राजपथ - जनपथ
हर धंधे की अपनी-अपनी जुमलेबाजी
हर धंधे की अपनी एक जुबान होती है जिसमें कुछ शब्दों का बार-बार इस्तेमाल होता है जिनका कोई काम ही नहीं होता। अखबारों और टीवी चैनलों की जुबान देखें तो कोई डाका नहीं डालते, डकैती को अंजाम देते हैं, लूटते नहीं, लूट को अंजाम देते हैं। कोई भी जुर्म किया नहीं जाता, हर जुर्म को अंजाम दिया जाता है। अखबारों के जुमले अलग होते हैं, और टीवी के जुमले अलग। अगर कोई होशियार और जिद्दी सबएडिटर इनकी खबरों को लेकर बैठे तो काटकर आधा कर दे। खबर आधे से भी कम होती है, और बाकी घिसे-पिटे निरर्थक जुमले होते हैं, 15 लाख हर खाते में आने की तरह, या अच्छे दिन आने की तरह।
आज जब अखबार का कागज इतना महंगा रहता है, और टीवी चैनल हर कुछ सेकंड के इश्तहार के लिए दसियों हजार रूपए लेते हैं, तब शब्दों और बातों की इस तरह की बर्बादी खासी महंगी रहती है। लेकिन इन दोनों किस्म के मीडिया में काम करने वाले लोगों की लफ्फाजी की आदत इतनी खराब रहती है कि इनकी लिखी और कही गई बातों से जुमलों को हटाकर फिर से लिखने या कहने के लिए कहा जाए, तो लिखने वालों की कलम झटके खाने लगेगी, और माइक्रोफोन पर गैरजरूरी बातों की सुनामी फैलाने वाले लोग बोलते हुए लडख़ड़ाने लगेंगे। गैरजरूरी बातों से वह कमी पूरी हो जाती है जो कि जरूरी तथ्यों से पूरी होनी चाहिए। हर धंधे में अपनी एक परंपरागत जुबान रहती है जिसमें जुमलों से तथ्यों की कमी पूरी की जाती है, और धंधे के बाहर के लोगों को दहशत में भी लाया जाता है। इस जुमलेबाजी को उस पेशे के लोग एक विशेषज्ञता की तरह प्रदर्शित करते हैं, और बाहरी लोग प्रभावित भी हो जाते हैं। फिलहाल हर धंधे के लोगों को जुमलों में कटौती और किफायत की कोशिश करनी चाहिए। जिस तरह पहले किसी टेलीग्राम के हर शब्द के लिए 50 पैसे तक लगते थे, लोगों को यह सोचना चाहिए कि इस रेट से भुगतान करना पड़े तो वे काम की बात को कितने शब्दों में निपटा सकेंगे?
मेडिकल छात्र ने दान कर दी अपनी सीट...
मेडिकल में दाखिले के लिये कई छात्रों द्वारा फर्जी निवास प्रमाण पत्र जमा करने की शिकायत आई है। कुछ मामले ही उजागर हुए हैं जबकि बहुत से प्रकरण और ऐसे हो सकते हैं। दरअसल जब से मेडिकल में प्रवेश नीट के जरिये होने लगा है, आवेदन मेडिकल कॉलेज प्रबंधकों या राज्य के किसी जांच एजेंसी के सामने दस्तावेज नहीं आते, वे सीधे नीट में जमा होते हैं। कुछ अभिभावकों ने अपने बच्चों के दो-दो तीन-तीन निवास प्रमाण पत्र बनवा लिये ताकि जहां से सरकारी कॉलेज या सरकारी कोटे की सीट मिलने की संभावना हो वहां काउन्सलिंग के लिये पहुंच जायें और वहां उसी राज्य का निवास प्रमाण पत्र दिखा दें। राज्य सरकार ने अब ऐसी धोखाधड़ी के मामले में अपराध दर्ज करने की बात कही है। शायद यही वजह है कि शनिवार को काउन्सलिंग में भाग लेने के बाद सरगुजा मेडिकल कॉलेज में अजीब वाकया हुआ। छात्र को प्रवेश मिल चुका था पर जब सत्यापित दस्तावेज मांगे तो उसने दाखिला लेने से ही मना कर दिया। उसने लिखकर दे दिया कि वह यहां नहीं पढऩा चाहता, उसकी सीट किसी दूसरे छात्र को दे दी जाये। काउन्सलिंग में बैठे अध्यापकों को एकबारगी समझ में नहीं आया कि छात्र ने अपनी सीट का त्याग करने का निर्णय क्यों लिया?
अब प्रबंधन ने तय किया है कि प्रवेश नहीं लेने के बावजूद उसके दस्तावेजों की जांच कराई जायेगी, इसके लिये सम्बन्धित विभाग को लिखा जायेगा। चार साल पहले जब राष्ट्रीय स्तर पर एक साथ एमबीबीएस प्रवेश परीक्षा लेने का निर्णय लिया गया तो नीट और राज्य सरकारों के बीच कोई तालमेल नहीं बना कि फर्जी दस्तावेजों से दूसरे राज्यों के छात्रों का प्रवेश कैसे रोका जाये। इस बार मामले बड़े पैमाने पर उजागर हो रहे हैं। उम्मीद है कोई सिस्टम बनेगा और यह फर्जीवाड़ा आगे जाकर रुकेगा।
बार-बार क्यों कांग्रेसी भडक़ रहे?
महिला एल्डरमेन का बिलासपुर में सफाई कर्मचारी के साथ हुआ विवाद अभी ठंडा ही नहीं पड़ा है। गृह मंत्री से लेकर थाने तक शिकायत की गई पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। अब यहीं के जिला कांग्रेस अध्यक्ष विजय केशरवानी के साथ भी एक हादसा हो गया। मंत्री गुरु रुद्र कुमार एक कार्यक्रम में भाग लेने रविवार को दोपहर यहां पहुंचे । छत्तीसगढ़ भवन में उनके कमरे में जब केशरवानी ने घुसने की कोशिश की तो बंद दरवाजे पर पीएसओ ने रोक दिया। पीएसओ पर तब भी असर नहीं हुआ जब उन्होंने बताया-मैं कौन हूं। जबरदस्ती घुसने की कोशिश की तो पीएसओ ने वायरलेस का रिसीवर पेट में दबाते हुए पीछे खिसका दिया। इसके बाद तो अपने चिर-परिचित अंदाज में केशरवानी हंगामा करने लगे। पीएसओ का कहना था कि मंत्री जी अभी भोजन कर रहे हैं और इस बीच उन्होंने किसी भी भीतर नहीं आने देने के लिये कहा है। किसी तरह से शहर अध्यक्ष और दूसरे नेता जो वहां मौजूद थे उन्होंने माहौल ठंडा किया। मंत्री जी से पीएसओ की शिकायत भी की गई। पर जैसा अब तक होता आया है, शिकायत सुन तो ली गई पर कार्रवाई कुछ नहीं हुई।