राजपथ - जनपथ
खुशहाल छत्तीसगढ़ में केन्द्री जैसी घटना क्यों?
हाल ही में एक ब्यौरा जारी हुआ था, जिसमें बताया गया था कि छत्तीसगढ़ में केवल दो प्रतिशत लोग बेरोजगार हैं। इसके अलावा महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना, मनरेगा में सर्वाधिक लोगों को रोजगार देने का आंकड़ा भी सरकार की तरफ से जारी किया गया था। बार-बार कहा जाता है कि मंदी की मार यहां नहीं पड़ी। ऐसे आंकड़े तब फिजूल लगते हैं जब केन्द्री, अभनपुर में कोई कमलेश अपने परिवार के सभी सदस्यों की गला दबाकर हत्या कर देता है और खुद फांसी पर झूल जाता है। मृतक के भाईयों और पड़ोसियों से बात करने पर पुलिस को यही पता चला है कि उसने आर्थिक तंगी और बीमारी के खर्च को बर्दाश्त नहीं कर पाने के चलते यह खौफनाक कदम उठाया। अवसाद किसी भी वजह से हो सकता है पर खुद की जान लेने के साथ-साथ अपने आश्रितों को भी मौत के मुंह में धकेल देना गहरी निराशा की ओर इशारा करता है। कोरोना महामारी के कारण पैदा हुए गंभीर संकट का इसे एक नतीजा माना जा सकता है। कमलेश जैसे लोग ऐसे तबके से हैं जो अपनी मानसिक स्थिति के बारे में शायद अपने दोस्तों, करीबियों से भी बात करने से कतराते हैं। काउन्सलिंग और मानसिक चिकित्सकों तक तो पहुंचना दूर की बात है। आर्थिक रूप से पिछड़े परिवारों की भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति और सेहत की न्यूनतम देखभाल की सरकारी योजनायें तो हैं पर उनकी मानसिक स्थिति को पढऩे का कोई तरीका विकसित नहीं किया गया है। प्रतिपक्ष का इस मुद्दे पर सरकार को घेरना काफी नहीं है।
सरकार की पाबंदी नहीं, डर खत्म होने का इंतजार
कोरोना संक्रमण की रफ्तार घटने और लम्बे लॉकडाउन के चलते काम-धंधे पर पर रहे असर के चलते सरकार ने धीरे-धीरे रियायतें बढ़ा दी है। बीते 15 अक्टूबर से ही केन्द्र सरकार ने प्राइमरी छोडक़र बाकी स्कूलों को खोलने की इजाजत दे दी है पर न तो स्कूल संचालक और न ही अभिभावक इसके लिये तैयार हैं। स्कूल शिक्षा मंत्री ने साफ किया है कि 30 नवंबर तक तो ये नहीं खुलने वाले। बसों को चलाने की अनुमति मिल चुकी है पर बस मालिक घाटे में चल रहे हैं क्योंकि सवारियां नहीं मिल रही है। पारिवारिक समारोहों के लिये पहले से 50 लोगों की अनुमति दी गई थी उसे बढ़ाकर 100 कर दी गई है पर मंगल भवन, टेंट, बिजली, बाजा वालों का धंधा ठप पड़ा हुआ है। दीपावली के दिनों में बाजार में खरीदारी के लिये खूब भीड़ उमड़ी, सोशल डिस्टेंस का पालन किये बगैर। इसके बावजूद डर बैठा हुआ तो है।
छोटे से गांव की खास दीपावली...
देशभर में दीपावली पर्व मिल-जुलकर मनाया गाय। अनेक मुस्लिम परिवारों ने अपने घरों में दीये जलाये। वैसे ही जैसे ईद पर सेवईयां खाने हिन्दू परिवार के लोग पहुंचते हैं। अजमेर शरीफ की तस्वीर सोशल मीडिया पर खूब देखी गई जो दीपावली के दिन रोशनी से नहाया हुआ था। छत्तीसगढ़ के एक छोटे से गांव बालोद जिले के गुरुर ब्लॉक के भैजा मैदानी में भी हर साल जिस तरह दीपावली मनाई जाती है वह राष्ट्रीय स्तर की खबर बननी चाहिये। यहां की दिवाली कार्तिक अमावस्या के अगले दिन होती है। एक आयोजन समिति है जिसके संरक्षक अशरफ अली हैं। यहां केवल दीप जलाने, पटाखे चलाने की रस्म नहीं होती बल्कि दिनभर खेलकूद और शाम के वक्त सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं। परम्परा 90 सालों से चली आ रही है। बताते हैं सन् 1930 में मालगुजार रामभरोसा ने इस उत्सव को शुरू किया था। पूरा कार्यक्रम गैर-राजनीतिक होता है और ग्रामीण सारी तैयारी खुद करते हैं। राजनीतिक नफे के लिये इफ्तार पार्टियां देने वाले नेताओं को इनसे सीख मिल सकती है। यही गहरी जड़ें समाज को एक रखने के काम आती हैं।