राजपथ - जनपथ
आखिर समुद्र आया लोटे में...
आखिरकार ईनामी भ्रष्टाचारी रिटायर्ड आबकारी अफसर समुद्र सिंह ईओडब्ल्यू-एसीबी के शिकंजे में आ ही गया। समुद्र सिंह पर 10 हजार का ईनाम था, उसे ढूंढने के लिए पुलिस मध्यप्रदेश और कई राज्यों में गई थी। मगर वह आश्चर्यजनक तरीके से बोरियाकला स्थित अपने निवास पर मिला।
समुद्र सिंह की पिछली सरकार में तूती बोलती थी। उसकी संविदा नियुक्ति के लिए सरकार ने नियम बदल डाले थे, और सबसे ज्यादा समय तक संविदा पर काम करने का रिकॉर्ड समुद्र सिंह के नाम है। आबकारी विभाग में तो समुद्र सिंह के बिना पत्ता तक नहीं हिलता था। मंत्री बंगले में समुद्र सिंह की गाड़ी सीधे पोर्च में रूकती थी। कामकाज निपटने के बाद तो कई बार तत्कालीन आबकारी मंत्री उन्हें खुद बाहर कार तक छोडऩे जाते थे।
समुद्र सिंह वैसे तो एडिशनल कमिश्नर स्तर के अफसर थे, लेकिन विभागीय सचिव भी उनसे पूछकर कोई फैसला लेते थे। उन पर आय से अधिक संपत्ति के साथ-साथ शराब के कारोबार में धांधली कर सरकार को डेढ़ हजार करोड़ का चूना लगाने का आरोप है। पिछली सरकार को प्रभावशाली लोगों के राजदार रहे समुद्र सिंह की इतनी आसान गिरफ्तारी किसी के गले नहीं उतर रही है। मजे की बात यह है कि ईओडब्ल्यू-एसीबी ने समुद्र सिंह ने गिरफ्तार कर सीधे अदालत में पेश कर दिया, पुलिस रिमांड नहीं मांगी गई है। ऐसे हाईप्रोफाइल अफसर की आसान गिरफ्तारी पर सवाल उठना लाजमी है।
लेकिन दारू डिपार्टमेंट में हैरानी की एक और बात बाकी है. पिछली सरकार के वक़्त से भारतीय टेलीकॉम सेवा के एक अफसर ए पी त्रिपाठी भी जमे हुए हैं, उस वक्त भी इस अफसर की साख समुद्र सिंह जैसी ही थी. लोग हैरान हैं कि सरकार बदल गयी, त्रिपाठी स्थापित बने हुए हैं ! किस्मत इसे कहते हैं. इन्कम टैक्स का छापा भी पड़ गया, लेकिन भारत सरकार को अपने इस अफसर को ले जाने की फि़क्र और परवाह नहीं है !
अफसर से शिकायतें...
नांदगांव में पंचायत का प्रमुख ओहदा संभाल रही एक महिला अफसर के कामकाज से खफा सत्तारूढ़ कांग्रेस नेताओं ने प्रभारी मंत्री के समक्ष शिकायतों की झड़ी लगा दी। कांग्रेस नेताओं ने जुबानी शिकायत में महिला अफसर पर भाजपा नेताओं की सिफारिश पर काम करने के कुछ प्रमाण भी दिए। महिला अफसर के खिलाफ शिकायत यह है कि वे चुने हुए कांग्रेसी जनप्रतिनिधियों की अनुशंसाओं को हल्के में लेकर चुनिंदा कामों पर ही गौर करती हैं। इसके उलट भाजपाईयों के हर सिफारिशों की फाइलों को त्वरित आगे बढ़ाती हैं। महिला अफसर को कांग्रेस के एक बड़े आदिवासी नेता की सिफारिश पर अपेक्षाकृत जूनियर होने के बाद भी नांदगांव जैसा अहम जिला मिला।
कांग्रेसी नेताओं का दर्द है कि कई बड़ी योजनाओं में महिला अफसर राय लेना जरूरी नहीं समझती हैं। कांग्रेसियों ने अब प्रभारी मंत्री को महिला अफसर की वजह से ग्रामीण इलाके में सरकार की छवि खराब होने के लिए सचेत किया है। शिकवा-शिकायत के बाद प्रभारी मंत्री ने महिला अफसर को रायपुर तलब किया था। बताते हैं कि प्रभारी मंत्री से महिला अफसर को उनके खिलाफ शिकायतों का ब्यौरा दिया, और साफ कर दिया कि अब शिकायत आने पर उन्हें बदलने के अलावा कोई और चारा नहीं रहेगा। बेहतर होगा कि अपनी कार्यशैली सुधार लें।
कैमरे की चर्चा ने बात बंद करा दी...
राज्य शासन के बड़े-बड़े ओहदों पर बैठे हुए लोगों की एक कॉलोनी में बाहरी लोगों की आवाजाही से फिक्र हुई तो बहुत से लोगों ने आपस में बात की। कॉलोनी में आना-जाना कैसे रोका जाए इस पर चर्चा हुई। वहीं के रहने वाले एक ऊंचे ओहदे वाले व्यक्ति ने राय दी कि कॉलोनी में सीसीटीवी कैमरे लगवा देना चाहिए ताकि आने-जाने वाले लोग रिकॉर्ड हो सकें।
सलाह अच्छी थी क्योंकि यहां बसे हुए ऊंचे ओहदों वाले लोग शहरों में, दफ्तरों में, अस्पतालों में, और भी जाने कहां-कहां सीसीटीवी कैमरे लगवाते हैं। लेकिन कॉलोनी में कैमरे लगने से यह रिकॉर्ड होने लगेगा कि किसके घर कौन-कौन आए-गए, शायद यह सोचते हुए सुरक्षा की फिक्र को किनारे धर दिया गया, और इस पर चर्चा बंद ही हो गई। कैमरे दूसरों की निजता खत्म करने की कीमत पर तो ठीक हैं, लेकिन जहां अपने घर तक आने वाले लोगों की रिकॉर्डिंग होने लगे, तो वे खराब हैं। बात आई-गई हो गई, और लोगों ने हिफाजत की फिक्र की चर्चा बंद कर दी कि कहीं कैमरे न लग जाएं।
बड़े पुलिस अफसरों की गिरेबान
भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जा चुके जल संसाधन विभाग के कार्यपालन यंत्री आलोक अग्रवाल के साथ-साथ एसीबी और ईओडब्ल्यू ने उनके परिवार वालों पर भी शिकंजा कसा था। आलोक अग्रवाल के ठेकेदार भाई पवन अग्रवाल ने शिकायत की थी कि उनके भाई पर आरोप लगने के बाद एसीबी और ईओडब्ल्यू ने उनके घर पर भी छापा मारा और उनके अपने गहने, रुपयों की जब्ती बना ली। ये रुपये पैसे उनके खुद के व्यवसाय से अर्जित और पैतृक थे, जिनका आलोक अग्रवाल से कोई सम्बन्ध नहीं। शिकायत पर कार्रवाई नहीं होने पर पवन अग्रवाल कोर्ट गये। कोर्ट के आदेश पर बिलासपुर के सिविल लाइन थाने में लूट, जबरन घर में घुसने, चोरी जैसे कई गंभीर अपराधों में ‘अज्ञात’ सरकारी जांच अधिकारियों के खिलाफ अपराध दर्ज कर लिया गया। कोर्ट को एक निश्चित समय में जवाब देना है इसलिये जांच भी शुरू हो गई है। बिलासपुर पुलिस ने डीएसपी और नीचे के स्तर के करीब दर्जनभर अधिकारियों से बयान दर्ज कर लिया है पर पूरी कार्रवाई जिनके नेतृत्व में होने का आरोप है, उन्हें बुलाने की प्रक्रिया अब तक पूरी नहीं हुई है। इस मामले की जांच का जिम्मा सीएसपी स्तर के अधिकारी को मिला है। देखना है वे अपने से वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी मुकेश गुप्ता और रजनेश सिंह को बयान के लिये बुला पाते हैं या नहीं और बुलाने पर वे आते हैं या नहीं।
गायों की मौत का कांग्रेस नेता का फर्जी वीडियो
गायों की मौत की बीते दिनों हुई घटनाओं ने प्रशासन को सकते में डाल दिया था। कुछ लोगों पर कार्रवाई भी हुई। मुख्यमंत्री की फ्लैगशिप योजना में शामिल गौठान योजना में किन मानदंडों का पालन किया जाये इस पर कड़े निर्देश दिये गये थे। ऐसे में दो दिन पहले जांजगीर-चाम्पा जिले के सरहर गांव के गौठान में 20 गायों की मौत हो जाने का वीडियो सोशल मीडिया पर चलने लगा। वीडियो और किसी ने नहीं बल्कि खुद जिले के कांग्रेस अध्यक्ष ने जारी किया था। प्रशासन में हडक़म्प मच गया। आनन-फानन जांच कराई गई और शाम तक रिपोर्ट भी तैयार कर ली गई। मालूम हुआ कि सरहर या आसपास के किसी गौठान में गायों की मौत नहीं हुई है। वीडियो जिले के बाहर किसी और जगह की है। मालूम हुआ कि सब कांग्रेस के भीतर चल रहे आपसी घमासान का नतीजा था। स्थानीय भाजपा नेता इस पर खूब चुटकियां ले रहे हैं और कह रहे हैं कि कांग्रेस नेता ठीक कर रहे हैं। वे अपनी पार्टी के लोगों को ठिकाने लगाने के चक्कर में हमारी जिम्मेदारी भी उठा रहे हैं।