राजपथ - जनपथ
फर्नीचर सप्लाई की बड़ी जांच !
खबर है कि जीएसटी डिपार्टमेंट फर्नीचर सप्लाई की पड़ताल कर रहा है। इस काम में विशेष तौर पर एडिशनल कमिश्नर एसएल अग्रवाल को लगाया गया है। अग्रवाल की पिछली सरकार में तूती बोलती थी। वे अमर अग्रवाल के बेहद करीबी रहे हैं। सरकार बदली, तो उन्हें हटाकर रायगढ़ भेज दिया गया। मगर इस काम के लिए उन्हें रायगढ़ से बुलाकर कुछ दिन के लिए यहां अटैच किया गया। जिस अंदाज में फर्नीचर सप्लाई की जांच हो रही है, उससे सप्लायर हलाकान हैं। सप्लायर भी सरगुजा संभाग के हैं, और वे मानते हैं कि जांच के बहाने उन्हें परेशान करने की कोशिश हो रही है। उन्होंने टीएस सिंहदेव तक अपनी बात पहुंचाई है। सिंहदेव इस मामले में हस्तक्षेप करते हैं या नहीं, देखना है।
देखना है खुफिया आंकलन...
मरवाही की जीत को लेकर अपने-अपने दावे हैं। भाजपा ने एक तरह से अमित जोगी के कंधे पर बैठकर चुनाव लड़ा था, और अमित भाजपा प्रत्याशी की जीत का दावा कर रहे हैं, तो भाजपा नेता उम्मीद से हैं। कांग्रेस नेताओं के आंकड़े अलग-अलग हैं। सीएम भूपेश बघेल 25 हजार, तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम 20 हजार से जीत का दावा कर रहे हैं। ऐसे में राज्य खुफिया पुलिस की राय को भी लोग टटोलने की कोशिश कर रहे हैं।
खुफिया तंत्र की राय है कि 10 हजार से अधिक वोटों से कांग्रेस उम्मीदवार की जीत होगी। कुछ लोग याद करते हैं कि भाजपा सरकार के पहले कार्यकाल में कोटा उपचुनाव के वक्त भी खुफिया तंत्र ने इससे मिलती-जुलती राय दी थी। तब उस समय मौजूदा डीजीपी डीएम अवस्थी, आईजी (गुप्तचर) के पद पर थे। उन्होंने भाजपा के पक्ष में तकरीबन इतने ही अंतर से जीत की संभावना जताई थी। मगर रिजल्ट ठीक उल्टा आया, और भाजपा दोगुने से अधिक वोट से हार गई। अब सरकार बदल गई है। देखना है खुफिया आंकलन सही निकलता है, या नहीं।
कोरोना काल में नंबर 1 रेल जोन की मार्केटिंग
कोरोना काल में अपनी साख और आमदनी को बनाये रखने के लिये रेलवे ने माल ढुलाई पर ज्यादा धान देना शुरू किया। देश में नंबर वन रेलवे जोन बिलासपुर ने रिकॉर्ड ढुलाई की, उसने कुछ नये प्रयोग किये। सीमेंट, कोयला की निश्चित ग्राहकी के अलावा उसने मध्यम वर्ग के व्यापारी जो सडक़ के रास्ते से अमूमन सामान भेजते हैं उन्हें रेलवे से परिवहन करने की सलाह दी। इसके बाद एक किसान रेल भी चलाई गई, जिसके लिये छोटे-छोटे स्टेशनों में भी जाकर उत्पादकों को रेलवे से माल भेजने का आग्रह किया गया। इसके लिये किसानों के घर भी रेलवे अधिकारियों ने दस्तक दी।
कोरोना ने ही रेलवे अधिकारियों को इतना लचीला व्यवहार करने पर विवश किया वरना पहले तो अपनी रफ्तार से सब चल रहा था। कोरोना के बहाने से ही रेलवे ने ज्यादातर रियायतों को वापस लेकर लगभग सभी तरह की टिकटों का पूरा दाम लेना शुरू कर दिया है। तर्क यह है कि वे वृद्धों, बीमारों को वे कोरोना के दौर में यात्रा करने के लिये हतोत्साहित करना चाहते हैं। यात्रियों के हाथ में रेलवे टिकट आती थी तो एक संदेश लिखा हुआ मिलता था, कि आपकी इस यात्रा पर आने वाले खर्च का एक बड़ा हिस्सा रेलवे वहन कर रहा है। यानि यात्रियों को ढोने में उन्हें घाटा है यह एहसास कराया जाता था। हालांकि इस बात पर विवाद है कि ऐसा लिखा जाना चाहिये या नहीं।
दूसरा पहलू यह है कि जब रेल यात्री घट गये हैं तो रेलवे का नुकसान भी कम हो जाना चाहिये। ताजा खबर यह है कि रेलवे ने एनएमडीसी से पूछा है कि नगरनार स्टील प्लांट कब शुरू होगा, ताकि वह अपनी तैयारी पूरी करे। बस्तर के इस प्लांट की कमीशनिंग अपने तय समय से पांच साल पीछे चल रही है। रेलवे ने घाटा कम करने के नाम पर कई मार्गों और स्टेशनों का निजीकरण भी कर दिया है। पर छत्तीसगढ़ को बरसों बरस मुनाफा देता रहेगा। नगरनार प्लांट और खास तौर पर कोयले की ढुलाई के लिये तैयार किये जा रहे रेल कॉरिडोर मुनाफा बढ़ाते रहेंगे।
कोरोना से बचने का ध्वस्त होता कायदा
जब भी ऐसा अंदाजा लगाया जाता है कि कोरोना के दिन अब गिनती के रह गये हैं, कोई नया आंकडा आकर डरा जाता है। जैसे कल ही छत्तीसगढ़ में कुल संक्रमितों का आंकड़ा दो लाख पार कर गया।13 से ज्यादा नये मरीज भी मिले। एक्टिव केस भी 23 हजार के करीब हैं। दीपावली की खरीददारी के लिये जिस तरह भीड़ बाजारों में दिखाई दे रही है उसने सोशल डिस्टेंसिंग के सभी कायदों को ध्वस्त कर दिया है। प्रशासन और पुलिस ने भी जैसे हार मान ली है।
दिल्ली का उदाहरण सामने हैं जहां शनिवार को एक ही दिन में 7000 से ज्यादा केस सामने आये। एक साथ इतने केस तो पीक के दिनों में भी नहीं आये। छत्तीसगढ़ के कई जिलों से आंकड़े घटे हैं। मरीजों की संख्या 100 से कम रहती है तो सुकून सा लगता है, पर अप्रैल मई में किसी जगह से दो चार केस मिल जाने पर ही हडक़म्प मच जाता था। जानकार कहते हैं कि जब तक नये केस आ रहे हैं संक्रमण फैलने से रुकेगा, इसकी संभावना कम ही है।
मौसम में बदलाव को लेकर भी स्वास्थ्य मंत्रालय और एमसीआईआर ने दूसरी लहर की चेतावनी दे रखी है। छत्तीसगढ़ कोरोना आंकड़ों के मामले में बहुत नीचे भी नहीं है। देश में 14वें स्थान पर है। ऐसी दशा में निश्चिन्त हो जाना बुद्धिमानी तो कतई नहीं है।
बच गये या बचा लिये गये?
दुर्ग के मातरोडीह में फसल खराब होने के कारण एक किसान डुगेश निषाद ने आत्महत्या कर ली थी। किसान के परिजनों ने बताया कि फसल पर किसान ने जो कीटनाशक डाली थी उससे पैदावार में बढ़ोतरी तो हुई नहीं, उल्टे झुलस गई। मौत से मचे हडक़म्प के बाद कृषि अधिकारी सक्रिय हुए, कई दवा दुकानों में छापा मारा और दो दर्जन कीटनाशक दवाओं का सैम्पल लेकर राजनांदगांव की प्रयोगशाला में भेजा। अब तक 15 सैम्पल की रिपोर्ट आ चुकी है और सभी का स्तर मानक पाया गया है। अब नौ ही रिपोर्ट्स और बची हैं।
जिस तरह से एक सिरे से 15 रिपोर्ट्स में से कोई भी अमानक श्रेणी की दवा नहीं मिली, आगे 9 की रिपोर्ट में क्या हो सकता है अंदाजा लगाया जा सकता है। यानि फसल झुलसने और आत्महत्या में, कीटनाशक बेचने वाले तथा निगरानी रखने वाले अधिकारियों की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती है। किसान अलग-अलग कारणों से अब भी खुदकुशी या खुदकुशी की कोशिश कर रहे हैं।
अभनपुर का मामला बीते सप्ताह सामने आया। उसे मानसिक रोगी बताया जा रहा है। बलरामपुर जिले में दरोगा के घर के सामने किसान ने इसलिये जहर पी लिया क्योंकि उसकी जब्त ट्रैक्टर को छुड़ाने के लिये कथित रूप से पैसे की मांग करने की शिकायत आई है। वन विभाग के अधिकारी तुरंत सामने आ गये और अधिनियमों का हवाला देते हुए बताया कि ट्रैक्टर की जब्ती गलत नहीं थी। हाल ही में सरगुजा में नगर निगम के बुलडोजर से एक किसान की खड़ी फसल रौंदने की घटना हुई थी जिसका बिलखता हुआ वीडियो वायरल हुआ था। किसी भी मामले में कोई जिम्मेदार नहीं। पहले भी बचते आये थे, आगे भी बचते रहेंगे।