राजपथ - जनपथ
मंत्री से बात करके भाजपा कमेटी !
भाजपा में प्रदेश अध्यक्ष की मंजूरी के बिना बलरामपुर जिला कार्यकारिणी घोषित होने के बाद राज्यसभा सदस्य रामविचार नेताम और पूर्व संसदीय सचिव सिद्धनाथ पैकरा के बीच तनातनी चल रही है। यहां का विवाद सुलझ नहीं पाया था कि रायपुर संभाग के बड़े मंडल में अलग ही तरह का विवाद शुरू हो गया है।
सुनते हैं कि मंडल अध्यक्ष ने स्थानीय कांग्रेस विधायक और सरकार के मंत्री से बातचीत कर कार्यकारिणी घोषित कर दी। मजे की बात यह है कि भाजपा मंडल की कार्यकारिणी में उन लोगों को जगह दी गई जिन्होंने विधानसभा चुनाव में पार्टी के खिलाफ काम किया था और मंत्रीजी को सहयोग किया था।
और तो और मंडल की सूची घोषित करने से पहले पार्टी के सांसद और स्थानीय पूर्व विधायकों से पूछा तक नहीं। इससे खफा स्थानीय भाजपा नेताओं ने प्रदेश संगठन से इसकी शिकायत की है। मगर मंडल अध्यक्ष बेपरवाह है। वैसे भी पार्टी सत्ता में नहीं है, लेकिन मंत्रीजी का वरदहस्त तो है ही।
बस्तर में छूट के साथ पुलिस भर्ती
पिछली सरकार के दौरान बस्तर में तब बड़ा विवाद हुआ था जब सैकड़ों की संख्या में एसपीओ बना दिये गये थे। आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने इन नियुक्तियों को खारिज कर दिया था। अब कांग्रेस सरकार में एक बार फिर बस्तर में विशेष पुलिस बल का गठन होने जा रहा है। भर्ती पूरी तरह स्थानीय यानी पंचायत स्तर के युवकों की होगी और आवेदकों को शारीरिक दक्षता में छूट भी मिलेगी। क्या इसे भी चुनौती दी जायेगी? इसके आसार कम दिखाई देते हैं, क्योंकि इन भर्तियों में सेवा शर्तें राज्य सरकार की बाकी भर्तियों की तरह होंगी। एसपीओ के चयन का कोई निश्चित मापदंड नहीं होता था। जिले के कप्तान चयन की निर्धारित प्रक्रियाओं को अपनाये बगैर नियुक्ति कर सकते थे। उनकी नियुक्तियां स्थायी भी नहीं थीं। वे शासकीय सेवक की श्रेणी में भी नहीं आते थे। उनसे मनमर्जी का काम लिया जा सकता था। लेकिन रमन सिंह सरकार में बस्तर में पुलिस का कामकाज पूरी दुनिया में बदनाम था. रमन सरकार की आधी से अधिक बदनामी बस्तर-पुलिस की वजह से ही थी।
पूरे बस्तर में केन्द्रीय बलों की बड़ी संख्या में तैनाती है। अक्सर स्थानीय लोगों के साथ उन्हें तालमेल बनाने में दिक्कत होती है। ये युवा उनके बीच सेतु का काम कर सकेंगे जिससे मुठभेड़ की घटनायें घटेंगी। सबसे बड़ी चुनौती तो हर सरकार के लिये यहां से हिंसा खत्म करने की रही है। हो सकता है उसके लिये यह एक सही कदम साबित हो।
कोरोना के बाद कैसी होगी स्वास्थ्य सेवा?
यह बात ठीक है कि कोरोना महामारी पर काबू पाने का कोई कारगर तरीका सामने नहीं आ सका है और यह लगातार फैलता ही जा रहा है। इसके बावजूद सब मानकर चल रहे हैं कि यह 6 माह, साल दो साल जितने दिन खिंचे, अंत में नियंत्रित तो हो ही जायेगा। पर इसे लेकर स्वास्थ्य सम्बन्धी जो स्थायी ढांचा खड़ा हो रहा है वह भविष्य में भी मददगार रहेगा। दूसरी सरकारों की तरह छत्तीसगढ़ सरकार ने भी अपने ज्यादा से ज्यादा संसाधन कोरोना से रोकथाम के लिये जरूरी सामान जुटाने में लगा दिये हैं। नये अस्थायी अस्पताल खोले जा रहे हैं। बिस्तरों की संख्या इतनी बढ़ाई जा रही है, वेंटिलेटर्स, लैब की मशीनें जितनी सामान्य परिस्थितियों में कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। नई भर्तियां भी हो रही है। केन्द्र सरकार से भी मदद मिल रही है। बजट का एक अच्छा-खासा हिस्सा स्वास्थ्य पर खर्च हो रहा है। इसी बहाने पता चल रहा है कि अस्पतालों में कोरोना से पहले स्वास्थ्य सेवाएं किस तरह बदहाल थीं। राज्य सरकार ने अब जब प्रत्येक मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन प्लांट लगाने का फैसला लिया है तो पता चल रहा है कि ये प्लांट जरूरी होते हुए भी अब तक नहीं लगाये गये थे। अभी तो कोरोना के नाम की बड़ी दहशत है। सरकारी क्या निजी अस्पतालों में भी जाने के नाम से लोग कांप रहे हैं। पर यकीन होता है कि कोरोना के बाद की दुनिया बड़ी खूबसूरत होगी जब महामारी खत्म हो जायेगी तब तक अस्पतालों में आधारभूत सुविधाओं का अभाव नहीं रहेगा। तब आम आदमी को निजी अस्पतालों की तरह सरकारी अस्पतालों में भी संतोषजनक उपचार मिल सकेगा।