राजपथ - जनपथ
20 साल के युवा पर दम्पत्ति का दावा
जशपुरनगर से एक अलग तरह का मामला सामने आया है। एक दम्पत्ति ने 20 साल के एक युवक को अपना बच्चा बताया है। कहना है, होलीक्रास हॉस्पिटल में 20 साल पहले महिला ने डिलवरी कराई तो उसे बता दिया गया कि शिशु की मौत हो गई। इस दौरान उसी अस्पताल के ड्राइवर की पत्नी भी प्रसव के लिये भर्ती थी। उसे लडक़ा होना बताया गया।
दम्पत्ति का कहना है कि यह उनका लडक़ा है जिसे चुरा कर ड्राइवर को दे दिया। दम्पत्ति ने कद-काठी को देखकर कहा है कि ड्राइवर का बेटा दरअसल 20 साल पहले चुराया गया उसका बेटा है।
महिला आयोग में आम तौर पर इतने पुराने मामले नहीं लिये जाते लेकिन अलग तरह की शिकायत आई, इसलिये जांच में लिया गया है। अब डीएनए टेस्ट से ही पता चल सकेगा कि कथित चोरी का बच्चा जो अब युवक हो चुका है उसके असली मां-बाप कौन हैं। प्रश्न यह भी है कि वह अब 20 साल का युवा हो चुका है, उसके मन में इन बातों का क्या असर हो रहा होगा? एक वयस्क बेटे को अपने हिसाब से जीने का अधिकार तो मिल जायेगा, पर कानून ही तय करेगा उसके माता-पिता कौन हैं।
मरवाही का श्रेय कोई अकेले क्यों लूटे?
कांग्रेसियों ने आपसी मतभेद भुलाकर मरवाही में खूब डटकर मेहनत की क्योंकि मुखिया ऐसा चाहते थे। नतीजा भी अच्छा आया। अब लगी है होड़ श्रेय लेने की।
मरवाही के कार्यकर्ता अपने परिश्रम को कम नहीं मानते, कोरबा से तो प्रभारी मंत्री को ही प्रभार था, बिलासपुर के कार्यकर्ताओं ने नये जिले में जाकर जोगी के लोगों को कांग्रेस में वापस लाने का अभियान चलाया। रणनीति प्रदेश स्तर पर बनी और मंत्री, सांसद, विधायकों की बड़ी टीम यहां काम करती रही। ऐसे में कोई एक अपना लोहा मनवाने के लिये पर आ जाये तो बाकी नेता-कार्यकर्ता इसे बर्दाश्त कैसे करें?
मरवाही में बिलासपुर जिला कांग्रेस की भूमिका पर आभार जताने के लिये एक सम्मेलन रखने की अध्यक्ष ने घोषणा कर दी। ऊपर से कोई आदेश आये बिना। स्थानीय टीम से टीम से सलाह भी नहीं ली गई। भीतर ही भीतर सम्मेलन का विरोध होने लगा। सम्मेलन में साथ नहीं देने की बात कही गई। विरोध के चलते अध्यक्ष कोई बहाना तलाश करते रहे इसी बीच कांग्रेसी राष्ट्रीय नेता अहमद पटेल के निधन पर शोक संतप्त हो गये। यही मौका था और सम्मेलन इसी नाम से स्थगित कर दिया गया।
वैसे जिले में 2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान संगठन का प्रदर्शन कमजोर रहा और लोकसभा में तो बहुत ही खराब। दूसरे नेता कह रहे हैं कि अध्यक्ष को तब सजा नहीं मिली तो अब श्रेय क्यों मिले?
किसान आंदोलन और प्रदेश के सांसद
किसान आंदोलन की धमक से दिल्ली जरा हिली हुई सी लग रही है। आंदोलन तेज होने के बाद पंजाब, यूपी के किसानों को दिल्ली सीमा पार करने का मौका दिया गया पर बातचीत के लिये तारीख लम्बी दे दी है- 3 दिसम्बर। शायद सरकार देखना चाहती है कि एक हफ्ते के भीतर कहीं किसानों का हौसला टूट तो नहीं जायेगा।
जगह-जगह से किसानों के गैर-राजनीतिक आंदोलन को समर्थन मिल रहा है। दूसरी तरफ केन्द्र सरकार यह समझाने में लगी हुई है कि किसान बिल फायदे का है। इसके लिये देशभर में सांसदों को जिम्मेदारी भी दी गई थी। छत्तीसगढ़ में भी भाजपा सांसदों ने कई सभायें लीं। किसानों के अलावा वकीलों, कारोबारियों और दूसरे वर्गों की। पर जीएसटी और नोटबंदी की तरह इसे भी लोग नहीं समझ पा रहे।
पंजाब के किसानों के समर्थन में छत्तीसगढ़ में किसान संगठनों ने किसान संसद रखा और उम्मीद कर रहे थे कि उसमें सांसद पहुंचें और नये कानून पर बहस करें। सांसदों को दिल्ली से निर्देश था कि केन्द्र की बात रखें वह उन्होंने रख दी। उन्हें किसानों की बात सुनने के लिये तो कहा नहीं गया है जो वहां जाते।