राजपथ - जनपथ
कानून सिर्फ गरीबों को भूखा मारने?
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक हफ्ते का कड़ा लॉकडाउन लगाया गया जिसमें मीडिया को भी यह सलाह दी गई थी कि मुमकिन हो तो लोग घरों से ही काम करें। सडक़ों पर जगह-जगह बैरियर लगा दिए गए थे, और जरूरी काम से आने-जाने वाले लोगों को भी कई जगहों पर चक्कर लगाकर जाना पड़ता था। चौराहों पर पुलिस दुपहिया सवारों को किनारे करके कई किस्म की पूछताछ कर रही थी। लेकिन इसी बीच कल रात की खबर हक्का-बक्का करने वाली है कि गैरकानूनी तरीके से बने हुए, और कानूनी झगड़े में फंसे हुए इस क्लब में दो महीने पहले पुलिस ने हुक्का बार पकड़ा था तो इसके एवज में एक थानेदार का तबादला कर दिया गया था। अब कल रात को इस दारू पार्टी में अगर गोली नहीं चल गई होती, और यह बात आनन-फानन फैल नहीं गई होती तो हो सकता है कि यहां रोज की दारू बिक्री चलती ही रहती।
इस राजधानी में लॉकडाउन के पूरे महीनों में लोगों ने शहर के कई ताकतवर लोगों के होटलों में रात-दिन शराब बिकते देखा है, और अफसरों को भी शायद ऐसे हुक्म हैं कि कहां-कहां अनदेखा करना है, और बाकी जगहों पर सब्जी वालों के टोकरे पलटने हैं। यह हैरान करने वाली नौबत है कि अगर इस शहर में पैसे और राजनीति की ताकत है, तो शासन-प्रशासन के नियम अपने जूतेतले कुचल सकते हैं। जब गरीबों को सडक़ किनारे मजदूरी का काम करना नसीब नहीं हो रहा है, तब अरबपतियों के कारोबार इस तरह सरकार के हुक्म के खिलाफ दारू बेच रहे हैं, पार्टियां करवा रहे हैं, और वहां पर गोलियां चल रही हैं। यह क्लब पिछली सरकार में भी तमाम नियम तोडक़र चल रहा था, और तो और विधायकों के आने-जाने के हक को इसने बंद कर दिया था, जो आज तक बंद है। और अब तो कलेक्टर के जिस आदेश से इस जिले के दसियों लाख लोग भूखे मरने की कगार पर पहुंच गए, उसे जूते से कुचलते हुए पैसे वालों ने दारू बहाना जारी रखा, बेचना और खरीदना जारी रखा।
किताबें देखकर लिखा, फिर भी पास नहीं..
कोरोना के चलते स्कूल कॉलेज लगे ही नहीं, मगर परीक्षा लेने की औपचारिकता पूरी की जा रही है। औपचारिकता इसलिये क्योंकि इस दौर में प्रश्न पत्र हल करना बड़ा आसान हो गया है। अटल बिहारी विश्वविद्यालय बिलासपुर में जो व्यवस्था की गई थी उसमें छात्रों के मोबाइल फोन पर प्रश्नपत्र ऑनलाइन भेजा गया। घर से ही प्रश्न पत्र हल करना था और उत्तर पुस्तिकायें सुविधा के अऩुसार डाकघरों के माध्यम से जमा करना था। 90 हजार से ज्यादा विद्यार्थियों ने भाग लिया जिनमें से 50 हजार से ज्यादा के नतीजे रिकॉर्ड एक सप्ताह के भीतर आ गये हैं। प्रश्न पत्र हल करने के लिये किसी तरह की पर्ची छिपाकर नकल करने की जरूरत नहीं थी पूरी पुस्तक खोलकर जवाब लिखा जा सकता था, इसके बावजूद 8 प्रतिशत छात्र पास नहीं हो सके। ऐसा ही कुछ ओपन स्कूल की परीक्षाओं में हुआ है। 12वीं बोर्ड में 8 प्रतिशत और 10वीं बोर्ड में 11 प्रतिशत छात्र फेल हो गये। इन्हें भी इस बार परीक्षा केन्द्र में नहीं घर में परीक्षा देनी थी।
आपदा में अवसर
पं. रविशंकर विश्वविद्यालय की परीक्षायें भी 25 सितम्बर से शुरू हुई हैं। यहां भी घरों से ही प्रश्न पत्र हल करके उत्तर पुस्तिकाओं को जमा करना है। यूजीसी ने देशभर के विश्वविद्यालयों के लिये कोरोना को देखते हुए यही व्यवस्था कर रखी है। उत्तर पुस्तिकायें छात्रों को खुद के खर्च से खरीदनी है। छात्रों की शिकायत है कि जब वे परीक्षा शुल्क के रूप में 1800 से 2000 रुपये दे चुके हैं तो फिर आंसर शीट के लिये अपनी जेब से खर्च क्यों करना चाहिये? बहुत से छात्र तो गरीब परिवारों से भी हैं जो छात्रवृत्ति के भरोसे ही पढ़ पा रहे हैं। कई स्टेशनरी दुकानों में खासकर राजधानी के बाहर इस मौके का खूब फायदा उठाया जा रहा है। 100-150 की उत्तर पुस्तिकाओं के सेट के लिये 500-600 रुपये खर्च करना पड़ रहा है। इन उत्तरपुस्तिकाओं को उन्हें डाकघरों से भेजना है। साधारण कूरियर का खर्च 40-50 रुपये से कम नहीं। यानि पूरे एक हजार रुपये का अतिरिक्त बोझ।