राजपथ - जनपथ
अर्चना पोर्ते के जाने का राज
मरवाही की भाजपा नेत्री अर्चना पोर्ते कांग्रेस में शामिल हुई, तो भाजपा में खलबली मच गई। अर्चना को पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने मरवाही से उम्मीदवार बनाया था और वे दूसरे स्थान पर रहीं। उपचुनाव में उन्हें टिकट मिलने का पूरा भरोसा था। मगर पार्टी ने उनकी जगह चिकित्सक गंभीर सिंह को उम्मीदवार बनाया, तो अर्चना की नाराजगी स्वाभाविक थी। मगर वे भाजपा छोड़ देंगी, इसका अंदेशा पार्टी नेताओं को नहीं था।
सुनते हैं कि अर्चना पोर्ते को कांग्रेस में लाने में जोगी पार्टी के विधायक देवव्रत सिंह की अहम भूमिका रही है। देवव्रत और अर्चना पोर्ते की कॉलेज के दिनों से जान-पहचान है और दोनों बैंग्लोर में एक साथ पढ़ाई करते थे। अर्चना को टिकट नहीं मिली, तो कांग्रेस के रणनीतिकारों ने देवव्रत से संपर्क किया। फिर क्या था, देवव्रत की पहल पर अर्चना कांग्रेस में आने के लिए तैयार हो गईं। चर्चा है कि दाऊजी ने खुद फोन कर अर्चना को कांग्रेस में लाने के लिए देवव्रत को धन्यवाद दिया।
कार्यकर्ताओं का गुस्सा
मरवाही विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस अपनी ताकत झोंक रही है। 50 विधायकों की तो ड्यूटी लगाई गई है, लेकिन प्रदेशभर से छोटे-बड़े कार्यकर्ता प्रचार के लिए वहां जाना चाहते हैं। रोजाना राजीव भवन में पदाधिकारियों को फोन लगाकर इसके लिए अनुमति भी मांग रहे हैं। मगर प्रदेश संगठन इसकी अनुमति नहीं दे रहा है।
दूसरी तरफ, भाजपा का हाल बेहाल है। स्थानीय कार्यकर्ता तो ठीक से जुट नहीं रहे हैं, दूसरे इलाकों से भी कार्यकर्ता प्रचार में जाने से कन्नी काट रहे हैं। सुनते हैं कि बिलासपुर भाजपा के कुछ नेताओं ने महामंत्री (संगठन) पवन साय को फोन कर चुनाव संचालक अमर अग्रवाल और भूपेन्द्र सवन्नी को ही बदलने की मांग कर दी है। अमर का चुनाव प्रबंधन काफी बेहतर रहता है। बावजूद इसके उन्हें बदलने की मांग करना पार्टी नेताओं को चौंका भी रहा है।
चर्चा है कि पिछले दिनों अमर ने मंडल स्तर पर कार्यकर्ता सम्मेलन बुलाने के निर्देश दिए थे। खर्चा-पानी के लिए 25 हजार रूपए देने की बात हुई थी, एक जगह सम्मेलन तो हुआ, लेकिन भीड़ कम आई। सवन्नी ने 25 हजार के बजाए 5 हजार रूपए ही देने के निर्देश दिए। इससे वहां के कार्यकर्ता काफी खफा हैं। एक तरफ पेंड्रा के आसपास के ढाबों में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को मनचाहे खाने-पीने की छूट है, तो भाजपा के लोग चाय-नाश्ते का इंतजाम भी ठीक से नहीं कर रहे हैं। ऐसे में भाजपा कार्यकर्ताओं का गुस्सा भडक़ना तो स्वाभाविक है।
70 साल की आजादी के बाद बिजली
बस्तर की नक्सल समस्या का हल कैसे हो इस पर अनेक विशेषज्ञों ने शोध किये और सुझाव देते रहे हैं, पर एक तरीका तो हमेशा कारगर होगा कि वहां के निवासी प्रशासन पर भरोसा करें। दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर चिकपाल धुर नक्सल इलाकों में शामिल है। यहां सीआरपीएफ ने अपना कैंप लगा रखा है। हैरानी की बात नहीं कि यह बस्तर के उन दर्जनों गांवों में एक है जहां लोगों ने आजादी के 70 साल बाद हाल ही में बिजली देखी। हाल ही में बिजली विभाग ने ट्रांसफार्मर लगाया और जहां लाइन नहीं खींची जा सकती थी वहां क्रेडा ने सोलर पैनल लगा दिया। ज्यादातर ग्रामीणों ने आधार कार्ड नहीं बनवाये थे, वहां कार्ड बनवाने के लिये कैम्प लगा दिया गया। खेती, पशुपालन, उद्यानिकी, स्व-सहायता समूह के तहत वनोपज तथा हल्दी अदरक की खेती जैसे कई काम चार पांच महीने के भीतर ही शुरू हुए हैं और गांव में बदलाव दिखाई दे रहा है। वहां देवगुड़ी को इस तरह संवार दिया गया है कि यहां पर्यटन करने वाले भी पहुंचे। यह सब वहां के कलेक्टर की रुचि पर हो रहा है। सरकारी सूचना के मुताबिक उन्होंने इसे आने के बाद आदर्श गांव के रूप में विकसित करने की कोशिश की है। कलेक्टर की रूचि के चलते जिले व ब्लॉक स्तर के बाकी अधिकारी भी वहां लगातार दौरे कर रहे हैं। बस, होना यह चाहिये कि कलेक्टर बदलें तो भी चिकपाल जैसे गांवों को संवारा जाता रहे। अक्सर ऐसा होता नहीं।
वाट्सएप प्रेमी हजार से ज्यादा युवा बने शिक्षक
पढ़े लिखे बेरोजगार युवक गांवों में रहकर कैसे वक्त बिताते हैं? जाहिर है वाट्सएप चैटिंग और दूसरे मीडिया प्लेटफॉर्म पर। कोरोना काल में जब स्कूलों के ताले नहीं खुल पा रहे हैं, उनके इस समय काटने वाली गतिविधि को कोरबा जिले के शिक्षक उत्पादकता से जोडऩे में लगे हुए हैं। जिले में करीब एक हजार प्रायमरी और मिडिल स्कूल हैं। इन कक्षाओं का कोर्स इतना कठिन भी नहीं कि 10-12वीं और ग्रेजुएट हो चुके युवा समझ और समझा न सकें। शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने मिलकर अभियान चलाया और अब तक 1300 ऐसे युवाओं को तैयार कर लिया है जो अपने मोहल्ले के, आसपास के बच्चों को कुछ घंटे देंगे और उनकी रुकी हुई पढ़ाई को रफ्तार देंगे। क्या पढ़ाना है यह वाट्सअप पर, शिक्षा विभाग के अधिकारी और शिक्षक उन्हें वाट्सअप भेजकर बतायेंगे। कोई कठिनाई आ रही हो तो उसे दूर करने के लिये भी वाट्सएप पर चैटिंग कर ली जायेगी। अब तो सुदूर क्षेत्रों में भी नेटवर्क पहुंच रहा है। कोई युवा चार बच्चों को तो कोई 6 को पढ़ा रहा है। अपने ही घर में बुलाकर या उनके पास जाकर पढ़ा रहे हैं। जो युवा बैठे हैं उनमें से सभी फालतू मैसेज फारवर्ड करने वाले नहीं मिले, बहुत से लोग है जो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं। कोई ऑनलाइन बिजनेस मैनेजमेंट सीख रहा है तो कोई और कुछ। इनका कहना है कि बच्चों को पढ़ाने से उनको भीतर से खुशी मिल रही है साथ ही जिन परीक्षाओं की वे खुद तैयारी कर रहे हैं उसमें भी लाभ मिल रहा है। कोरोना काल में शिक्षा को बचाये रखने जारी रखने के लिये अलग-अलग तरह से प्रयोग किये जा रहे हैं। इनमें एक नया ईजाद यह भी है।