छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार की तरह विधानसभा में ही तरह दावा किया जायेगा कि दरअसल, कोई घोटाला तो हुआ ही नहीं था। वक्त बतायेगा।
इस बार रावण को ही कहा जायेगा...!
कोविड-19 महामारी ने सभी तीज-त्यौहारों पर भी ग्रहण लगा दिया है। गणेश चतुर्थी फीकी बीती। अप्रैल की नवरात्रि फीकी रही। गणेश चतुर्थी पर भी प्रतिमा स्थापित करने के लिये शर्तें इतनी थीं कि ज्यादातर मोहल्ला समितियों ने इससे तौबा कर रखी थी। लेकिन दुर्गा पूजा भी अब आने वाली है। हावड़ा रूट पर पडऩे वाले सभी शहरों में यह त्यौहार हर साल बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। आयोजन समितियों के पदाधिकारी जनप्रतिनिधियों और प्रशासन से पूछ रहे हैं कि उत्सव मनाने की अनुमति मिलेगी या नहीं? हालांकि पर्व आने में अभी एक माह से ज्यादा वक्त है पर जिस रफ्तार से कोरोना महामारी पूरे प्रदेश में पैर पसार रही है, उससे नहीं लगता कि अक्टूबर माह में स्थिति बहुत संभल जायेगी। दुर्गोत्सव और गणेश चतुर्थी की भव्यता में बड़ा फर्क होता है। इसमें बड़े-बड़े सहयोग मिलते हैं, बड़े पंडाल तैयार किये जाते हैं। बहुत दिन पहले से ही घूमना शुरू करना पड़ता है। इस मौके को लेकर आयोजकों की चिंता इसीलिये जायज है। फिर, इसके तुरंत बाद दशहरा भी है। ऑनलाइन रावण-दहन का कोई तरीका तो हो नहीं सकता। दोनों ही मौकों पर जुटने वाली भीड़ प्रशासन की चिंता बढ़ा सकती है। निर्णय तो समझदारी के साथ ही लेना होगा। वाट्सएप्प वायरल पर कोई क्यों जाये, वहां तो यह भी कहा जा रहा है कि दशहरे में इस बार नेताओं को नहीं बुलाया जाये, रावण को खुदकुशी के लिये कहा जाये।