राजपथ - जनपथ
साय के करीबी उम्मीद से...
भाजपा के अंदरखाने में दिग्गज आदिवासी नेता नंदकुमार साय को राज्यपाल बनाने की चर्चा चल रही है। साय कई बार सांसद और विधायक रह चुके हैं। वे अविभाजित मध्यप्रदेश के भाजपा अध्यक्ष रहे हैं। मोदी सरकार ने उन्हें केन्द्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष का दायित्व सौंपा था। कुछ महीने पहले उनका कार्यकाल खत्म होने के बाद से साय प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हो रहे हैं।
उन्हें प्रदेश कार्यसमिति में भी रखा गया है। मगर अब इस बार की चर्चा जोरों पर है कि झारखंड की राज्यपाल सुश्री द्रोपदी मुर्मू का कार्यकाल खत्म होने के बाद नंदकुमार साय उनकी जगह ले सकते हैं। सुश्री द्रोपदी मुर्मू का कार्यकाल जल्द ही खत्म होने वाला है। सुश्री द्रोपदी मुर्मू ओडिशा की रहवासी हैं, और उन्हीं की तरह ओडिशा या छत्तीसगढ़ के ही किसी आदिवासी नेता को झारखण्ड का राज्यपाल बनाया जा सकता है। पार्टी के लोगों का मानना है कि साय इस मामले में फिट बैठते हैं। साय के करीबी लोग फिलहाल उम्मीद से हैं।
जिले के चक्कर में
राज्यसभा सदस्य रामविचार नेताम से प्रदेश भाजपा के बड़े नेता नाराज बताए जा रहे हैं। नेताम ने जिस तरह प्रदेश अध्यक्ष की सहमति के बिना अपने गृह जिले बलरामपुर की कार्यकारिणी घोषित करवा दी थी, उसकी शिकायत पार्टी हाईकमान को भेजी गई है। चर्चा है कि नेताम को धीरे-धीरे किनारे किया जा रहा है।
नेताम अब राष्ट्रीय कार्यकारिणी का हिस्सा नहीं रह गए हैं। वे अनुसूचित जनजाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। अब प्रदेश कार्यकारिणी में भी उनके धुर विरोधी पूर्व संसदीय सचिव सिद्धनाथ पैकरा की पत्नी उद्देश्वरी पैकरा को उपाध्यक्ष बनाया गया है। कार्यकारिणी को लेकर सिद्धनाथ ने रामविचार के खिलाफ सीधे मोर्चा खोल रखा है, और वे उन पर कार्रवाई तक की मांग कर रहे हैं। अब हाल यह है कि जिले में दबदबा कायम रखने के चक्कर में नेताम की राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर पर पार्टी के भीतर हैसियत कम हो रही है।
फर्जी संस्थाओं का मुखौटा...
देश में सरकारी या संवैधानिक संस्थाओं से मिलते-जुलते नाम वाले फर्जी संगठन बनाकर उसके लेटरहैड और आईडी कार्ड बेचने का कारोबार खूब चलता है। इसमें मानवाधिकार आयोग, प्रेस कौंसिल, एंटीकरप्शन ब्यूरो के नाम पर तरह-तरह की कागजी संस्थाएं गढ़ी जाती हैं, और देश भर में उसके पदाधिकारी होने के आई कार्ड बेचे जाते हैं। अभी रायपुर के क्वींस क्लब में भिलाई के जिस हितेश पटेल नाम के आदमी ने गोली चलाई, उसके बारे में भी ऐसी शिकायत राज्य के सीएम को भेजी गई है।
भिलाई के एक राजनीतिक कार्यकर्ता ने सीएम को भेजी शिकायत में कहा है कि हितेश पटेल अपने आपको इंडियन प्रेस कौंसिल नाम की एक कथित संस्था का उपाध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार बताता है। अब भारत में प्रेस कौंसिल ऑफ इंडिया नाम के एक संवैधानिक संस्था है जिसके अध्यक्ष अनिवार्य रूप से सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज होते हैं। केन्द्र सरकार इसके सदस्य मनोनीत करती है, लेकिन हमेशा से ही इससे मिलते-जुलते नाम की कागजी दुकानें बनाकर देश भर में पहचानपत्र बिकते रहे हैं। लोग कारों पर भी ऐसी संस्थाओं की तख्तियां लगा लेते हैं। केन्द्र सरकार कई बरस पहले से यह आदेश निकालते आ रही है कि संवैधानिक संस्थाओं के नाम से मिलती-जुलती, या अपने नाम में इंडियन या नैशनल शब्द इस्तेमाल करने वाली संस्थाओं की जांच की जानी चाहिए, लेकिन जब ऐसी संस्था, उसका कार्ड बंदूक की नोंक पर दिखाया जाए, तो गोलियों के बीच कौन जांच कर सकता है?
वैसे तो जिस क्वींस क्लब में गोली चलने के बाद यह बवाल खड़ा हुआ है, उसका नाम देखें तो वह भी अंग्रेजों के समय का सरकारी क्लब लगता है-क्वींस क्लब ऑफ इंडिया!
लुभावने चेहरों का झांसा...
फेसबुक पर बहुत से, या अधिकतर, लोगों को पहली नजर में फर्जी दिखने वाले लोगों की तरफ से फ्रेंडशिप रिक्वेस्ट मिलती रहती है। किसी को कम, और किसी को ज्यादा। अगर ध्यान से देखें तो यह सारा फर्जी सिलसिला आसानी से पकड़ में आ जाता है, लेकिन हैरानी यह होती है कि बड़े काबिल और समझदार लोग भी चमचमाते चेहरों का न्यौता टाल नहीं पाते। आमतौर पर फेसबुक के आदमियों को जो न्यौते मिलते हैं, वे महिलाओं की तरफ से रहते हैं, उनमें बस दो-तीन तस्वीरें पोस्ट की हुई रहती हैं, और कोई भी जानकारी नहीं रहती, यह जरूर रहता है कि कभी-कभी आपके कुछ परिचित इसके दोस्तों की लिस्ट में निकल आएं। कुल मिलाकर धोखे से बचना चाहने वाले लोग आसानी से ऐसे फर्जी अकाऊंट पकड़ सकते हैं, लेकिन लुभावने चेहरों से धोखा खाना जिनकी नीयत में रहता है, उन्हें भला कौन बचा सकते हैं?
दुर्गा पंडाल में जाकर कोई संक्रमित हुआ तो?
दुर्गा पूजा पर्व के लिये आखिरकार गाइडलाइन आ ही गई। बहुत कड़े नियम-कायदे हैं। गणेश चतुर्थी से भी ज्यादा सख्ती होगी। प्रतिमा की ऊंचाई कम और पंडाल के आकार को बड़ा कर दिया गया है। एक पंडाल से दूसरे पंडाल की दूरी 250 मीटर से कम न हो। दर्शन के लिये आने वाले सभी व्यक्तियों का नाम, पता और मोबाइल फोन नंबर आयोजकों को एक रजिस्टर में दर्ज करना होगा। पंडाल में कम से कम 4 सीसीटीवी कैमरे लगाने होंगे ताकि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो रहा है या नहीं इस पर निगरानी रखी जा सके। पंडाल के प्रवेश द्वार पर सैनेटाइजर रखना होगा और मास्क पहने बिना कोई भी व्यक्ति प्रवेश नहीं कर सकेगा। ऑक्सीमीटर और थर्मल स्क्रीनिंग का प्रबंध भी आयोजक को ही करना होगा। इन सब की व्यवस्था आयोजक कर भी लें तो एक और शर्त है जो उनके लिये बड़ी मुसीबत बन सकती है। इसके अनुसार यदि कोई व्यक्ति पंडाल जाने के कारण कोरोना से संक्रमित हो गया तो उसके इलाज का सारा खर्च मूर्ति की स्थापना करने वालों को उठाना पड़ेगा। अब सवाल यह है कि यह कैसे तय हो कि कोई पंडाल में ही जाकर ही संक्रमित हुआ। वहां से लौटने के बाद भी तो हो सकता है। अब तक तो लोग सिर्फ अनुमान लगाते हैं कि किसी कार्यक्रम में गये थे, कुछ लोगों से मिले थे, शायद इसलिये संक्रमित हो गये। अब यदि दो चार लोग दर्शन करने के बाद पूजा समिति पर खर्च का दावा कर दें तब तो आयोजन करने वालों को लेने के देने पड़ जायेंगे। इसलिए दुर्गापूजा के लिए अगले बरस का इंतजार बेहतर है..
फेल भले हो गये, पढऩे से नाता नहीं टूटा
रायपुर के सोनू गुप्ता ने केबीसी मं 12.50 लाख रुपये जीत लिये। इसके आगे के पायदान में सही जवाब देते तो 25 लाख रुपये जीत सकते थे, लेकिन समझदारी दिखाई। उत्तर मालूम नहीं था। अटकल लगाते वापस सीधे तीन लाख रुपये में रह जाते, जो जीती गई रकम की सिर्फ एक चौथाई होती। सोनू की दो बातें सीखने के लायक है। एक तो वह 12वीं फेल हो चुका है। इसके बावजूद उसने यह नहीं सोचा कि सामान्य ज्ञान, किताबों और अख़बारों से उसे नाता तोड़ लेना चाहिये। केबीसी में मौका मिले इसके लिये वह तमाम तरह की पत्र-पत्रिकायें पढ़ता रहा। दूसरी बात, इतनी कम पढ़ाई के बावजूद वह अपने पैरों पर खुद खड़ा है। 12वीं फेल को ठीक-ठाक नौकरी मिलने से तो रही। इसलिये उसने वाटर प्यूरीफायर सुधारने का तकनीकी काम सीख लिया। अब जीती गई रकम से वह अपने लिये घर खरीदेगा, क्योंकि अभी वह किराये के मकान में रहते हैं। सोनू की इस कामयाबी पर एक शाबाशी तो बनती है..।