राजपथ - जनपथ
सोचो कभी ऐसा हो तो क्या हो...
कई ऐसे मौके आते हैं जब लोग मुजरिमों के साथ मोहब्बत में पड़ जाते हैं। हिन्दुस्तान में एक वक्त नामी डाकुओं की मोहब्बत में उनके इलाके की कोई महिला पड़ जाती थी, उधर अमरीका में किसी माफिया सरगना से किसी भली महिला को मोहब्बत हो जाती थी। बहुत साल पहले एक डकैती के बाद एक लडक़ी को डकैत साथ ले जाते हैं, और उनके साथ रहते-रहते वह लडक़ी उन डकैतों की प्रशंसक हो जाती है, बाद में इसे मनोविज्ञान में स्टॉकहोम सिन्ड्रोम का नाम दिया गया। अब अभी एक ऐसा उपन्यास बाजार में आ गया है जिसमें कोरोना वायरस को मारने की तकनीक ढूंढने वाली एक वैज्ञानिक कोरोना की मोहब्बत में पड़ जाती है। अब जिस तरह बहुत सी विज्ञान कथाएं सच निकल जाती हैं, हकीकत में होने लगती हैं, ऐसे में अगर वैज्ञानिक की कोरोना से मोहब्बत सच हो जाए तो क्या होगा?
आईपीएल सट्टा कवरेज में है !
इस दौर में जब आम तौर पर लोग अपने काम-धंधे और रोजगार को लेकर चिंता में घुले जा रहे हैं कुछ ऐसे कारोबार हैं जिन पर कोई आंच नहीं आई है। जैसे आईपीएल क्रिकेट, और उस पर लगाया जाने वाला दांव। महामारी के बावजूद आईपीएल क्रिकेट नहीं रुका। भले ही देश से बाहर हो रहा है, दर्शकों के बगैर ही मैच हो रहे हैं लेकिन इसकी आड़ में चलने वाले सट्टे के धंधे पर कोई आंच नहीं आई है। हर रोज छत्तीसगढ़ में आठ-दस केस पकड़े जा रहे हैं। नेटवर्क कनेक्टिविटी का फायदा यह हुआ कि अब दांव लगाने वाले गांव-कस्बों से भी बड़ी संख्या में निकल रहे हैं। खाईवाल भी गज़ब कर रहे हैं। राजधानी में दबिश हुई तो कान्हा टाइगर रिजर्व निकल गये। वहीं एक रेस्ट हाउस में टीवी, स्मार्ट फोन और सट्टा पट्टी लेकर बैठ गये। पुलिस ने पीछा किया तो वापस आ गये पर यहां दांव लगाते हुए धर लिये गये। बिलासपुर में सूनसान कॉलोनी की छत पर और कार में सट्टे के खाईवाल अपना कारोबार चलाते हुए मिले। सट्टेबाजों को उन दिनों थोड़ी मुश्किल होती थी जब उन्हें लैंडलाइन फोन पर निर्भर होना पड़ता था। मोबाइल फोन आने के बाद भी कुछ सालों तक नेटवर्क वाली जगह तलाश करनी पड़ती थी। अब तो जंगल में भी इनका नेटवर्क चालू है। शिक्षा विभाग को संज्ञान लेना चाहिये कि क्यों इतनी अच्छी कनेक्टिविटी होने के बावजूद सरकारी स्कूलों के बच्चे ऑनलाइन शिक्षा से महरूम हैं।
अनलॉक और आजादी..
रायपुर, बिलासपुर, अम्बिकापुर, जशपुर में आज लॉकडाउन समाप्त हो गया। एक दो दिन में बाकी शहरों से भी लॉकडाउन हट जायेगा। दुर्ग से एक साथ आये 500 से ज्यादा केस को अपवाद मानें तो अधिकांश जिलों के आंकड़े कह रहे हैं कि इस दौरान मरीजों की संख्या कुछ घटी है। पर समस्या उतनी ही बड़ी और गंभीर बनी हुई है। क्या सरकारी, क्या निजी अस्पताल, हर जगह मौतें हो रही हैं। लॉकडाउन से संक्रमण रोकने में कितनी मदद मिली अब आने वाले एक सप्ताह तक के आंकड़ों को देखने के बाद ही पता चलेगा। इस बीच स्वस्थ होने वालों की संख्या बढ़ी है। पर इसमें भी अधिक उत्साहित होना ठीक नहीं। लॉकडाउन और छुट्टियों के चलते टेस्ट के लिये ज्यादा लोग निकले नहीं और जो स्वस्थ हो रहे हैं वे लॉकडाउन से पहले से भर्ती हैं। सरकार, प्रशासन, व्यापारी, मजदूर सब मानते हैं कि लॉकडाउन हल नहीं है। अनलॉक रहते हुए कोरोना से बचने के नियमों को मानना ही सही तरीका है पर अफसोस, अनलॉक की छूट मिलती है तब यही वर्ग जनता के बीच नियमों को तोड़ते हुए दिखाई देते हैं। आम लोग भी इनको देखकर लापरवाही बरतने लगते हैं। मध्यप्रदेश के एक मंत्री ने तो साफ कह दिया था कि मैं मास्क नहीं पहनता, लेकिन जब दिल्ली से डंडा दिखाया गया तो मोदी का नाम लेकर माफी मांग ली. मंत्रीजी खुद कोरोनाग्रास्त भी हो गए। अपने यहां किसी ने कहा नहीं, पर मास्क को गले में लटकाये लोग दिख रहे हैं। अब जब छत्तीसगढ़ में केस एक लाख का आंकड़ा पार कर चुका है, आम, खास हर किसी को अपनी जिद छोड़ देनी चाहिये।