राजपथ - जनपथ
कोरोना पर सरकारी क्षमता चुक गयी..
कोरोना पीडि़त ऐसे मरीज जो घर पर ही रहकर इलाज कराना चाहते हैं उनके लिये स्वास्थ्य विभाग ने एक नई विस्तृत गाइडलाइन जारी कर दी है। अब तीन बीएचके मकान होने की बाध्यता हटा दी गई है। उनके लिये अलग शौचालय होना है, घर के लोगों के भी सम्पर्क में नहीं आना है। घर के लोगों को भी बाहर किसी से सम्पर्क नहीं करना है। ड्राइवर, माली, गार्ड, नौकर नहीं आ सकेंगे। ऑक्सीमीटर, थर्मामीटर रखकर नियमित जांच करनी होगी और हर दिन की रिपोर्ट स्वास्थ्य विभाग को देनी होगी।
अस्पतालों में जिस तरह से मरीजों की भीड़ उमड़ी है और इलाज के लिये टीम की कमी दिखाई देती है, उसे देखकर लोग घरों में ही इलाज को ठीक समझ रहे हैं। वे अपने सिरे पर गाइडलाइन की शर्तों का पालन कर भी लें पर दूसरी तरफ स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी भी बहुत सी है। यानि जिनके पास अलग कमरा नहीं होगा, ऑक्सीजन लेवल खतरनाक स्थिति में पहुंचेगा तो उन्हें तुरंत कोविड सेंटर में भर्ती कराया जायेगा। डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मी मरीजों के लगातार सम्पर्क में रहेंगे उन्हें दवा और सलाह देंगे। यह सुनने में बात अच्छी भले ही लग रही हो पर कोविड अस्पतालों में ही इतनी आपा-धापी मची है कि घरों में आइसोलेट मरीजों की सेहत के बारे में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को जानने का वक्त नहीं मिल रहा है। कई मरीज बताते हैं वे आठ दस दिन आइसोलेट रहकर ठीक भी हो गये। अपने ही किसी परिचित डॉक्टर की सलाह पर दवा लेते रहे। इस बीच स्वास्थ्य विभाग से किसी ने उनसे सम्पर्क नहीं किया। देखना चाहिये कि क्या ऐसे मरीजों का संक्रमित होना और ठीक होना स्वास्थ्य विभाग के रिकॉर्ड में चढ़ा है या नहीं।
ईज ऑफ डुइंग, टॉप टेन में छत्तीसगढ़
कोरोना महामारी के विषम दौर में भी छत्तीसगढ़ ने अपनी ईज ऑफ डुइंग बिजनेस रैंकिंग में अपनी छठवीं रैकिंग को बचा लिया है। यह रैंकिंग केन्द्रीय वाणिज्य मंत्रालय ने 12 बिन्दुओं के आधार पर जारी किया है जिससे यह निर्धारित होता है कि किस प्रदेश में निवेश करने के कितने अवसर हैं। नई सरकार के आने के बाद उद्योगपतियों, व्यवसायियों से मशविरा कर नई उद्योग नीति बनाई गई थी। यह एक बड़ी वजह रही कि देशभर में आर्थिक मंदी और कोरोना संकट के दौर में छत्तीसगढ़ अपनी पिछली रैंकिंग को बरकरार रख सका। हाल ही में जीडीपी की भयंकर गिरावट के आंकड़े सामने आये थे तो कृषि ही एकमात्र ऐसा क्षेत्र रहा, जिसका ग्राफ ऊपर बना रहा। छत्तीसगढ़ कृषि प्रधान विशेषकर धान के विपुल उत्पादन वाला राज्य है। कृषि क्षेत्र पर निवेश और उद्योगों की स्थापना पर तेजी से काम कर झारखंड, तेलंगाना जैसे राज्यों से अधिक बेहतर रैंकिग हासिल की जा सकती है, जो इस बार की रैंकिंग में टॉप 5 पर हैं।
निजी स्कूलों की फीस का पेंच
कोरोना महामारी ने शिक्षा व्यवस्था को दूरगामी नुकसान पहुंचाया है। प्रदेशभर के निजी स्कूलों में ऑनलाइन पढ़ाई के लिये ट्यूशन फीस की वसूली एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है। निजी स्कूलों को हाईकोर्ट ने केवल ट्यूशन फीस वसूलने की छूट दी है। साथ ही कुछ शर्तें भी जोड़ी हैं, जैसे कोई भी बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई से वंचित नहीं किये जायेंगे। यदि माता-पिता फीस देने में सक्षम नहीं हैं तो वाजिब कारण बताकर राहत की मांग कर सकते हैं। स्कूलों को उन्हें छूट देनी होगी। इसके अलावा फीस में कोई बढ़ोतरी नहीं होगी। प्रबंधकों के लिये यह भी जरूरी है कि किसी स्टाफ को नौकरी से नहीं निकालेंगे, उनका वेतन नहीं घटायेंगे और नियमित भुगतान करेंगे।
अभिभावकों में एक तो हाईकोर्ट के आदेश से असंतोष है कि 100 फीसदी ट्यूशन फीस देने के लिये उन्हें बाध्य क्यों किया जा रहा है जबकि ऑनलाइन पढ़ाई और स्कूल जाकर की जाने वाली पढ़ाई में काफी अंतर है। ऑनलाइन पढ़ाई में टीचर्स के अलावा किसी संसाधन की जरूरत नहीं पड़ती। मसलन, स्कूलों में बिजली, पानी, साफ-सफाई पर खर्च, लैब, प्ले ग्राउन्ड की सुविधा भी वे नहीं ले रहे। दूसरी बात निजी स्कूलों को सिर्फ अनुमोदित फीस लेनी है। कई स्कूलों ने तो चार-पांच साल से फीस का अनुमोदन नहीं कराया है। स्कूल में पांच-छह घंटे की पढ़ाई होती है और ऑनलाइन सिर्फ डेढ़ से दो घंटे। पालकों को खुद ही मोबाइल फोन और डेटा पर खर्च करना पड़ रहा है। सुनाई तो यह भी दे रहा है कि स्कूल संचालक स्टाफ को नियमित वेतन देने के वादे से भी मुकर रहे हैं। कई टीचर्स की पूरी, तो कई की आधी सैलरी रोकी जा रही है। पहले से ही रजिस्टर में दर्ज राशि से कम वेतन उनके हाथ में आता रहा है। वे इस डर से कुछ नहीं कह पा रहे हैं कि जब स्कूल खुलेंगे तो उन्हें बाहर का रास्ता न दिखा दिया जाये। दूसरी तरफ निजी स्कूल संचालकों के संगठन ने बकायदा विज्ञापन जारी कर पालकों से अदालती आदेश के पालन में फीस जमा करने के लिये कहा है। पालक कह रहे हैं कि उन्हें चेतावनी मिल रही है कि यदि वे जमा नहीं करते तो ऑनलाइन क्लास का आईडी पासवर्ड बच्चों को नहीं दिया जायेगा। यदि सचमुच ऐसा किया गया तो बच्चों के लिये दुखद स्थिति होगी।